Sant Vachan Sakhi । एक महान राजा महात्मा भरथ के चरणी क्यों पड़ा !


 

साध संगत जी आज की साखी महात्मा जड़ भरथ की है जब एक राजा महात्मा जड़ भरथ की खोज में निकला तो उसकी महात्मा जी से क्या बातचीत हुई, आईए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग श्रवण करते हैं ।

"जो बरताए साई जुगत नानक ओ पुरख कहिये जीवन मुक्त" परमात्मा जो कुछ भी बरता रहा हैं उसको वह जीवनमुक्त वाला पुरुष युक्ति सेहत ही निश्चय करता है कि परमात्मा ने जो किया है वह ठीक किया है अथवा इंद्रियों को जो भी बटता रहा है वह युक्त पूर्ण ही बटता रहा है गुरु जी कहते हैं कि वह पुरुष जीवन मुक्त अवस्था वाला पुरुष है उसको जीवन मुक्त अवस्था वाला पुरुष कहा जाता है साध संगत जी किसी देश का एक राजा था उसके घर संतान नहीं थी तो बहुत यतन करने पर भी जब संतान नहीं हुई तो उसने बहुत लोगों से ही संतान उत्पत्ति का साधन पूछा तो उसने एक ज्योतिष से पूछा, ज्योतिष ने कहा हे राजन अगर तुम संतों की सेवा करोगे तो उनकी कृपा से तुम्हें जरूर संतान प्राप्त होगी तो राजे ने नदी के किनारे पर एक बड़ा आश्रम बनाया तो वहां पर बहुत साधु संत महात्मा आने लग गए तो इस तरह राजा अपनी पत्नी के साथ हर रोज वहां पर अन्नदान, वस्त्र दान आदि करने लग गया तो उसकी सेवा से प्रसन्न होकर एक महात्मा ने राजा को कहा कि हे बादशाह तू किस भावना से सेवा कर रहा है तो राजे ने झोली फैलाकर महात्मा से कहा कि हे महात्मा बाकी तो सब कुछ है लेकिन एक मीठी दात पुत्र की नहीं है आप कृपा करो हमारे घर में पुत्र पैदा हो महात्मा ने कहा कि हे राजन फिक्र मत करो तुम्हारे घर 2 पुत्र पैदा होंगे एक को राजा बना देना और दूसरे को साधु बना देना और अपना सारा राजपाट अपने एक पुत्र को देकर खुद भी इस मार्ग पर चलना इस मार्ग पर विचरण करना तो संतों की कृपा से उनके आशीर्वाद से राजा के घर दो पुत्र पैदा हुए उस दिन के बाद राजा के अंदर संत महात्माओं की सेवा को लेकर अंदर बहुत शरदा पैदा हो गई उनके प्रति बहुत सम्मान पैदा हो गया, राजा हर रोज सेवा करने लग गया जिससे राजे के मन को बड़ी शांति आने लगी वह अंदर आनंदित महसूस करने लगा तो शास्त्रों में उसने जीवनमुक्त अवस्था के बारे में पढ़ा और जीवन मुक्त कर देने वाले महात्मा की तलाश करने लग गया तो तलाश करते समय मालूम हुआ कि जड़ भरथ महात्मा है जिनके अंदर जीवनमुक्त के सभी लक्षण है साध संगत जी जीवनमुक्त महात्मा के अंदर जो 5 लक्षण होते हैं पहला हर समय अपने स्वरूप के बारे में ज्ञान रहना, दूसरा तृष्णा और वासना आंधी से रहित होना, तीसरा किसी के साथ भी वाद-विवाद नहीं करना चौथा हर समय दुख सुख का अभाव होना, गुरबाणी में श्री गुरु अर्जन देव जी फरमाते हैं "जो नर दुख में दुख नहीं माने, सुख स्नेहो हर भय नही जागे, कंचन माटी माने, नह निंदा नह उस्तत जागे, लोभ मोह अभिमानना, हर सोग ते रहे न्यारो, नाहें मान अपमाना, आसा मनसा सगल त्यागे, जग ते रहे निराशा, काम क्रोध जे परसें नहिं, ते घट भ्रम निवासा" और पांचवां है कि हर समय मन में खुशी रहनी और हर समय मस्त रहना इसी तरह के पांच गुण जड़ भरथ महात्मा में दिखाई दिए थे राजा को जड़ भरथ महात्मा के दर्शन करने की बड़ी तांग पैदा हुई अंदर कशिश पैदा हुई तो राजा ने जड़ भरथ महात्मा की परख करने के लिए अपने बाग में एक नीम का पौधा लगाया हुआ था और वह संतो को कहता था कि मेरे बाग में आम का वृक्ष लगा हुआ है और उस पौधे पर छोटे-छोटे आम लगे हुए हैं आप उनका सेवन करके जाना, तो ये देखकर संत महात्मा राजे को कहते थे कि हे राजन यह तो नीम का वृक्ष है आम का नहीं और इतना कहकर वह महात्मा चले जाते थे तो राजा समझ लेता था कि यह जड़ भरथ महात्मा नहीं है राजे ने अपने बाग में एक तोता भी रखा हुआ था जो मीठे मीठे वचन बोलकर संतो को प्रसन्न करता था और आए गए संतो को वह