आत्मा को परमात्मा से दूर रखने और उसे आवागमन में भटकाने के जिम्मेदार उसके समय-समय पर किए बुरे कर्म होते है,
गुरु सेवा उसकी सब मलिनता धो देती है उसके सब पाप काट देती है परिणाम यह होता है कि वह दोबारा उसी तरह निर्मल और उज्जवल हो जाती है, जिस तरह अपने स्त्रोत (परमात्मा) से अलग होने के समय थी और इस प्रकार फिर मूल मे समाने के योग्य हो जाती है ।
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