Guru Har Rai ji ki Sakhi । जब एक ब्रह्मण ने अपना मरा हुआ पुत्र आगे रखकर ये शब्द कहे !

 

साध संगत जी आज की साखी गुरु हर राय जी की है जब गुरु हर राय जी के समय एक ब्राह्मण का पुत्र मर गया और उस ब्राह्मण ने अपने मुर्दा पुत्र को उठाया और गुरुजी के पास ले गया और उनके दरवाजे के आगे अपने पुत्र के शरीर को लौटा दिया और गुरु जी से फरियाद करने लगा कि मेरे पुत्र को जीवित करो नहीं तो हम दोनों पति पत्नी अपने प्राण त्याग देंगे तो उसके बाद क्या लीला हुई आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग श्रवण करते हैं ।

सच्चे पातशाह धन श्री गुरु हर राय साहिब जी महाराज जब श्री करतारपुर साहिब में बस रहे थे तो उस समय बहुत संगत चारों तरफ से चलकर आती थी त्यौहार वाले दिन मेला लगता था गांव नगरों में से सिख इकट्ठे होते थे बहुत संत,महंत और मसंद भी आते थे वह अपने अपने देशों को छोड़कर आते थे कई किस्म के सन्यासी और वैरागी भी आते थे सिख संगतो की क्या गिनती करे, भात–भात के उपहार लेकर वो सतगुरु जी के दरबार में पहुंचते थे गुरु जी के दर्शन करके मुंह मांगी मुरादे पाते थे गुरु जी सतनाम का उपदेश करते थे तो गुरु जी की तरफ से उपदेश सुनकर सिख अपने मन में धारण करते थे कई ब्रह्म ज्ञान पाते थे और आत्मअनंद में समा जाते थे, कई 9 निधियां पाते थे और जन्म मरण के कष्ट मिटा लेते थे, 18 सिद्धियां प्राप्त करते थे तो कई सब प्रकार की करामाते पा लेते थे गुरु जी के दरबार में सब कुछ बसता था गुरुजी सेवकों को हमेशा ही खुले गफ्फे देते थे साध संगत जी आज भी गुरु घरों में श्रद्धा जैसे रिधियां सिद्धियां प्राप्त करते हैं और हर प्रकार की अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं इस तरह गुरु जी ने कई दिन श्री कीरतपुर साहिब में वतीत किए जो सिख धन कमाते थे वो गुरु जी के आगे दसवंद रखते थे इस तरह बहुत भारी भीड़ नित आती थी जहां पर सतगुरु जी का दरबार था इस तरह एक बार वैसाखी का मेला आ गया चारों तरफ से बहुत लोग आ रहे थे भाई भगतू का छोटा पुत्र गुरुजी के पास चल कर आ गया जिसका नाम था भाई जीवन, बड़े पुत्र गोरे में राजसी गुण थे यह विलक्षण संत सुभाह वाला था उसके साथ कई विराट संगते गुरु जी के दर्शनों के लिए पहुंची थी और कहां तक मेला गिने सभी सतगुरु जी के दरबार में इकट्ठे हुए थे सभा में अरदासीए खड़े थे वो सिखों की अरदास कर रहे थे धन ले लेकर मसंद आते थे तो आकर गुरु जी के दर्शन पाते थे अपने साथ बहुत संगत लेकर आते थे तो दोनों हाथ जोड़कर अपने आप को हाजिर करते थे जहां जहां पर कोई सिख संगत थी गुरु जी को याद करती थी और गुरु जी उनके सहायक बनते थे अनेक प्रकार के विघ्नों को ढाल देते थे फिर परलोक सुधार कर रक्षा करते थे कई मनुष्य विशेष करके शुभ मार्ग पर लगे थे पिछली रात उठकर स्नान करते थे तो बहुत दान देकर प्रभु का सिमरन करते थे, सर्व व्यापक गुरुजी हर एक के दिल की बात को जानते थे तो सबकी आसे बिना कहे ही पूरियां कर देते थे जो कामना सहित महान सेवक थे वो गुरु जी को कलम वृक्ष के समान जानते थे इस प्रकार बहुत बड़ा मेला लगा, दर्शन करके सेवकों ने मुंह मांगी मुरादे पाई, 5 दिन तक संगत वहा  रही तो उनका घर जाने को दिल नहीं करता था शब्द के अर्थ की सुंदर चर्चा करके सिख संगत आपस में मिलती थी अभ्यास करके और जानकर अत आनंद को पाती थी और धन धन कहकर गुरुजी की उस्तत सुनाती थी इस तरह श्री करतारपुर में गुरुजी ने जब कई दिन वतीत किए तो वहां पर एक ब्राह्मण रहता था जिसका 12 साल का पुत्र था एक दिन अचानक वो मर गया ब्राह्मण ने उस बालक को गुरु जी का दासुंदिया करके अर्पण किया हुआ था पर फिर भी वह जीवित नहीं रहा और मर गया, एक ही पुत्र था जो प्राणों से भी ज्यादा प्यारा था ब्राह्मण ने अनेकों उपाय करके उसको पाला था साध संगत जी दसूंध की रीत इस तरह की है माता-पिता संतान के लिए अरदास करते हुए प्रण करते थे कि जेकर बालक पैदा हुए तब हम उसका दसूंध गुरु अर्थ देंगे, जब लड़का चलने फिरने के जोग हो जाता तब उसको गुरुद्वारे लेकर जाते थे 5 सिख जो उसका मूल पाते उसका दसवां हिस्सा गुरु जी को यां गुरुद्वारे दिया जाता,  मरहटो के राज में दासुंदया वो कहलाता था जिसको मालगुजारी का दसवां हिस्सा माफ किया जाता था पर माफी के परगने की हिफाज़त दासुंदिया के जिम्मे हुआ करती थी सो इस प्रकार वो ब्राह्मण दिन-रात पुत्र का मुख देखकर सुख पाता था इतना प्यारा था जैसे अपने प्राण ही बाहर किसी और स्वरूप में हो, जब उसका पुत्र मर गया तो उसने बहुत दुख पाया जितना प्यारा था उतना ज्यादा दुख पाया, बालक की मां भी बहुत वरलाप करती थी कहती थी हे पुत्र मरकर बहुत बड़ा कष्ट दे गया है अभी तो जग में तुमने कुछ भी देखा नहीं था ब्राह्मण ऊंची ऊंची रोकर पुकारता था हे पुत्र गुरुजी का करके मैंने पाला था उन्होंने मेरी सहायता नहीं की तो जमा ने आकर मार लिया, अत्याधिक पति पत्नी बहुत दुःखी होकर विरलाप कर रहे थे गोदी में उठा के बहुत रो रहे थे लोगों ने उनको मिलकर कहा अब क्या हुआ है बड़ा दुख धारण किया है पुत्र को बाहर लिया कर इसकी गति करो, विधाते ने इसकी उम्र यही लिखी है क्यों इतना रोकर दुख पाते हो यह सुनकर दप्पती ने लोगों को कहा हमारे श्री गुरु जी राखे हैं उनका हमें सदा ही भरोसा है हमारे पुत्र की अचानक मौत हो गई है अब भी बाहर लेकर नहीं जाएंगे सतगुरु जी के दरवाजे के आगे रख देंगे तो कहेंगे या तो हमारा पुत्र जीवित कर दो नहीं तो हम दोनों मर जाएंगे पुत्र के सोग में हमसे जिया नहीं जाएगा तो गुरु जी के ईलावा और कोई इलाज नहीं है इस तरह