सतगुरू द्वारा दिये गये नाम के सिमरन का सम्बन्ध सतगुरू के साथ होता है, इसलिये कुदरती तौर पर ध्यान सतगुरु की तरफ हो जाता है ।
जैसे जैसे सिमरन पकता है, सतगुरू के स्वरूप का ध्यान बनना शुरू हो जाता है । जब मन और आत्मा पूरी तरह सिमरन में लीन हो जाते हैं, तो अन्तर में सतगुरू का स्वरूप दिखाई देना और अनहद शब्द सुनाई देना शुरू हो जाता है, अन्तर में अनहद शब्द (घुन ) का सुनाई देना और सतगुरु का नूरी स्वरूप प्रकट होना सिमरन ध्यान का शिखर है
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