Guru Nanak Sakhi । 30 साल सतगुरु की सेवा करने के बाद भाई बाला ने सतगुरु का साथ क्यों छोड़ा ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक और भाई बाला जी की है कि भाई बाला जी 30 साल सतगुरु नानक जी के साथ रहे और उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि वे उनसे बिछड़ गए आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का ये प्रसंग श्रवण करते हैं ।

सच्चे पातशाह धन श्री गुरु नानक देव साहिब जी महाराज समित 1558 में पहली उदासी को चले गए थे बेबे नानकी जी के याद करने पर दो बार सुल्तानपुर आए थे फिर वही से दूसरी, तीसरी उदासी को चले गए और 21 साल के बाद समित 1579 को फिर तलवंडी आ गए अपने माता पिता जी के पास कुछ देर रहे, जब वह भी सचखंड जा विराजे तो संभाल नगर से फिर पखोखे आकर परिवार को दर्शन दिए गुरुजी के सास सुहरा भी परलोक सुधार गए तो आप जी ने श्री करतारपुर बसा के सारे परिवार को यहीं पर टकाया और आपने फिर चौथी उदासी शुरू की, कई साल के बाद फिर करतारपुर साहिब आए और शिवरात्रि समय अचल बटाले जाकर कुछ दिन के बाद समित 1588 शुरू में घर में आकर रहने लगे थे चाहे सतगुरु जी ने बाहर रहकर 30 साल रज कर प्रचार कर लिया था अब कहीं दूर के सफर में जाने का ख्याल नहीं था गुरु जी श्री करतारपुर धर्मशाला को ही अपने धर्म प्रचार का केंद्र थाप के आसन लगाकर बैठे थे पर गुरु जी बाबा श्री चंद जी समेत अचल बटाले फिर चले जाने पर श्री माता जी के मन में सनसा पा दिया कि आप अभी भी टिक कर आराम नहीं करते यह इसी तरह बाहर जाकर बाबा श्री चंद समेत लंबे दौरे पर फिर ना चले जाएं, श्री माता जी अपने स्वामी के आगे आंखें ऊंची नहीं करते थे पर इन्होंने अपने पास 1 दिन स्भाविक ही भाई बालाजी को बैठे देखा तो ऐसे कहा बाला जिओ तुम बहुत समय तपा जी के साथ बाहर फिरते रहे कोई कसर नहीं रही अब उनको टिकने दो वह तुम्हारे साथ चले जाते हैं जेकर तुम ना जाओ तो वह भी नही जाएंगे उनका शरीर अब बाहर की खेचलों को नही झेलता उनको बोलो घर ही रहे और बच्चों की तरफ से सेवा करवाएं बालाजी आप मनाएंगे तो मान जाएंगे भाई बालाजी आगे ही चाहते थे पर बोलने में झक था अब श्री माता जी की तरफ से विनती करने का डर नहीं था इन्होंने सारी बातचीत गुरुजी के आगे प्रगट कर दी और आप जी ने भी घर को चले जाने की छुट्टी ली साथ ही बेनती करके गुरु जी का यह आशा भी समझ लिया कि अपने पीछे अपनी जगह जगतगुरुता कि गद्दी ऊपर किसी को बठाएंगे गुरु जी ने कहा हमारे पीछे त्रेहन गौत की छतरी जाति में से एक लहना जी हैं जो हमारे पीछे अंगद नाम से प्रसिद्ध होंगे वह हमारा दूसरा स्वरूप होगा हम फिर उस स्वरूप के अंदर होकर परमेश्वर की प्रेम भक्ति का प्रचार करेंगे पर इस भेद को कोई नहीं जान सकता कि हम उनके अंदर कैसे बस रहे हैं श्री नानक प्रकाश ग्रंथ में यह सारी साखी का भी जिक्र आया है ऐसे भाई बालाजी ने चरणी सीस निभाया गुरु जी की तरफ से खुशियां और छुट्टियां ली इसी तरह बाबा श्री चंद, बाबा लक्ष्मीचंद और माताजी तक भी नमस्कार की और बताया कि माता जिओ फिकर मत करना तपा जी अब यहीं पर बस जाएंगे ऐसे कहकर भाई बालाजी ने श्री गुरु नानक साहिब का 30 साल साथ देने के बाद समित 1588 में अपने घर तलवंडी की तरफ को चल पड़े साहिब्यादो को यां पहले आए सिखों में से किसी को गुरु गद्दी क्यों नहीं देंगे और खड़ूर में बसते श्री लहना जी को जो अभी तक सेवा में आए ही नहीं क्यों गद्दी देंगे यह निर्णा भी गुरु जी ने भाई बाला जी को समझा दिया होगा कि यह गद्दी जद्दी विरासत के रूप में देने की इच्छा नहीं और ना किसी पहले या पीछे आए सिखों का अधिकार को मुख रख कर देनी है बल्कि करतार की तरफ से बक्शीश का