Baba Shri Chand Ji ki Sakhi । 360 भूखे साधू । न कोई सब्जी न कोई रोटी बनाने वाला ।

 

साध संगत जी सतगुरु नानक देव जी के पुत्र होने के कारण बाबा श्री चंद जी शक्तियों के भंडार थे गूंगे को बोलने लगा देना और बहरे को सुनने के काबिल कर देना और मुर्दों को जिंदा करना और राजाओं के हंकार तोड़ने और अनेक करामाते करनी, जिसके घर औलाद नहीं है उसको औलाद बक्ष्णी अपनी आस लेकर आए सेवक कि आस पूरी करनी और बेअंत करामातों के मालिक हैं सिखों के लिए बाबा श्री चंद जी सत्कार योग हैं

बाबा श्री चंद जी सतगुरु नानक देव जी के पुत्र होने के कारण बहुत सतिकार योग हैं सतगुरु नानक देव जी ने सिख पंथ की स्थापना की और बाबा श्री चंद जी को उदासियों का गुरु बनाया तो साध संगत जी एक बार बाबा श्री चंद जी एक नगर में धुना लगाकर करतार के ध्यान में लीन थे चेहरे पर बहुत तेज था और करतार के ध्यान में अंदर ही मस्त थे तो इतने में एक बिहार का सन्यासी अपने साथ 360 चेलों को लेकर देवी हिंगला जी के दर्शनों के लिए जा रहा था तो अचानक उसकी नजरें बाबा श्री चंद पर पड़ी तो जब उसने बाबा श्री चंद जी को इस तरह अंतर्ध्यान देखा तो उसने ऐसा समझा कि जैसे खुद परमात्मा ही धरती पर आकर आसन लगाकर बैठा हो, बाबा श्री चंद जी के तेज को देखकर उनकी ताप ना सहन कर सका, वहीं का वहीं खड़ा रह गया बाबा जी की मनमोहिनी सूरत ने उसके मन को मोह लिया और अंदर ही अंदर सोचने लगा कि ऐसे महान तपस्वी के दर्शन जरूर करने चाहिए, प्रेम की तार के साथ खींचे चले उस बिहारी सन्यासी को अपने इष्ट भगवान के रूप में बाबा श्री चंद जी के दर्शन हुए और महाराज जी के पास अपने चेलों के साथ आकर दर्शनों के लिऐ हाजिर हो गया, चरणों में नमस्कार कर कर बैठ गया, और अंदर ही सोचने लगा कि इन्हें देखा जाए कि यह कितने पहुंचे हुए साधु है तो उसके मन में यह बात आई ही थी की उतनी ही देर में महाराज जी की समाधि खुल गई, तो बाबा जी ने नाम खुमारी से भरे हुए नैनो के साथ उस सन्यासी की तरफ देखा, बस फिर क्या था बाबा जी के नूरी नैनो के वार उस सन्यासी से नहीं झेले गए, तो उसने सिर झुका कर अपनी बृति महाराज जी के चरणों में जोड़ ली और निमाना होकर विनती की कि महाराज जी इस गरीब पर कृपा करो, तो बाबा जी उसके दिल की बात जान गए और कहने लगे हे गिरि भगत जी यह इतनी बड़ी भीड़ लेकर कहां जा रहे हो तो आगे से भगत जी बोले कि स्वामी जी देवी हिंगला जी के दर्शनों के लिए जा रहा हूं तो बाबा श्री चंद जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि भगत जी सभी साधु आपके साथ ही हैं तो भगत जी ने कहा कि जी महाराज यह सभी मेरे साथ हैं और मेरे चेले है और यह सभी के सभी हिंगला जी के दर्शनों के लिए मेरे साथ जा रहे हैं तो उस गिरी सन्यासी ने महाराज जी को यह बातें कहीं लेकिन अंदर ही अंदर वह महाराज जी की परख करना चाहता था तो महाराज जी ने उसके अंदर की सभी बातें