कहकर पुत्र को उठा लिया तो बहुत ऊंची ऊंची रोते चलकर आ गए श्री सतगुरु हर राय जी के घर का जहां पर दरवाजा था मरे हुए पुत्र को वहां लिटा कर दोनों पति-पत्नी बहुत ऊंची ऊंची रोने लग गए ब्राह्मण और उसकी पत्नी को बहुत ऊंची ऊंची रोते देखकर बहुत मनुष्य इकट्ठे हो गए, दुखी देखकर रोकते थे, कई मनुष्य सतगुरु जी के पास आए तो आकर गुरु जी को उस ब्राह्मण के रोले का कारण बताया ब्राह्मण ने अपने मरे हुए पुत्र को उठा कर दरवाजे में आकर लिटा दिया है हमने बहुत कहा पर किसी तरह भी मानता नहीं है कहता है कि सतगुरु जी के पास जाकर खबर करो कि मेरे पुत्र को जीवित करें नहीं तो हम दोनों ही मर जाएंगे हमने उसको बहुत समझाया पर समझता नहीं है यह सुनकर गुरु हर राय जी बोले ब्राह्मण को कहो बालक को उठा ले प्राणी प्रलब्ध अनुसार जीवन भोगता है पिछले जन्म में जैसे कर्म किए हैं उस तरह ही जीव जगत में शरीर धारण करता है दुख सुख जितने भी भोगता है उत्तम आदि जन्म जो होता है जितने समय तक स्वास धारण करता है दुख–सुख, उम्र तीनों को विधाता ही बनाता है जन्म होने के बाद मौत अवश्य है तीनों जीव के साथ साथ ही रचे हैं ईश्वर ने यह मर्यादा बनाई है इसको कोई भी देवता आदि नहीं मिटा सकता गुरुजी के यह वचन सुनकर मसंदो ने हाथ जोड़े तो हुकम पाकर ब्राह्मण की तरफ गए गुरु जी ने जो कहा था सब सुना दिया हे ब्राहमण मुर्दे को जहां से उठाकर ले जा यह कैसे हो सकता है कि मरा हुआ जीव जीवित हो जाए जेकर इस तरह हो जाए फिर कौन मरेगा प्रभु की रजा को कौन मिटा सकता है जो सभी जगत में चलती है यह सुनकर ब्राह्मण ने कहा यह पुत्र मुझे गुरु जी ने दिया है जन्म से ही मैं इसको गुरु जी का दासुंदिया किया है मैं तन मन के साथ गुरु करता हूं जग में मेरा कोई और आसरा नही है जेकर वो मालिक बनकर नहीं रखते हैं तो बताओ किसके दरवाजे पर जाकर फरियाद करे या पुत्र के साथ प्राण त्याग देंगे या कृपा निधान भाव गुरुजी इस को जीवित कर दें इस तरह कहकर उस ब्राह्मण के नेत्रों में से आसु आने लग गए तो सिर को दो हथड़ा मारने लग गया, बहुत कहा पर वो मानता नहीं था दोनों गुरुजी के दरवाजे के आगे ही खड़े रहे इस तरह ढाई पहर बीत गए तो गुरु जी ने शौच स्नान किया, सभा लाने का समा विचारा तो सिख और मसंद दरबार में पहुंच गए कई करामात सहित थे वो दोनों हाथ जोड़कर बैठ गए गुरुजी सेवकों के साथ घिरे हुए थे सिर पर सुंदर चोर झुल रहा था सुंदर नैन कमला जैसे चोड़े थे जो लाज और मेहरो की अन्नियो के साथ भरे पए थे अपने सेवकों पर शुभ दृष्टि पा रहे थे जिनको ब्रह्म ज्ञान बहुत प्यारा लगता था कई देशों के मसंद वहां पर रहते थे वो सभी गुरु जी को घेरा पाकर बैठे थे पूर्ण सभा लगी हुई थी तो सभी सिख शोभ रहे थे मानो जैसे तारों ने चांद को घेरा हो तब वहां पर