Guru Nanak Sakhi । सतगुरु नानक का मृतक शरीर क्यों नही मिला ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी महाराज की है आज की साखी में हम ये जानेंगे की सतगुरु नानक का शरीर हमें क्यों नहीं मिला सतगुरु नानक के शरीर को जलाया गया था या फिर दफनाया गया था आइए आज के पर्संग को बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ सरवन करते हैं ।

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी महाराज जी की है जब सतगुरु ने अपना शरीर त्यागा था उस समय दो विधियों का प्रचलन हुआ करता था एक वैदिक तरीके से शरीर को जलाया जाता था और दूसरा मुसलमानों में शरीर को दफनाया जाता था लेकिन गुरु जी ने इन दोनों परंपराओं से ऊपर उठकर निरपेक्ष जीवन जिया था उनका नारा था ना हम हिंदू और ना ही मुसलमान अर्थात मैं परम ज्योति का सेवक इंसान मात्र हूं इसलिए सतगुरु ने अपनी छोटी आयु में भी जनेऊ धारण करने से मना कर दिया था सतगुरु अपने आप को किसी धर्म या जाति से बंधना नहीं चाहते थे सतगुरु का कहना था कि हम सभी उस करतार के सेवक हैं अगर उसकी कोई जात नहीं है उसका कोई धर्म नहीं है तो हमारा कैसे हो सकता है और सतगुरु का कहना था कि स्त्री और पुरुष को भी लेकर बहुत सारे मतभेद उत्पन्न किए जाते हैं जबकि दोनों को समाज में एक जैसा सम्मान मिलना चाहिए साध संगत जी जहां पर सद्गुरु ने हिंदू समाज में हिंदुओं में होने वाले पखंडों का खात्मा किया वहां पर ही सतगुरु ने मुसलमानों में भी किए जाने वाले रूढ़िवादी विचारों का खंडन किया । कुछ लोगों ने प्रस्ताव रखा कि सतगुरु की राय जानने के लिए उनकी वाणी से सीख ली जाए तो इसके लिए कुछ प्रमुख सेवकों ने उनकी वाणी के कुछ विशेष शब्द जो कि मृतक संस्कार के लिए थे जोकि जनसाधारण के लिए एक सुंदर संदेश था जो सतगुरु ने दिया था उसको प्रस्तुत किया जिसका अर्थ है कि सतगुरु फरमान करते हैं कि मृत शरीर को जलाना चाहिए या फिर दबाना चाहिए बानी में सतगुरु कहते हैं कि जो मुसलमान लोग यह समझते हैं कि जिन शरीरों को मृत्यु के समय जलाया जाता है वह दोजक की आग में भाव नरक की आग में जलते हैं परंतु वह ये बात भूल जाते हैं कि जिस जगह मुर्दों को दबाया जाता है वहां की मिट्टी भी कभी-कभी कुम्हार के हाथों में लग जाती है और कुम्हार उस मिट्टी का बर्तन बनाने के लिए ले जाता है और उसको घड़ के मिट्टी के बर्तन और इंटे बनाता है और अंत में मुस्लिम की कब्र की मिट्टी भी आग में जलती है और पुकार करती है और रोती है इसलिए मुक्ति का जलाने और दफनाने से कोई संबंध नहीं है हे नानक ! जिस करतार ने इस जगत को बनाया है केवल वही इस भेद को जानता है और आगे सतगुरु फरमाते हैं कि किसी को जलाया जाता है किसी को दफनाया जाता है किसी को कुत्ते खाते हैं किसी का जल प्रभा कर दिया जाता है और कोई सूखे कुएं में रख दिए जाते है परंतु हे नानक ! शरीर को जलाने से और दबाने से दफनाने से यह पता नहीं लगता कि रूहे कहां जा बस्ती हैं इस रचना को सुनकर सभी ने एकमत होकर कहा कि गुरुजी की इच्छा के अनुसार परंपरा से ऊपर उठकर कोई नई विधि अनुसार बिना कर्मकांड के उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाए इस प्रकार सद्गुरु का शरीर जल प्रवाह कर दिया गया, ताकि उनकी इच्छा अनुसार उनकी कोई समाधि या जगह ना बन सके साध संगत जी जब सतगुरु नानक बनारस में कबीरपंथी के लोगों को मिले थे तो सतगुरु ने उनकी वाणी को अपनी पोथी में शामिल कर लिया था जो कि उनकी