जान ली और महाराज जी कहने लगे कि अब जाने से पहले यहां पंगत लगा ले और भोजन ग्रहण कर ले और उसके बाद यहां से जाना तो यह सुनकर सन्यासी हैरान हुआ यह कैसे संभव होगा, कहीं पर कोई भट्ठी नहीं जलती दिखाई दे रही कोई सब्जी नहीं पकती दिखाई दे रही तो फिर यह कैसे संभव होगा, और फिर इतने साधुओं का भोजन तैयार करना इतना आसान भी नहीं है लेकिन जल्दी ही उसकी यह शंका भी दूर हो गई तो उसने महाराज जी की गजब लीला देखी बाबाजी ने भाई कंबलिया जी से एक पतीले के ऊपर लाल कपड़ा रखने के लिए बोल दिया, और हर साधु की मर्जी पूछकर उसकी इच्छा अनुसार भोजन उस पतीले में से निकाल कर भाई कंबलिया देते गए और साधु बहुत ही प्रेम के साथ भोजन ग्रहण करते गए तो जब सभी ने भोजन ग्रहण कर लिया तो उस सन्यासी ने महाराज जी के चरणों में अपना सिर झुकाया और उनको प्रणाम कर कर और अपने चेलों के साथ माता हिंगला जी के दर्शनों के लिए चल पड़े, तो वह संन्यासी जब चल पड़ा तो थोड़ी ही दूर जाकर रुक गया क्योंकि उसके पास एक छोटा सा पारस का टुकड़ा था जब भी साधुओं को भूख लगती थी तो वह उस पारस के टुकड़ों को किसी वस्तु के साथ छुआ करके उसे सोने में तब्दील कर देता था और फिर सोने को किसी गांव में जाकर बेच कर रसद लेकर आता था तो उनका वह पारस का टुकड़ा बाबा जी के पास ही रह गया इसलिए वह उसको वापस लेने के लिए बाबा जी के धुने के पास आ गए तो गिरी संन्यासी का चेहरा खुश्क पड़ गया उनकी आंखों के आगे अंधेरा आने लगा और टांगे लड़खड़ा रही थी तो जब इस तरह की दशा बाबा श्री चंद जी ने देखी तो बाबा श्री चंद जी ने अपने मुखड़े से कुछ वचन किए कि आओ भगत जी क्या बात है कौन सा विचार अब आपके मन में आया है जो फिर अपने चेलों के साथ आकर दर्शन दिए हैं अब आपकी क्या ख्वाइश है छुपाए ना दिल खोल कर अपनी बात करें, आओ बैठो महापुरषों संत कोई बात नहीं छुपाते बाबा जी के ये वचन सुनकर सन्यासी गिरी बाबा जी के चरणों में गिर पड़ा और रो-रोकर दातार के चरण आंसुओं से धो दिए तो बाबा जी ने उसे उठाया और कहने लगे कि भगत जी बताएं कि ऐसी कौन सी विपता आ गई है, आपने ऐसे क्यों रोना शुरू कर दिया है किस चीज की कमी हो गई है इतना वैराग क्यों हो गया है आप हमें बताएं हम आपका दुख दूर करने की कोशिश करेंगे आखिर ऐसी कौन सी बात है जिसका इलाज नहीं है हमें बताएं कुछ भी छुपाए ना तो जब भगत जी को बाबा श्री चंद जी ने इस तरह के वचन कहे तो भगत जी को कुछ दिलासा हुआ, गम के साथ आए हुए माथे पर पसीने को साफ़ किया और दोनों हाथ जोड़कर बोले की जानी जान जी आप अंतर्यामी हो मैं आपको क्या बताऊं सन्यासी बाबा हूं त्यागी हूं बात करते समय आपको बट्टा लगता है और जीवित रहने के लिए भोजन की जरूरत है और भोजन की जरूरत को पूरा करने के लिए माया के बिना इसे हासिल करना असंभव है, दाता जी मेरे पास एक पारस का टुकड़ा था जिसको मैं लोहे के साथ छुआ करके उसको सोने में तब्दील