बिहागड़ा महला ५ ॥ करि किरपा गुर पारब्रहम पूरे अनदिनु नामु वखाणा राम ॥ अम्रित बाणी उचरा हरि जसु मिठा लागै तेरा भाणा राम ॥ करि दइआ मइआ गोपाल गोबिंद कोइ नाही तुझ बिना ॥ समरथ अगथ अपार पूरन जीउ तनु धनु तुम्ह मना ॥ मूरख मुगध अनाथ चंचल बलहीन नीच अजाणा ॥ बिनवंति नानक सरणि तेरी रखि लेहु आवण जाणा ॥१॥
हे सब से बड़े! हे सरब-गुण संपन्न प्रभु! (मेर ऊपर) कृपा करो, में हर समय तुम्हारा नाम सुमिरन करता रहूँ, आत्मिक जीवन देने वाली तेरी बानी उचारता रहूँ, में तेरी सिफत सलाह के गीत गता रहूँ,मुझे तेरी रजा मीठी लगती रहे। हे गोपाल! हे गोबिंद! (मेरे ऊपर) दया करो, तरस करो, तुम्हारे बिना मेरा और कोई सहारा नहीं है। हे सब ताकतों के मालिक! हे अकथ! हे बयंत! मेरा यह मन यह सरीर, यह धन-सब कुछ तेरा ही दिया हुआ है। गुरु नानक जी कहते हैं कि, नानक बेनती करता है-हे प्रभु! मैं मुर्ख हूँ बहुत मुर्ख हूँ, निआसरा हूँ, चंचल, कमजोर, नीच और अनजान हूँ। मैं तेरी सरन आया हूँ। मुझे जनम मरण के चक्र से बचा लो।१।
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