कहता था कि संत जी मैंने सुना है कि प्रभु का नाम जन्म मरण के बंधन को काट देता है लेकिन मेरा जो लोहे का पिंजरा है ये नहीं कटता मैं दिन-रात उसका नाम लेता रहता हूं इस करके कोई तरीका बताओ जिससे कि मेरा यह बंधन टूट जाए तो युक्तियां उसे बताई गईं लेकिन उसका पिंजरा ना टूटा तो आखिर एक दिन जड़ भरथ महात्मा भी वहां पर आ गए तो जब वह अंदर गए तो उस तोते ने उनका बहुत मीठे मीठे वचनों से स्वागत किया और महात्मा के आगे प्रश्न किया कि महात्मा जी कोई युक्ति बताएं जिससे कि यह लोहे का पिंजरा टूट जाए तो संतो ने कहा कि मन इंद्रियों को रोककर मुर्दे की तरह लेट जाओ यह पिंजरा भी टूट जाएगा तो साध संगत जी राम-राम जपने के कारण तोते का हृदय पहले ही शुद्ध था, संतो के वचनों के कारण जिस समय वह मन इंद्रिय को रोक, मुर्दे की तरह है प्राण त्याग कर लेट गया और इतनी देर में राजा गया तो तोते ने पहले की तरह मीठे वचन बोलकर सत्कार ना किया तो राजे ने माली से पूछा कि तोता कहां पर है तो माली ने देख कर कहा कि वह तो मरा हुआ है तो उस समय राजा ने उसको अपने पास बुला कर तोते को पिंजरे से बाहर निकाला, उसके ऊपर हाथ फेरा और पानी छिड़का लेकिन तोते की आंख नहीं खुली फिर राजा ने कहा कि इसको बाहर खुली हवा में छोड़ दो फिर ठीक हो जाएगा तो जिस समय तोते को खुली हवा में छोड़ दिया गया तो उसने देखा कि अभी मेरे पास कोई भी नहीं है अब मेरे पास समय है तो समय देखकर तोते ने उड़ान भरी और वृक्ष की ऊंची डाल पर जाकर बैठ गया और जड़ भरथ जी का बहुत धन्यवाद किया कि इन महापुरुषों के ज्ञान से ही मेरी मुक्ति हुई है तो उस समय राजे को इस बात की खबर हुई तो वह भी संतों के चरन पड़ा और आनंदित होकर महात्मा से पूछने लगा कि इस वृक्ष के फल पक कर बड़े हो जाते हैं और मीठे हो जाते हैं आप फल खा कर जाना जल्दी जाने की कोशिश ना करना तो महात्मा ने वहां से जल्दी जाने की कोई बात नहीं कही तो ऐसे  राजा ने उनकी परख की, लेकिन संतों का मन किसी भी परिस्थिति में नहीं उलझा, तो हार कर के राजा ने महात्मा के आगे विनती की कि कृपा करके मुझे भी ज्ञान दें कि मैं भी अपने घर रहता हुआ सुख दुख से कैसे ऊपर उठ जाओ और जीवन मुक्त अवस्था के आनंद को प्राप्त करूं तो महात्मा ने कहा कि हे राजन तीन गुण ही मनुष्य को सुख और दुख देते हैं तूं तीनों गुणों को त्याग दें तेरा इन तीन गुणों से कोई भी संबंध नहीं है तेरा स्वरूप निर्गुण है जिस तरह बदाम रोगन का बदाम के बूटे पत्ते, टहनियों से कोई संबंध नहीं है बदाम के ऊपर के छिलके को तोड़कर और उसके गिरी को खूंटे में डाल कर उसको डंडे के साथ रगड़ कर उससे बदाम रोगन निकाला जाता है और बाकी का फेंक दिया जाता है इस तरह तीनों गुण तीनों कारण सुखम स्थूल शरीर, फोक रूप हैं तू इन तीनों में रहता हुआ भी इन तीनों से अलग है जैसे फोग ने अपने अंदर बदाम रोगन को अपने अंदर छिपा रखा है फोग बदाम का बंधन रूप है इसी तरह फोक रुप इन तीन गुणों ने और इन तीन शिविरों को छुपा रखा है इसी तरह तेरे अंदर सभी गुण में बंधन रूप है इसलिए तेरे इस फोक रुप में यह सारे बंधन रूप है विचार द्वारा इन सभी को त्याग कर तू मुक्त रूप हो जा माता-पिता, इस्त्री संबंधित आज जितने भी तेरे संबंधी है इनको नाशवान समझकर छोड़ दे यह तेरे संबंधी नहीं है यह तो तेरे शरीर के संबंधी है इनको त्याग दें और फिर की ममता को भी छोड़ दे और मन को भी विक्षेप समझकर त्याग दें त्रिगुणात्मक माया जो सब का कारण है उसको भी त्याग दें जिस समय माया रूप तीनों गुणों को त्याग देगा तो तू जीवन मुक्त हो जाएगा तो राजा जड़ भरथ महात्मा के इस ज्ञान को सुनकर तीनों गुणों को त्याग कर रहने लग गया, साध संगत जी आज के प्रसंग की यहीं पर समाप्ति होती है प्रसंग सुनाते हुए अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan

Post a Comment

0 Comments