ब्राह्मण का प्रसंग चला बेहाल पड़ा है और बहुत दुखी है पुत्र के बगैर जिसके जीवन की आस नहीं बहुत प्रेम करके संकट के साथ ग्रासा हुआ है आप जी कृपालु हो कृपा करो ताकि सभी का विशाल संताप खत्म हो जाए, बालक जीए और फिर बड़ा हो जो दप्पति मर रहे हैं वो बच जाए, उन्होंने अपना पुत्र गुरु जी को दासुंदिया किया है आप जी के कृपालु धर्म को समझा है फिर आप जी के दरवाजे पर बैठे हैं दोनों पति-पत्नी कहते हैं कि इस जगह पर ही मरेंगे सभा की तरफ से यह सुनकर श्री गुरु हर राय जी ने कहा जो कुछ होता है वो प्रभु की रजा अनुसार ही होता है पैदा होना मर जाना प्राणी के साथ है जब तक प्रभु मालिक कृपा ना करें जोग भगति या ब्रह्म ज्ञान हो, इनके साथ जन्म मरण खत्म होता है मरे हुए को जीवित करना अच्छी बात नहीं जो सभी के सिर पर बीतती है राजे रंक सभी नित ही मरते हैं जेकर हम ब्राह्मण के पुत्र को जीवित करेंगे तो वह भी इस तरह सुनकर हमारे दरवाजे पर आकर लेट जाएंगे गुरु जी की तरफ से इस तरह सुनकर फिर उपकारी सभा ने इस तरह उच्चारण किया जिस तरह बाल फिर जीवित हो जाए आप जी सब कुछ सच कहते हो तुम्हारी शरण आए को दुख का सेक नहीं लगता, तुम सर्व प्रकार महा समरथ हो पड़ना,घड़ना  सब आप जी के हाथ में है, ब्राह्मण को बैठे हुए बहुत समय बीत गया है दुख और सोग के साथ व्याकुल हो गया है और लोग भी देख रहे हैं आसपास के सारे महसूस कर रहे हैं जेकर बालक जीवित नहीं होगा तो सभी निराश होंगे अपनी-अपनी मत के अनुसार सभी बकवास करेंगे सभा समेत सब का यही मनोरथ था जब ब्राह्मण का पुत्र जीवित होगा उस शिन भला होगा बार-बार सिख सेवक और मसंद ब्राह्मण की बहुत फरमाइश कर रहे थे सभी की तरफ से सुनकर श्री हर राय जी कुछ रोस और क्रोध मन में लाए सभी को ऊंची सुना कर कहा जेकर तुम हमारे तरफ से जीवित करना चाहते हो, ब्राह्मण को अधीर देखकर फरमाइशे करते हो, एक उपकार मेरी आज्ञा के साथ भी करो कोई अपनी उम्र दे, ब्राह्मण का पुत्र वो ही जीवित करेगा गुरु जी का यह वचन सुनकर सारी सभा चुप हो गई किसी ने कुछ भी उच्चारण ना किया सिर नीचे करके सभी विचार रहे थे कोई भी अपनी उम्र देना नहीं चाहता था सतगुरु जी की तरफ़ मुख करके नहीं देखते थे जानते थे कि मुझे इस तरह ना प्ररेर लें कौन मरकर ब्राह्मण का पुत्र जीवित कराएं सभी ने बहुत डर महसूस किया, धीरज नहीं पाते थे सतगुरु जी ने सभी के मन की जान ली कुछ समय के बाद फिर उन्होंने वचन किया सारी सभा फरमाइश करने वाली है अब कहकर उपकारी क्यों नहीं बनती, अपनी उम्र दो और ब्राह्मण का पुत्र जीवित करो भला कर्म करके जग में जस पाओ, पति पत्नी मर रहे हैं उनको बचाओ धीरज धारकर वो शुभ गति को प्राप्त करें, गुरुजी का दूसरा वचन इस तरह हुआ पर किसी ने भी अपने मुख से उत्तर नहीं दिया पहले जैसे