आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

सोरठि महला ५ ॥  हमरी गणत न गणीआ काई अपणा बिरदु पछाणि ॥  हाथ देइ राखे करि अपुने सदा सदा रंगु माणि ॥१॥  साचा साहिबु सद मिहरवाण ॥  बंधु पाइआ मेरै सतिगुरि पूरै होई सरब कलिआण ॥ रहाउ ॥  जीउ पाइ पिंडु जिनि साजिआ दिता पैनणु खाणु ॥  अपणे दास की आपि पैज राखी नानक सद कुरबाणु ॥२॥१६॥४४॥  

हे भाई! परमात्मा  हम  जीवों के किये बुरे-कर्मो का कोई ध्यान नहीं करता। वह अपने मूढ़-कदीमा के (प्यार वाले) सवभाव को याद रखता है, (वह, बल्कि, हमें गुरु मिला कर, हमें) अपना बना कर (अपने) हाथ दे के (हमे विकारों से) बचाता है। (जिस बड़े-भाग्य वाले को गुरु मिल जाता है , वह) सदा ही आत्मिक आनंद मानता रहता है॥१॥ हे भाई! सदा कायम रहने वाला मालिक-प्रभु सदा दयावान रहता है, (कुकर्मो की तरफ बड़ रहे मनुख को गुरु मिलाता है। जिस को पूरा गुरु मिल गया, उस के विकारों के रास्ते में) मेरे पूरे गुरु ने बंद लगा दिया ( और, इस प्रकार उस के अंदर) सारे आत्मिक आनंद पैदा हो गए॥रहाउ॥ हे भाई! जिस परमात्मा ने जान डालकर (हमारा) सरीर पैदा किया है, जो (हर समय) हमे खुराक और पोशाक दे रहा है, वह परमात्मा (संसार-समुन्द्र की विकार लहरों से) अपने सेवक की इज्ज़त (गुरु मिला कर) आप बचाता है। गुरु नानक देव जी कहते हैं, हे नानक! (कह की मैं उस परमात्मा से) सदा सदके जाता हूँ॥२॥१६॥४४॥

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By Sant Vachan


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