Guru Nanak Sakhi : धरती पर आने वाले भूकंपों को लेकर सतगुरु क्या कहते है ?

 

अरे भाई भूकंप आया है भूकंप लगता है बैल ने धरती को अपने एक सिंघ से दूसरे सिंघ पर रखा है अरे भाई धरती बैल के सिंघ पर है और बैल शिवजी भगवान का वाहन है पूरी धरती बैल ने अपने एक सिंघ पर उठा रखी है और जब बैल थक जाता है

तो सिंघ बदल देता है और इस अदला-बदली में ही भूकंप आ जाता है मियां हमने भी सुना है एक बैल है कुजाता उसी ने धरती उठा रखी है उसके 40,000 सिंघ और मुंह है सही कह रहे हों बैल तो है जिसने धरती उठा रखी है लोगों में ऐसी ही धारणाएं बैठे हुई थी कोई कुछ कहता था और कोई कुछ जब श्री गुरु नानक देव जी अपनी यात्राओं पर लोगों तक करतार का संदेश फैलाते हुए नगर नगर घूम रहे थे तब उन्होंने गुरबाणी के माध्यम से लोगों को संदेश दिया हे लोगों बैल और कुछ नहीं परंतु अकालपुरख का धर्म रूपी अटल नियम ही बैल है जो इस धरती को कायम रखे हैं और जिस पर धरती टिकी है यह धर्म कोई और नहीं दया का पुत्र है इस वाणी का भाव है कि अकाल पुरख ने अपनी मेहर कर कर धरती को कायम रखने के लिए धर्म रूपी नियम बना दिया है इस धर्म ने अपनी मर्यादा अनुसार संतोष को जन्म दिया है यदि कोई मनुष्य गुरु की वाणी को समझ जाए तो वह इस लायक हो जाता है कि उसके अंदर अकालपुरख का प्रकाश हो जाए वरना सोच कर देखो कि बैल पर धरती का कितना बेअंत भार है वह बेचारा इतनी भार को कैसे उठा सकता है दूसरी बात अगर धरती के नीचे बैल है उस बैल को सहारा देने के लिए नीचे और धरती है उस धरती के नीचे एक और उस धरती के नीचे एक और बैल इस तरह आखरी बैल के भार का सहारा बनने के लिए और कौन सा सहारा और आसरा होगा हे लोगों वह करतार स्वयंम ही धरती है उस धरती को आसरा देने वाला बैल भी स्वयंम है और स्वयंम ही आकाश है प्रभु स्वयंम ही अपने सदा स्थिर रहने वाले गुणों का प्रकाश करने वाला है स्वयंम ही जति है स्वयंम ही तानी है और स्वयंम ही संतोषी है इस प्रकार लोगों को वाणी के माध्यम से सही मार्ग दिखाकर गुरु जी अपनी अगली यात्रा को चले गए क्या सुनकर श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी के मां को अपना लिया अगर आप नहीं जानते हैं तो आइए सुनिए श्री गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई लहना था आपका प्रकाश जन्म 31 मार्च सन 1504 को ग्राम मती की सराय जिला फिरोजपुर पंजाब में पिता फेरूमल जी व माता दया कौर जी के घर में हुआ आपके पिता फेरूमल जी स्थानीय चौधरी तख्तमल के पास आय विहाये का हिसाब-किताब रखने के लिए मुनीम का काम करते थे आप के पिता फ़ारसी के विद्वान थे तथा गणित के अच्छे ज्ञाता होने के कारण वहीं खाते के कार्य में अच्छी तरह निपुण थे अतः उन्होंने अपने पुत्र लहना जी के लिए शिक्षा दीक्षा का विशेष प्रबंध किया वह सनातन धर्म को मानने वाले थे इसलिए वैष्णो देवी के भक्त थे वह धार्मिक कार्यों में बहुत रुचि रखते थे उनकी दिनचर्या में देवी पूजन एक अनिवार्य अंग था वह वर्ष में एक बार देवी दर्शनों के लिए जम्मू के निकट कटरा नगर जाया करते थे उनके इन कार्यों का बालक लहना जी पर पूर्ण प्रभाव था फेरूमल जी एक बहुत ही उज्जवल जीवन चरित्र वाले व्यक्ति थे लहना जी पर पिता के संस्कारों का गहरा प्रभाव था वह समाज सेवा में बहुत रुचि रखते थे अतः दीन दुखियों की सेवा उनका मुख्य लक्ष्य हुआ करता था उनको जब भी समय मिलता यात्रियों को जल पिलाने की सेवा करते थे वह सच्चे एवंम सुच्चे जीवन को महत्व देते थे बाल्य काल में जब वह अपने मित्रों के साथ खेलते थे तो कभी भी छल कपट का खेल ना खेलते और ना ही खेलने देते थे चौधरी तख्तमल की बेटी स्मराई जी जिनका घरेलू नाम बिराई था फेरूमल जी की मुंह बोली बहन थी अत: वह अपने भतीजे लहना से बहुत स्नेह करती थी उनका विवाह खड़ूर नगर के एक संपन्न परिवार के चौधरी महमे मे हुआ था कुछ समय के पश्चात बुआ बिराई जी ने अपने भतीजे लहना जी का विवाह भी खड़ूर से 2 मील की दूरी पर स्थित सिंदार गांव के एक समृद्ध परिवार देवी चंद मरवाहा की स्पुत्री कुमारी खेमवती के साथ करवा दिया जिनका घरेलू नाम खेवी जी था यह विवाह सन 1519 में हुआ उस समय लहना जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी उन्होंने