आसा ॥ जगि जीवनु ऐसा सुपने जैसा जीवनु सुपन समानं ॥ साचु करि हम गाठि दीनी छोडि परम निधानं ॥१॥ बाबा माइआ मोह हितु कीन्ह ॥ जिनि गिआनु रतनु हिरि लीन्ह ॥१॥ रहाउ ॥ नैन देखि पतंगु उरझै पसु न देखै आगि ॥ काल फास न मुगधु चेतै कनिक कामिनि लागि ॥२॥ करि बिचारु बिकार परहरि तरन तारन सोइ ॥ कहि कबीर जगजीवनु ऐसा दुतीअ नाही कोइ ॥३॥५॥२७॥
जगत में (मनुख की) जिन्दगी ऐसी ही है जैसा स्वपन है, जिन्दगी स्वपन जैसी ही है। परन्तु हम सब से उपर (सुखों के) खजाने-प्रभु को छोड़ कर, (इस स्वपन सामान जीवन को) सदा कायम रहने वाला जान कर इस को गांठ दे राखी है।१। हे बाबा! हम ने माया मोह के साथ प्यार लगा रखा है, जिस ने हमारा ज्ञान-रूप हिरा चुरा लिया है।१।रहाउ। भामभट आँखों से (दीये की लो का रूप) देख कर भूल जाता है, मुर्ख अग्नि को नहीं देखता। (उसी प्रकार) मुर्ख जीव सोने और स्त्री (के मोह) में फंस कर मौत की फाही को याद नहीं रखता।२। कबीर जी कहते हैं-(हे भाई! तूँ विकारों को छोड़ दे और प्रभु को याद कर, वोही (इस संसार-सागर में से) पार जाने का जहाज है, और वह (हमारे) जीवन का सहारा-प्रभु ऐसा है कि कोई और उस जैसा नहीं है।३।५।२१।
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