जो परवाना लेकर जग में आया है यह ईमानत उसी को देनी है पर भाई बालाजी ने यह बात और किसी को नहीं बताई और चले गए थे क्योंकि परिवार में अब भी निराशता शाह जाने का डर था यह बाला जी ने बड़ा बुद्धि से काम लिया तो फिर श्री गुरु अंगद देव जी के पास जब आए तब बताया था भाई बाला जी के तलवंडी जाने के बाद गुरुजी को लगभग 2 साल अपने घर रहते होने लगे थे दर्शनो के लिए बेअंत संगत आती तो वारुस आती किसी सलाना जोड़ मेले पर तो कई बार कई कई हजारों की गिनती हो जाती थी क्योंकि पंजाब अंदर नहीं जबकि हिंदुस्तान के दूसरों हिस्सों में बंगाल, बिहार में भी हिंदू मुसलमान बंदगी के शोंकी कई आया करते थे जिस पर मुकामी संगत के सहयोग के साथ बाबा श्री चंद जी सेवा का सारा प्रबंध निभाते गुरु जी सपुत्रों की इस सेवा और उत्साह को देखकर बड़े खुश होते पर वेद पाठी वेदियो की कुल में पैदा हुए त्रिकालदर्शी गुरु नानक वेदी को अपने बड़े वेदियो की तरफ से किसी पहले जमाने में सोढ़ीयो भाइयों को दिया वरदान भी याद था जो गुरु जी ने अपना शरीर छोड़ने से पहले ही पहले किश्त रूप में पूरा करना था गुरुजी यह भी जानते थे जो भली संतान का फर्ज होता है कि अपने बाप दादे के सिर पर किसी का कर्जा ना रहने दे जब समरथा हो तो जरूर उतार दे वो जिगर ऐसे है कि वेदियो के बड़ी तरफ से सोढ़ीयो और बड़ो ने खोया पंजाब का धुनावी राज़ मोड़ देकर आप तप करने को बल में चले गए थे पर वेदियो ने सोढ़ीयो के उदार के ऊपर खुश होकर दीन का सच्चा राज देने का वचन दिया था श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने भी श्री मुख वाचक विचित्र नाटक चौथे में भी विस्तार के साथ लिखा है इस वरदान के जरिए तब गुरु जी ने कंधों के ऊपर ही वार पाया गया उन्होने खोल कर कहा कि कलयुग में आकर जब हम अपना नानक नाम कहाएंगे तो सोढ़ीयो को जगत कूच बनाकर परम पद सुर्ख रूज का पाएंगे अब कलयुग का ही समय था गुरु अवतार गुरु नानक देव जी आप सर्भ कला समरथ गुरु मौजूद थे एक तरफ इन्हों तक दोनों साहिब्यादे खास कर बाबा श्री चंद जी सर्वगुण संपन्न आंखों के सामने थे इनसे अलग उम्र भर के आज्ञाकार निष्काम सेवक भाई बालाजी चाहे तलवंडी चले गए थे और भाई पारो जी झुलका जैसे और कई हजूरिए सिख थे पर दूसरी तरफ श्री गुरु नानक देव जी को खड़ूर में बसते एक समरथ पुरुष भी दिख रहे थे जिन्होंने गुरु जी की तरफ से इस इमानत को अपने सिर लेकर फिर एक और समरथ पुरुष के ज़रिए आगे असली ठिकाने पर पहुंचाना था यह बड़ी सोच थी यह काम अगर साहिबजादे के ज़रिए करवाते तो एक बार की पिता पुरखी घर में अपनाई चीज का दूसरी जगह देना स्वभाविक कठिन था पर अपने हाथ से दूसरी जगह देने से तीसरी जगह अटक जाने की कोई वजह नहीं रहती थी क्योंकि धुर करतार की तरफ से यह इमानत अगर अपने घर में श्री गुरु नानक देव जी ने नहीं रखी तो और किसी को कोई हक नहीं रह जाता कि रखें यह वस्तु अजर वस्तु है जिसकी है उसके घर जानी है फिर गुरुजी का तो अपना मत सिद्धांत ही हुकुम रजाई चलना है वह करतार के हुक्म को जन्म से समझने की सूझी शक्ति रखते थे तब ही बालाजी को कहा था इसलिए गुरुजी उडीक में थे जो निरंकार का साजया पूर्ण पांडा वह बड़भागी पुरष जल्दी जल्दी आ मिले और यह अपनी जोत अवस्थ उसके बीच रखें गुरु नानक देव जी अपने गुरु जोत किस में रखेंगे गुरु गद्दी किसको देंगे यह अपना इनके पास धुर का बना प्रोग्राम था पर यह विचार वक्त से पहले 8 साल बता कर पहले ही परिवार में निराशता भर देनी चंगी नहीं थी आप समझते थे कि इन्हों के बाबा श्री चंद हर तरह जोग और यत सत सिमरन में शरत्ते हुए हमारी जगह संभालने को कुदरत ही हक जानते और साधना साध रहे हैं पर गुरु जी अपने ख्याल में यह हक