Guru Hargobind ji ki Sakhi । जो लोग कहते है नाम जपने का समय नही मिलता उनका उद्धार कैसे होगा ?

 

सच्चे पातशाह धन श्री गुरु हरगोविंद महाराज जी के समय के दो सिख भाई बनवाली और भाई परस राम हुए हैं जो की बहुत बड़े वैध थे वो साध संगत के दुखों को दूर करके रोग रहित कर देते थे अपना धन खर्च कर दवाई तैयार करते थे तो गुरु अर्थ रोगियों को खलाते थे

जो बीमार नहीं उठ सकता था और अपने घर पड़ा होता था उसको उसके घर में जाकर दवाई देते तो दवाई की ताकत के साथ मनुष्य को उठाकर बिठा देते थे बड़े प्रेम के साथ शब्द गाते थे फिर अर्थ विचार कर कमाई करते थे एक दिन उन्होंने सच्चे पातशाह धन श्री गुरु हरगोबिंद जी के आगे हाथ जोड़कर विनती की कि हे सच्चे पातशाह हमने जाना है कि सतगुरु का शब्द कल्याण बक्शता है साध संगत की भारी उपमा है सतगुरु जी ने इस तरह क्यों उच्चारण किया गुरुजी ने फिर उनको कहा यह सारे रोगों की दवाई है तुमने सारी बना कर घर में रखी है रोगी दुखी होकर दवाई की इच्छा वाले होकर तुम्हारे पास आते हैं तुम नसों को देख कर विचार करते हो कि बुखार गर्मी का है, सर्दी का है या कफ करके है जब अच्छी तरह परख लेते हो तो दवाई दे देते हो फिर सुख के लिए दवाई सेवन करने का ढंग बताते हो फिर उसके दुख को दूर करते हो धीरे-धीरे मनुष्य आसान हो जाता है जो दवाई तुमने रखी होती है रोगी हृदय में दवाई की इच्छा करके आते हैं और तुम्हें मिलते हैं वैध के बगैर रोग नहीं जाता है यह सारे निश्चय रूप में जानें इस तरह ही जो मेरे गुरसिख सिख है वो पहले यह देखते हैं कि सिखी देने का कौन अधिकारी है कर्म उपासना जा ज्ञान जिस तरह का अधिकारी है उस तरह का ही बयान करते हैं रहनी बताकर गुणों को देते हैं वो सिख जल्दी ही कल्याण प्राप्त कर लेते हैं जो अधिकार के बगैर उपदेश देता है कल्याण तो कहीं पर रहा जबकि कलेश पैदा हो जाता है साध संगत की बहुत भारी महिमा है इसी करके श्री गुरु जी ने उच्चारण किया है एक तीरथ नाम का सिख था वो बादशाहो  की फौज में नौकरी करता था वो श्री गुरु हरगोबिंद जी की शरणी आया हाथ जोड़कर उसने कहा मैं सारा दिन अपनी कीरत करने में लगा रहता हूं नाम जपने का कोई समय नहीं मिलता हमारा उद्धार कैसे होगा गुरु जी ने मुख से उपदेश का उपचारण किया नित संतों की सेवा करे भोजन कपड़े देकर उनको सुख दो जो गऊ को घास और दाना देता है वही मनुष्य दूध प्राप्त करता है इस तरह साध की सेवा करो जैसे कैसे वह जरूर प्रसन्न होंगे वो उदारता का आसान रास्ता बता देंगे फिर भगत ज्ञान को दृढ़ कर लेता है यह सुनकर वो सिख गुरुजी से पूछने लगा मैं संत कैसे पहचानो जिसको देखकर मैं सेवा करूं तब सतगुरु जी ने उस सिख को विधि बताई एक राजे ने अभिलाषा की अपनी आंखों से हंसो को कैसे देखें वो बहुत पंछियों की अपने महलों में सेवा करने लगा सारे पंछियों को कई प्रकार का चोगा पाता था देशों विदेशों में से पंछी आते थे पंछी चोगा चुग कर बहुत जस फैलाते थे और मानसरोवर झील के पास भी जाते थे