आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

सतिगुर की परतीति न आईआ सबदि न लागो भाउ ॥  ओस नो सुखु न उपजै भावै सउ गेड़ा आवउ जाउ ॥  नानक गुरमुखि सहजि मिलै सचे सिउ लिव लाउ ॥१॥  मः ३ ॥  ए मन ऐसा सतिगुरु खोजि लहु जितु सेविऐ जनम मरण दुखु जाइ ॥  सहसा मूलि न होवई हउमै सबदि जलाइ ॥  कूड़ै की पालि विचहु निकलै सचु वसै मनि आइ ॥  अंतरि सांति मनि सुखु होइ सच संजमि कार कमाइ ॥  नानक पूरै करमि सतिगुरु मिलै हरि जीउ किरपा करे रजाइ ॥२॥ 

जिस मनुख को सतगुरु पर भरोसा नहीं बना और सतगुरु के शब्द में जिस का प्यार नहीं लगा, उस को कभी सुख नहीं, चाहे (गुरु के पास) सौ बार जाये।  गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! अगर गुरु के सन्मुख हो कर सच्चे में लिव जोड़े तो प्रभु सहजे ही मिल जाता है॥ हे मेरे मन! ऐसा सतगुरु खोज, जिस की सेवा करने से तेरा सारी उम्र का दुःख दूर हो जाये, कभी जरा भी चिंता न हो और (उस सतगुरु के शब्द से तेरा अहंकार जल जाये, तेरे अंदर से कूड़ की दिवार दूर हो जाये और मन में सच्चा हरी आ बसे, और हे मन! (उस सतगुरु के बताये हुए) संजम में सच्ची काम कर के तेरे अंदर शांति और सुख हो जाये। गुरू नानक जी कहते हैं,  हे नानक! जब हरी अपने रजा में कृपा करता है तो (इस जैसा) सतगुरु पूरी बक्शीश से ही मिलता है॥२॥

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