सारी सभा कहती थी उस तरह ही चुप बैठी अब विचार रही थी गुरुजी की तरफ मुंह ऊपर उठा कर नहीं देखते थे सभी के नैन नीचे थे कौन धीरज धारकर बात करता, गुरुजी चारों तरफ अपनी नजर फेरते थे कोई अपनी उम्र दे अपने सेवकों को परखते थे एक घड़ी तक सब बैठे रहे तीसरी बार गुरू जी ने फिर वचन कहे हे सिखों पहले तो सब बोलते थे क्यों उपकार करने की इच्छा नहीं करते हो जो एक व्यक्ति अपने प्राण देगा तो उसके मरने के साथ तीन व्यक्ति जीवित रहेंगे तो वो इस जग में जस पाएगा, गुरुजी की यह बात सुनकर भाई भगतू का छोटा पुत्र जो पीछे गुरुजी की निगाह से ओले बैठा था उठकर चुप करके बाहर निकल गया प्रोउपकार के लिए भोजन किया उसका नाम जीवन है डेरे में आकर उसने कुछ सुंदर घांस लेकर बिछाया उस घांस के ऊपर लेट कर अपने ऊपर चादर लेकर मुंह ढक लिया किसी से भी बातचीत नहीं की तो सारा शरीर कपड़ों से ढक लिया वो अपने प्राण छोड़ने चाहता था गुरु जी के वचनों के साथ अपने चित्त में परलोग का महान आनंद प्राप्त करना चाहता था इस जगत में जीवित रहना झूठ है और मरना सच है आगे पीछे सब ने संसार को छोड़ना है अब मेरा शरीर अच्छे कार्य के लिए लगेगा इससे और भला नहीं देखता हूं, अत्याधिक मन में विचार किया उस सभा में भाई जीवन एक तनता जोग पुरष था भाई जीवन ने अपना जीवनदान देकर ब्राह्मण को पुत्र दान दिया तो गुरु जी के वचनों के साथ महान पदवी प्राप्त की तुरंत अपने प्राण निकाल लिए, सचखंड में किसी देर के बगैर गुर पुरी में पहुंच गया, इधर भाई जीवन ने जब जीवन को त्यागा गुरुजी के दरवाजे पर तुरंत बालक जाग गया अपने माता पिता के पास जीवित होकर उठ बैठा ब्राह्मण धमप्ती बहुत प्रसन्न हुए और हृदय में हैरान रह गए जब अंदर खबर पहुंची जहां पर श्री गुरु हर राय साहिब जी बैठे थे सभी मनुष्य आपस में कहते थे गुरु जी धन है वो पूर्ण प्रभु हैं श्री रामचंद्र जी के दरवाजे पर जैसे ब्राह्मण के मरे पुत्र को जीवन दान दिया था कथा में हमने सुना था कि ब्राह्मण मुर्दा बच्चे को लेकर गया तो श्री रामचंद्र जी ने बहुत उपाय किए जैसे नारद ने मन में बताया था जैसे कैसे करके ब्राह्मण के पुत्र को जीवित किया तो श्री रामचंद्र जी ने अपने नेम का निर्रवा किया वो ही गति गुरु दरबार में हुई ब्राह्मण को दुख से बचा लिया इस तरह स्त्री पुरुष आपस में बातें करते थे गुरुजी की कीर्ति का उच्चारण करते थे सभा में जब यह खबर पहुंची ब्राह्मण का पुत्र जीवित हो गया है पता लगा है श्री गुरु हर राय साहिब जी ने अचानक सुना जब किसी ने आकर कहा तो जल्दी से पूछा किस सिख ने अपनी उम्र दी है किसने ऐसा प्रो उपकार किया है यह सुनकर सभा के सारे व्यक्ति बहुत हैरान हुए, नैनो को इधर-उधर फेर कर देखने लगे सभी बैठे हुए अपने अपने पास देखते थे कौन मरा है इस तरह