हंसो ने सुनकर सभी को कहा हम भी बादशाह के महलों में जाएंगे वहां जाकर बहुत शरदा बढ़ाइए जहां पर नित पंछी चोगा चुगते हैं जब हंसों की जोड़ी वहां पर आई तो उन्होंने आकर अपना स्वरूप दिखा दिया लोगों ने देख कर जब राजे को बताया राजा प्रसन्न होकर दूध और मोती ले आया तो हंस की जोड़ी के आगे रख दिया हंस ने दूध और पानी अलग करके दूध पी लिया और मोती खा लिए जो गोल बहुत कीमती और अमुलक मोती थे वो अपने अंदर से बाहर निकाल दिए फिर हंस उड़ कर अपने देश चले गए राजे ने बहुत प्रसन्न होकर कीमती मोती उठा लिए जब उन मोतियों की जौहरी से परख करवाई तो यह पता चला कि राजे के पास जितना भी निजी धन था वो मोती उससे भी कीमती थे इस करके तुम सभी की सेवा करो जो तुम्हें आकर मिलेंगे वो तुम्हें ब्रह्म ज्ञान देंगे भाई तीरथ गुरुजी के वचन सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और संतों की सुखदायक सेवा करने लगा वाहेगुरु का नाम सिमर के सुख पाता था और अंत समय गुरुजी के पास चला गया इस तरह ही पावा धीरो नाम का एक सिख उज्जैन में रहता था और अपने घर में गुरु जी की भक्ति करता था कथा कीर्तन सुनता था और सुनाता था दो पहर रात को सो कर बतीत करता था शे पहर भक्ति करता रहता था साध संगत से मिलकर बहुत बुद्धिवान हो गया था 6 महीने के पीछे गुरुजी के पास आता था तो दर्शन करके आनंद प्राप्त करता था एक दिन गुरुजी से पूछने लगा संतो के क्या लक्षण होते हैं उस सिख की बात सुनकर सच्चे पातशाह धन श्री गुरु हरगोबिंद जी ने कहा जिसको प्रभु मालिक के नाम के मंदिर की दात मिली है और जो सर्व व्यापक स्वामी का सिमरन करता है जो पीड़ और खुशी को एक समान जानता है और जिसकी रोह रीति पवित्र और वैर रहित है जो सारे जीवो पर मेहरबान है और अपने पांचों प्राण नाशिक पापों को काबू कर लेता है जिसकी खुराक स्वामी की सिफत सलाह है और पानी अंदर कमलवान और माया अंदर निरले विचरता है जो दोस्त दुश्मन की एक समान सेवा करता है और केवल स्वामी की भक्ति को प्यार करता है जो अपने कान से पराई निंदा नहीं सुनता और अपने हंकार को मारकर सभी की धूड़ बन जाता है जिस किसी में यह 6 गुण है गुरुजी ने कहा उसका नाम मित्र संत और पूर्ण मनुष्य है मन को सदा सिनेमर रखें और अपने आप को सब की धूड़ समझे इससे बुद्धिवान परख लेते हैं वो ही संत बहुत गुणों वाला होता है ऐसे संतों की संगत से भैड़ी मत दूर होती है और सेवा करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है यह सुनकर भाई धीरो बहुत प्रसन्न हुआ और अपने घर को चला गया तो उसने संतो वाले सारे शुभ लक्षण धारण कर लिए इस तरह बहुत सिखों का बुरहानपुर गांव में मेल हुआ भाई भगवान दास भगत थे, होर बोदला,मलक कटारू,पृथी मल जनांद,बुध सारू,ढलू भगत, स्वामी दास बदावन और सुंदर राग, सिख इकट्ठे होकर मिलकर कीर्तन करने लगे फिर सभी इकट्ठे होकर गुरु जी के दर्शनों के लिए आए फिर इस तरह बहुत सिखों का बुरहानपुर गांव में मेल हुआ फिर सभी इकट्ठे होकर गुरु जी के