कर लेता था, और वह सोना बेच कर मेरे जो साथ चेले हैं और जो श्रद्धालु है उनको भोजन करवाता था मेरे भगवान जी वह पारस का टुकड़ा मैं यहां कहीं भूल गया हूं कृपा करके मुझे बख्श दो मैं आपका बहुत धन्यवाद होगा, तो बाबा श्री चंद जी मुस्कुरा कर बोले की भगत जी बस इतनी सी बात थी केवल उस छोटे से टुकड़े के लिए अपने मन की अवस्था ऐसी बना ली है क्या आपको उस प्रभु पर भरोसा नहीं जो सिरजनहार है कि वह रिजक दाता नहीं, क्या वह पत्थर में बस रहे कीड़ों को रिज्क नहीं देता, जो उसको दिन रात सिमरते हैं क्या वह उनको भूखे मारता है, संन्यासी जी सन्यास धारण करके भी आपने अपने मन को इतनी भी संखा नहीं दी, जैसे-जैसे बाबा जी वचन कर रहे थे तो गिरी सन्यासी का दिमाग सुन हो रहा था और वृत्ति पारस के टोटे की तलाश में लगी हुई थी तो उसने फिर बाबा जी से विनती की कि पारस का टुकड़ा मुझे बख्श दो आप दीनदयाल हो मेरी चोली में खैर डाल दो, आपके पास किस चीज की कमी है आपके दर पर मेरी निमाने की यह छोटी सी मांग है कृपा करके उसको पूरा करें तो ये सुनकर बाबा जी कहने लगे कि भगत जी एक पत्थर का टुकड़ा यहां पर पड़ा तो जरूर था लेकिन हमने उसे दरिया में फेंक दिया है तो बाबाजी के मुंह से निकले यह वचन सन्यासी के मन के ऊपर पत्थर की तरह लगे, पारस को ढूंढने के लिए सन्यासी के प्राण भी वजूद में से निकल कर उसको ढूंढने के लिए तैयार थे लेकिन जानी जान बाबा जी यह जान गए कि माया के मोह ने इस के दिल को सख्त धक्का दिया है to बाबा जी कहने लगे कि सन्यासी जी आपको उस पत्थर की बहुत लोड है कि आप अपना पत्थर दरिया में से पहचान लोगे तो जैसे मुर्दा जिस्म में जान आ जाती है ऐसे सन्यासी जल्दी-जल्दी विनती करने लगा कि महाराज जी वह तो मेरी जीवन कुंजी है मेरी जिंद जान है मैं उसके सहारे ही माता हिंगलाज के दर्शन करता हूं और बाकी रही पहचानने की बात वह तो मैं जल्दी पहचान लूंगा तो ये सुनकर बाबा जी उठ खड़े हुए और भगत जी और सभी साधु को साथ लेकर दरिया के सिखर पहुंच गए और संन्यासी को कहा कि भगता मार नजर पानी की तरफ और जो तेरा पत्थर है उसे उठा ले तो जब भक्तों ने जल की तरफ नजर डाली तो सन्यासी की होश गुम हो गई तो उसने देखा कि लाखों ही पारस के पत्थर पानी में पड़े हुए थे और फिर हाथ जोड़कर विनती करने लगा कि महाराज जी मुझे बख्श लो और मुझे ऐसी नजर बख्श दो कि मैं अपना पारस पहचान सकूं तो बाबा श्री चंद जी उस पर दयाल हो गए और कहने लगे कि जा भगता जो भी तू पत्थर उठा लेगा वह तेरा ही होगा तो संन्यासी की खुशी की कोई हद ना रही जब उसने एक पत्थर उठाया तो वह उसी का निकल आया तो ये देखकर उसने बाबा श्री चंद जी के चरण पकड़ लिए और विनती की कि अब आज्ञा दें लेकिन बाबा श्री चंद जी उसकी अच्छी तरह से तसल्ली करवाने के लिए उसको अपने साथ धुने पर ले आए और फिर नई तरफ से वचन विलास शुरू किए बाबा जी कहने लगे कि भगत जी अब आप हिंगला