विचारते थे फिर जल्दी ही गुरु जी ने पूछा क्यों नहीं बताते हो किसने जीवन दिया है, चौकदार ने हाथ जोड़कर कहा महाराज जी कोई दूसरा नहीं गया है यह भगतू पुत्र भाई जीवन गया है वो जाकर फिर वापस नहीं आया और सारी सभा यहां पर बैठी है जो प्रसंग ब्राह्मण का कहा जा रहा था वो प्रसंग वो सुनता था वो आप जी के पीछे बैठा था बंदना करके वो चुपचाप निकल गया यह सुनकर गुरु जी ने कहा जल्दी खबर लो उसको देखकर हमें बताओ 2,3 सेवक दौड़ कर गए पहले डेरे में जाकर देखा, कपड़ों से शरीर ढक कर घास के ऊपर पड़ा है जब चादर उतार कर देखा तो बिना प्राण मरा हुआ था दौड़कर गुरुजी के पास गए और कहा भाई जीवन ने जाकर मौत ले ली है चादर से सारा शरीर ढक कर ब्राह्मण के पुत्र के लिए अपने प्राण त्याग दिए हैं यह सुनकर गुरु जी गुस्से में आए तो सब को सुनाया मेरे पुत्र को मार कर ब्राह्मण के पुत्र को जीवन दान दिया है प्रभु के भाने को कोई मानता नहीं है पास बैठकर सिफारिशें कर रहे हैं अत्याधिक बहुत वचन किए फिर सेवकों को उसके डेरे भेजा जेकर भाई जीवन का कोई पुत्र हो तो उसको लेकर आओ तुरंत जाकर सारी जानकारी पाओ वहां पर कुछ विराट थे वो मिले उनको भली प्रकार जाकर सब कुछ पूछा, भाई जीवन का जो पुत्र है उसको गुरुजी बुलाते हैं जहां पर है यां अपने घर में रहता है तुरंत लेकर चलो यां बुला लो गुरुजी के साथ मिलकर फिर इसका संस्कार करो सेवकों के साथ विराट चलकर आए तो गुरु जी की हजूरी में खड़े होकर उन्होंने बताया भाई जीवन अभी 18 साल का हुआ है अभी ही उसने मुकलावा लाया है अब तक कोई पुत्र पैदा नहीं हुआ है इसकी जो पत्नी है वो गर्भवती है गुरु जी के दर्शनों के लिए चल कर आया था तो गुरु जी के वचनों करके तुरंत समा गया है श्री गुरु हर राय जी ने सुन कर फिर कहा जो पुत्र इसकी पत्नी के गर्भ में है उसका संत दास नाम रखो वो बड़ी वंश वाला होगा यह जान लो उसके घर बहुत पुत्र पैदा होंगे हम एक से हजारो कर देंगे उनका वंश बहुत ही ज्यादा बढ़ेगा तो उनके जैसा और कोई दूसरा नहीं होगा गुरुजी ने दिल में प्रसन्न होकर वर दिए साध संगत जी वो अब तक जग में जाहर हैं यह समझ लो भाई भगतू का बड़ा पुत्र जो घोरा है उसके वंश में ही 20 के  लगभग मनुष्य हैं भाई जीवन का पुत्र जो संत दास था उसका वंश हजारों में हुआ है तीनों गांव में बस कर भी वो समाते नहीं है आगे और बहुत बढ़ते जाते हैं जिस प्रकार गुरुजी ने वचन किया था वो जगत प्रसिद्ध है सच्ची बात देख लो फिर भाई जीवन का संस्कार किया गया जिसने उपकार के लिए प्राण दिए थे धन सतगुरु जी हैं तो धन सतगुरु जी के सिख हैं प्रभु के वचन जिस सेवक ने मान लिए ।

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By Sant Vachan

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