जिस बड़भागी के पास जाना समझते थे उनको भी प्रेम खींचे पै रही थी तो वो भी वैष्णो देवी जम्मू वाली के दर्शनों को जा रही मंडली की अगवाई में खड़ूर से चलकर श्री करतारपुर के नजदीक पहुंच चुके थे इस बात का पता इस पवित्र बड़भागी पुरुष को अभी आप भी नहीं पता था कि इनके माता-पिता के और अपने पूर्वले जप तप के फल का आप वजूद हैं इनको यह पता भी नहीं था कि किसी दिन इनकी अपनी आतम जोत को किसे आगामी जोत ने अपने में लीन करके जगत का चानन बना देना है इनको अपने में छिपी चमक शक्ति का अभी कोई ज्ञान नहीं था कि वो पवित्र सीस जो निरंकार के बिना आज तक और किसी के आगे नहीं झुका था समय आने पर इस बड़भागी के चरणी झुक जाएगा जब कि अपने जन्म के साथी 70 साल के शरीर को छोड़कर गुरु नानक की जोत कला ने अपने आदर्श की पूर्ति के लिए इनके शरीर में बस जाना है इन बातो से यह बड़भागी आप अभी बिलकुल बेखबर थे गुरु नानक देव जी को शरीर बदलने की जरूरत इसलिए जरूरी तो थी कि निरंकार की तरफ से इनके सिर सौंपी जिम्मेवारी की पूर्ण सफलता के लिए बहुत जतन और बहुत समय की अभी जरूरत थी जो एक–दो मनुष्य जामे में सिरे चाढ़ना मुश्किल था तभी तो पहले ही कोई ऐसा पवित्र सुधरा पांडा निरंकार के हुक्म में तैयार हो जाना अति जरूरी था जिस में गुरुता की जोत वस्त रखी जा सके और झटपट फिर निरंकारी आदर्श की पूर्ति निर्मल पंथ खालसा साजने तक उधम जारी रखा जाए जैसे कोई शाह सवार सूरबीर रण में हेठ के घोड़े तो थक गया या जख्मी नगारा देखकर पल में दूसरा बदल लेता है ऐसे ही श्री गुरु नानक देव जी को अपने मनोरथ के सिद्धि के लिए दूसरा शरीर बदलने की जरूरत महसूस हुई कि जिस दूसरे शरीर का दीया जप तप अनरूप खट्टी की वटी और भागों के तेल के साथ भरा हो तब ज्योति से ज्योत जगा कर उसमें जल्दी ही निवास पाया जा सके वो खड़ूर का बड़भागी शरीर अब श्री करतारपुर के नजदीक आ गया था श्री लहना जी के पिताजी दुकानदारी की किरत करते और गरीबों के साथ बांटकर शकने वाले थे इनके श्री माता सबराई जी भी धाराए किसे भी अभयातक दरवेश को हथी शक्का कर असीसे लेने के स्वभाव वाले थे पर सारा परिवार शुरू से वैष्णो देवी जम्मू वाली का उपाशक था अपने पिता माता के चढ़ाई कर जाने के बाद श्री लहना जी भी साल के साल देवी दर्शन को जाने वाली मंडली की अगवाई करते और साथ जाते थे यह वहां जाकर धर्म क्षेत्रों में धर्म कमाई का चौथा हिस्सा पाया करते इस बार भी समित 1589 की यात्रा समय सारी दर्शक मंडली समेत जा रहे थे चलते चलते शाम हो गई तो श्री करतारपुर के नजदीक थोड़ी बांट पर डेरा किया साथियों को खाना तैयार करने के लिए कहा और साथ ही कहा यहीं पर साथ ही एक नानक तपा जी रहते सुनते हैं बहुत भले लोग हैं सहज ही आ गए हैं एक पंथ दो काज वाली बात है मैं दर्शन करके जल्दी आ जाऊंगा ऐसे कह कर उसी तरह घोड़ी पर सवार नगर की तरफ चले गए सो साध संगत जी साखी आपने सुनी है गुरु नानक देव जी ने इनको साथ लेकर आप घोड़े की लगाम पकड़ कर अपने घर तक ले गए जब श्री गुरु नानक साहिब जी की कृपा हो गई और सुबह हुई तो लहना जी ने अपना ईरादा बदल कर सभी साथियों को ऐसे कहा मेरा देवी दर्शन को जाना यां और कोई भला काम करना केवल मन की शुद्धि और मुक्ति प्राप्त के लिए है वह फल मुझे तपा जी के दर्शन और सेवा में सूझा है तुम सभी अपनी अलग अलग कामना तार कर जा रहे हो सुख के साथ जाओ पर वहां से आकर तुमने भी ज़रूर इनके दर्शन करने तपा जी बहुत भले और पहुंच वाले बंदे दिखाई देते हैं यह कह कर लहना जी मुड़ खड़ूर को और साथी मंडली आगे को चली गई ।

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By Sant Vachan


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