आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

तिलंग मः १ ॥ इआनड़ीए मानड़ा काए करेहि ॥ आपनड़ै घरि हरि रंगो की न माणेहि ॥ सहु नेड़ै धन कमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥ भै कीआ देहि सलाईआ नैणी भाव का करि सीगारो ॥ ता सोहागणि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥ इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥ करण पलाह करे बहुतेरे सा धन महलु न पावै ॥

अर्थ: हे अति अंजान जिंदे! तू इतना कोझा गुमान क्यों करती है? परमात्मा तेरे अपने ही हृदय-घर में है, तू उस (के मिलाप) का आनंद क्यों नहीं लेती? हे भोली जीव-स्त्री ! पति-प्रभू (तेरे अंदर ही तेरे) नजदीक बस रहा है, तू (जंगल आदिक) बाहरी संसार क्यों तलाशती फिरती है? (अगर तू उसका दीदार करना चाहती है, तो अपने ज्ञान की) आँखों में (प्रभू के) डर-अदब (के अंजन) की सलाईयां डाल, प्रभू के प्यार का हार-श्रृंगार कर।जीव-स्त्री तब ही सोहाग-भाग वाली और प्रभू-चरणों में जुड़ी हुई समझी जाती है, जब प्रभू-पति उससे प्यार करे।1।(पर) नासमझ जीव-स्त्री भी क्या कर सकती है यदि वह जीव-स्त्री प्रभू-पति को अच्छी ना लगे? ऐसी जीव-स्त्री भले कितने ही करुणा प्रलाप करती फिरे, वह प्रभू-पति का महल-गृह नहीं पा सकती। (दरअसल बात ये है कि) जीव-स्त्री भले ही कितनी ही दौड़-भाग करती रहे, प्रभू की मेहर के बिना कुछ भी हासिल नहीं होता, यदि जीव-स्त्री जीभ के चस्के लालच और अहंकार (आदि) में ही मस्त रहे, और सदा माया (के मोह) में डूबी रहे, तो इन बातों से पति-प्रभू नहीं मिलता। वह जीव-स्त्री बेसमझ ही रही (जो विकारों में मस्त रहके और फिर भी समझे कि वह पति-प्रभू को प्रसन्न कर सकती है)।2।(जिनको पति-प्रभू मिल गया है, बेशक) उन सोहाग-भाग वालियों को जा के पूछ के देखो कि किन बातों से पति-प्रभू मिलता है, (वे यही उक्तर देती हैं कि) चालाकी और जबरदस्ती त्याग दो, जो कुछ प्रभु करता है उसको अच्छा समझ के (सिर माथे पर) मानो, जिस प्रभू के प्रेम के सदका नाम-वस्तु मिलती है उसके चरणों में मन जोड़ो, पति-प्रभू जो हुकम करता है वह करो, अपना शरीर और मन उसके हवाले करो, बस! ये सुगंधि (जिंद के लिए) बरतो। सोहाग-भाग वाली सही कहतीं हैं कि हे बहन! इन बातों से ही पति-प्रभू मिलता है।3।पति-प्रभू तब ही मिलता है जब स्वै भाव दूर करें। इसके बिना किया गया और कोई उद्यम व्यर्थ है, चालाकी है। (जिंदगी का) वह दिन सफल जानो जब पति-प्रभू मेहर की निगाह से देखे, (जिस) जीव-स्त्री (की ओर मेहर की) निगाह करता है वह मानो नौ खजाने पा लेती है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! जो जीव-स्त्री पति-प्रभू को प्यारी है वह सोहाग-भाग वाली है वह (जगत-) परिवार में आदर पाती है, जो प्रभू के प्यार-रंग में रंगी रहती है, जो अडोलता में मस्त रहती है, जो दिन-रात प्रभू के प्रेम-रंग में मगन रहती है, वही सोहानी है सुंदर रूप वाली है तीक्ष्ण बुद्धि वाली है और समझदार कही जाती है।4।2।4।

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