अपनी विचारधारा के अनुरूप थी जिसका एक शब्द इस प्रकार है कि हिंदू लोग मूर्तियों की पूजा कर कर के दुखी हो रहे हैं मुसलमान खुदा को मक्के में मौजूद समझकर पूजे जा रहे है हिंदुओं ने अपने मुर्दे जिला दिए और मुसलमानों ने दबा दिए और इसी बात पर झगड़ते रहे कि वह प्रभु कैसा है हे प्रभु यह बात समझ में ना आई, सतगुरु नानक की मृत्यु के बाद क्या क्या हुआ उस पर बहुत सारे ज्ञानियों के अपने अपने मतभेद है कि जब सतगुरु नानक की मृत्यु हुई तो हिंदू और मुसलमानों में इस बात को लेकर झगड़ा हुआ कि कौन उनके शरीर को जलाएगा और कौन दफनाएगा तो कहते हैं कि सतगुरु का शरीर फूलों में परिवर्तित हो गया था कुछ लोग कहते हैं कि जबकि सतगुरु का परिवार था तो फिर ऐसे मतभेद क्यों हुए कि उनके शरीर को कौन जलाएगा और कौन दफनाएगा उनका शरीर जलाया जाएगा या फिर दफनाया जाएगा, साध संगत जी यह वाक्य जैसा सरदार जसवीर सिंह जी ने लिखा है वह सार्थक लगता है साध संगत जी आपके इस विषय पर क्या विचार हैं कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें साध संगत जी कहते हैं कि जब सतगुरु नानक ने शरीर छोड़ा था तो उसके बाद सतगुरु अंगद देव जी सतगुरु नानक बन गए थे और उनका हृदय किसी भी फल की इच्छा नहीं रखता था वह तो केवल प्रभु चरणों में लीन रहना चाहते थे तो सतगुरु का आदेश पाते ही उनकी इच्छा के अनुसार उनकी प्रसन्नता के लिए अपने नगर खडूर लौट गए खडूर लौटकर सतगुरु सीधे अपनी बुआ बिराई जी के यहां पर पहुंचे और उन से अनुरोध किया कि मुझे एकांतवास के लिए एक कमरा चाहिए और मेरे यहां पर होने का किसी को भेद ना जिया जाए यहां तक कि मेरे परिवार को भी नहीं क्योंकि मैं चाहता हूं कि मेरी बंदगी में कोई बाधा ना डाल सके तो सतगुरु की बुआ जी ने कहा कि ऐसा ही होगा तो बुआ की यह बात सुनकर सतगुरु अपनी बंदगी में लीन हो गए और उधर सतगुरु नानक ने अपना शरीर त्याग दिया और परम ज्योति में लीन हो गए तो साध संगत जी जब यह बात दूर दूर तक जा पहुंची सतगुरु नानक ने शरीर त्याग दिया है और परम ज्योति में लीन हो गए तो संगत उनके उत्तराधिकारी को देखने के लिए वहां पर जा पहुंची और उनके दर्शनों को उमड़ पड़ी परंतु करतारपुर में आने के बाद उन्हें यह मालूम हुआ कि उनके उत्तराधिकारी उनके सेवक भाई लहना जी हैं उनके पुत्र नहीं, यह संदेश पाकर संगत खडूर नगर में उनके दर्शनों के लिए पहुंच गई लेकिन उन को निराश होना पड़ा क्योंकि उनको सतगुरु नानक के उत्तराधिकारी श्री गुरु अंगद देव जी वहां पर कहीं भी दिखाई ना दिए बुआ बिराई जी अपने दिए गए आश्वासन पर पूरी तरह पहरा दे रही थी इस तरह कई दिन बीत गए तो संगत व्याकुल हो उठी तो वह युक्ति सोचने लगे कि श्री गुरु अंगद देव जी को किस प्रकार और कहां ढूंढा जाए तो कुछ श्रद्धालु भक्तजनों ने बाबा बुड्ढा जी से विनती की कि हमें पता नहीं कि गुरु अंगद देव जी कहां गए हैं कृपया हमारी उन्हें ढूंढने में मदद करें तो बाबा बुड्ढा जी संगत को लेकर खडूर नगर में पहुंचे और वहां पर उन्होंने युक्ति से काम लिया और गुरु घर के कीर्तनीय भाई बलवानडा को कीर्तन करने के लिए कहा और संगत उनके साथ कीर्तन करते हुए खड़ूर नगर की गलियों में घूमने लगी तो साध संगत जी आगे क्या हुआ यह देखने के लिए आप इस चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए ।

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By Sant Vachan


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