जी के दर्शनों की इच्छा रखते हो तो सन्यासी ने कहा जी हां अब आप मुझे आज्ञा दें तो उसके बाद बाबा जी के मुख से प्यार भरे वचन निकले बाबा जी कहने लगे कि भगत जी अगर आप कहो तो आपका सफर खत्म कर दें आपको माता हिंगला जी के दर्शन यहीं पर करवा दें क्या आप यह दिल से चाहते हैं तो बताएं तो बाबा जी के यह अचंभित वचन सुनकर वह कहने लगे कि बाबा जी यह कैसे संभव हो सकता है यहां पर माता हिंगलाज के दर्शन कैसे हो सकते हैं मुझे इस बात की तसल्ली नहीं हो रही अगर आप यह संभव कर दे तो मैं आपके चरणों का सेवक हो जाऊंगा आपके दर का भिखारी बन जाऊंगा मैं अपना सन्यासी मत त्याग कर उदासी मत धारण कर लूंगा लेकिन मेरे भगवान जी पहले दर्शन करवाओ तो सही, इतनी देर क्यों लगा रहे हो तो बाबा जी कहने लगे कि भगत जी आप अपनी माता हिंगला जी को पहचान लोगे, तो भगत जी कहने लगे महाराज क्यों नहीं, जरूर पहचान लूंगा, माता जी की सूरत तो मेरे दिल में बसती है मैं उनको अपने दिल के तख्त पर बिठाई बैठा हूं लेकिन साक्षात तो उनके भवनों तक तो पहुंच कर ही दर्शन हो सकते हैं बाबाजी भगत जी के भूलेखों को देखकर मुस्कुरा रहे थे और भगत जी के प्रेम को लेकर प्रसन्न भी थे और बाबा जी कहने लगे कि बताएं भगत जी क्या मर्जी है क्योंकि आपकी मर्जी के साथ ही हमारी मर्जी है अगर आप कहे तो माता पर्तख हो जाए, गिरी भक्तों की हालत देखकर बाबा श्री चंद जी ने अपने धुने पर सेवा कर रही एक वृद्ध माता को कहा कि अपने भगत को दीदार दे तो इतना कहने की देर थी कि वह माता हिंगला का रूप अष्टभुजी माता बन गई तो भगत की हैरानी की कोई हद ना रही, तो उसने खूब माता के दर्शन किए और फिर बाबा श्री चंद जी के चरणों पर पड़ गया और विनती करने लगा कि कृपा निधान जी बक्श लो मुझसे भारी गलती हो गई है मैं भूलेखे में ही पढ़ा रहा मुझे नहीं पता था कि माता हिंगला जी आपके द्वार पर ही बसती है बाबा जी आप शक्तियों के भंडार हो इस निमाणे को अपना सेवक बना लो तो बाबाजी उसकी यह बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हो गए और दया में आ गए और बाबा जी ने उसको अपना सेवक बना लिया और उसको भगत भगवान की महान पदवी बक्शी और उसको धर्म का प्रचार करने की शक्ति दी तो बाबा भगत भगवान जी ने उदासी मत धारण करके 360 गद्दीयां पूर्व में कायम की थी साध संगत जी इस प्रकार सभी का स्थान दरबार साहिब श्री अमृतसर साहिब में मौजूद है और जो दर्शन अभिलाषी बड़े प्रेम और प्यार के साथ श्री अमृतसर साहिब दर्शन करके आते हैं उनको महान सुख की प्राप्ति हो जाती है, मुक्ति की आस लेकर जाने वाले भक्तों को मुक्ति प्राप्त होती है साध संगत जी आज के प्रसंग कि यहीं पर समाप्ति होती है प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों कि क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan










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