अपने पिता के सहयोग में मते की सराय में एक छोटा सा व्यापार आरंभ किया इस व्यापार में किसानों से उनके उत्पाद खरीद कर उसके बदले में उन लोगों को घरेलू आवश्यकता की सामग्री देना था जोकि धीरे-धीरे विकसित होने लगा परंतु विदेशी आक्रमणकारियों के कारण देश में स्थिरता ना रही बहुत से नगरों में अफरा-तफरी फैल गई कानून व्यवस्था छिन्न-भिन्न होने के कारण लोग दिल्ली पिशावर के मुख्य मार्ग के निकटवर्ती क्षेत्रों को छोड़कर दूर दराज के क्षेत्रों में बसना उचित समझने लगे अत: ऐसे में लहना जी अपने ससुराल के निकट अपनी बुआ जी के नगर खड़ूर आ बसे उस समय उनकी आयु 20 वर्ष की थी खड़ूर नगर में भी उन्होंने वही वेवसाय अपनाया जो धीरे-धीरे फलने फूलने लगा यहां पर भी अनके पिता श्री फेरूमल जी ने दुर्गा देवी के भगतो की एक मंडली बना ली जो वर्ष में एक बार देवी दर्शनों के लिए साथियों सहित जाया करते थे 1626 में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा जिससे उनका देहांत हो गया अब घर का सभी प्रकार का कार्यभार लहना जी के कंधों पर आ गया लहना जी की क्रमश चार संताने हुए पुत्र दातु जी, दासु जी पुत्रियां अमरु जी तथा अनोखी जी इस प्रकार गुरु जी खंडूर नगर में खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे एक दिन प्रात काल खड़ूर नगर के कुए पर स्नान करते समय भाई लहना जी ने एक अन्य व्यक्ति के मुख से मधुर स्वर में कुछ पंक्तियां सुनी वह व्यक्ति गुरबाणी का पाठ कर रहा था जिस मालिक का सिमरन करने से सुख मिलता है उस मालिक को सदा याद रखना चाहिए जब मनुष्य ने अपने किए का फल खुद ही भोगना है तो फिर कोई बुरी कमाई नहीं करनी चाहिए जिससे बुरा फल भोगना पड़े बुरा काम भूलकर भी ना करें गहरी विचार वाली नजर मार कर देख लो कि इस बुरे काम का नतीजा क्या निकलेगा कोई ऐसा उधम ही करना चाहिए जिससे प्रभु पति से प्रीत ना टूटे मानव जन्म पाकर कोई नफे वाली मेहनत ही करनी चाहिए जिससे परमात्मा के द्वार पर आपको स्थान मिले यह पंक्तियां गाने वाले व्यक्ति थे खड़ूर नगर के भाई जोधा जी जो कि इसी गांव में एक श्रमिक का कार्य करते थे जैसे ही ध्यान पूर्वक यह पंक्तियां पूर्ण भाई लहना जी ने सुनी तो उन्हें अपने सभी समस्याओं का समाधान इस वाणी में साफ हो गया स्नान करने के पश्चात भाई लहना जी ने भाई जोधा से नम्रता पूर्वक पूछा आप जो रचना पढ़ रहे थे किस महापुरुष की है इस पर भाई जोधा जी ने उत्तर दिया रावी नदी के तट पर नए बसे नगर करतारपुर में एक पूर्ण समर्थ पुरष रहते हैं जिनका नाम नानक देव जी है वही इस वाणी के रचीयता है यह सुनकर भाई लहना जी को याद आ गया कि मेरे बुआ जी भी तो इन्ही महापुरुषों विषय में हर रोज़ चर्चा करती रहती है और वह उनके दर्शनों को कभी कबार जाती भी रहती है यह सब सोचकर भाई लहना जी मन ही मन विचार करने लगे कि मुझे भी इन महापुरुषों के दर्शन अवश्य करने चाहिए क्योंकि इनकी वाणी में जीवन का सार है जबकि हम लोग जो देवी पूजा की याद में भेटे गाते हैं वह अध्यात्मिक दुनिया में लुप्त होकर रह जाते हैं क्योंकि वह कोरी कल्पना मात्र से रची गई होती है जबकि यह वाणी ज्ञान पर आधारित है ऐसा प्रतीत होता है कि रचीयता प्रभु में विलीन होकर गा रहा है अब लहना जी ने एक निर्णय लिया कि इस वर्ष देवी दर्शनो के लिए जाऊंगा तो रास्ते में रुककर इन महापुरुषों के दर्शन भी अवश्य ही करता जाऊंगा शायद इनके यहां मुझे पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाए जिसके लिए मैं कई वर्षों से कोशिश कर रहा हूं भाई लहना जी अपने पिता फेरूमल जी के देहांत के पश्चात उनके स्थान पर खडूर नगर के देवी भक्तों का नेतृत्व किया करते थे इस वर्ष भी उन्होंने भक्त मंडली को कटरा देवी के स्थान ले जाने का कार्यक्रम बनाया अपने पंसारी की दुकान का कार्यभार अपने पुत्रों को सौंपकर स्वयं निश्चित समय मन में गुरु दर्शनो की अभिलाषा लिए देवी भक्तों की मंडली लेकर चल पड़े रास्ते में रावी नदी पार करके करतारपुर पहुंचे परंतु अपने अन्य साथियों को नगर के बाहर सराय में विश्राम करने का आग्रह किया ।

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By Sant Vachan


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