दर्शनों के लिए आए उन्होंने आकर गुरु जी के दर्शन किए अनेक प्रकार के उपहार अर्पण किए सिर धर के गुरुजी के चरण कमलों पर माथा टेका कई दिन वह गुरु जी के दर्शन करते रहे और जज्ञासा धारण करके बैठे रहे कहने लगे हमें कोई अच्छी मत दो ताकि हम भवसागर से पार हो जाए उनकी बात सुनकर श्री गुरु हरगोबिंद जी ने कहा एक अच्छी धर्मशाला बनाओ वहां पर रोज सुबह स्वख्ते आकर मिलो गुरबाणी को सुनो और सुनाओ अर्थ विचारो और कथा करो फिर कमाई को मन में धारण कर लो आरती के समय चरण कमलों से लगकर अरदास बिनती करो और फिर अपने घरों को चले जाओ धर्म की कृत करते कभी भी झूठ ना बोले फिर जब रहरास का समय हो तो रहरास का पाठ करो पहर रात तक कीर्तन करो तो अंत में सोहेला साहब का पाठ करो पहर रात रहते ही स्नान करो फिर सुखों की खान बानी को जुबानी याद करो जिस सिख को भूखा और नंगा देखते हो उसको भोजन वस्त्र दो फिर तुम्हें सुख प्राप्त होगा फिर मस्स्या, संगरांद,दिवाली और वैसाखी आदि पूर्वो पर गुरुओं की कार इक्ट्ठी करो और कड़ाह प्रसाद तैयार करके सब में बाटो होमें  को छोड़ कर अपने मन को सिनेमर करो इस तरह सदा सत संगत करो एक बार एक कुएं में बिल्ली गिर गई पानी कैसे पवित्र हो एक पंडित से जाकर पूछा पंडित कहने लगा बिल्ली को बाहर निकाल लो और फिर हजार डोल पानी के कुएं में से निकालो पानी पवित्र हो जाएगा यह सुनकर मनुष्य चला गया और बिल्ली को निकालना भूल गया बहुत पानी कुएं में से बाहर निकाला पर बिल्ली की बदबू ना गई फिर जाकर पंडित को खबर दी कुएं का पानी पवित्र नहीं हुआ है मैंने कुएं में से बहुत पानी निकाला है यह सुनकर पंडित ने फिर कहा लज्ज डोल के साथ कुएं में से पानी निकालो उस मनुष्य ने बहुत पानी कुएं में से निकाला पर दुर्गंध ना गई दुर्गंध उसी तरह ही रही फिर दुबारा पंडित के पास जाकर कहा की कुएं में से दुर्गंध नहीं जाती यह सुनकर पंडित ने जाकर कुए को देखा बिल्ली पहले जैसे ही कुएं में पड़ी थी पंडित कहने लगा यह तुमने क्या किया है मुर्दा बिल्ली कुएं में ही रहने दी है वह तो वहीं पर पड़ी है जब तक इसे बाहर नहीं निकालोगे तो पानी कैसे पवित्र होगा सो सिखो इस तरह तन की होमें को बुरी समझो जो शरीर में धरी हुई है जब तक इस होमें को छोड़ोगे नहीं तब तक कल्याण प्राप्त करने के बारे में शंका है इस करके होमें को छोड़ने के लिए नित सूचेत होकर जतन करो धीरे-धीरे इसका नाश हो जाएगा फिर तुम्हारी आत्मा में ज्ञान का प्रकाश हो जाएगा इस तरह उन्होंने गुरु जी से वचन सुनकर बड़ा आनंद धारण किया और अपने घरों को चले गए और सतनाम का सिमरन करने लगे जैसे गुरु जी ने फरमाया था उस तरह ही कमाई करने लगे और उनका अंतः करण अंतर की इंद्रियां पवित्र हो गई जो जो सतगुरु जी ने रहनी बताई थी वो कुछ ही अपने नगर में जाकर करने लगे सभी ने जोग कल्याण प्राप्त किया और कहने लगे सतगुरु जी धन है जिन्होंने यह सुख दिया है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


Post a Comment

0 Comments