तिलंग बाणी भगता की कबीर जी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बेद कतेब इफतरा भाई दिल का फिकरु न जाइ ॥ टुकु दमु करारी जउ करहु हाजिर हजूरि खुदाइ ॥१॥ बंदे खोजु दिल हर रोज ना फिरु परेसानी माहि ॥ इह जु दुनीआ सिहरु मेला दसतगीरी नाहि ॥१॥ रहाउ ॥ दरोगु पड़ि पड़ि खुसी होइ बेखबर बादु बकाहि ॥ हकु सचु खालकु खलक मिआने सिआम मूरति नाहि ॥२॥
हे भाई! (वाद विवाद की खातिर) वेदों कतेबों के हवाले दे दे कर ज्यादा बातें करने से (मनुष्य) दिल की शंकाएं दूर नहीं होती। (हे भाई!) अगर आप अपने मन को एक पल के लिए भी प्रभू चरणों में टिकाओ, तो आपको सब में ही भगवान बस्ता दिखेगा (किसी के विरुद्ध तर्क करने की जरुरत नहीं पड़ेगी) ।१। ऐ बंदे ! (अपने ही) दिल को हर रोज खोजो, (बहस) की घबराहट में परेशान होकर न भटकता फिर। यह जगत एक जादू जैसा है, एक तमाशा सा है, (इसमें से इस व्यर्थ वाद विवाद से ) हाथ आने वाली कोई चीज नहीं॥1॥रहाउ॥ बे समझ लोग ( दूसरे-मतों की धर्म पुस्तकों के बारे यह) पढ पढ कर (कि इन में जो लिखा है) झूठ (है), खुश हो हो कर बहस करते हैं। (परन्तु वो यह नहीं जानते कि ) सदा कायम रहने वाला भगवान खलकत में (भी) बस्ता है, (न तो वह अलग सातवें आसमान पर बैठा है और) न वह परमात्मा किशन की मूरत है॥2 ॥
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