Guru Nanak Sakhi : जब बगदाद में लोग सतगुरु नानक को पत्थर मारने के लिए आगे बड़े तो क्या हुआ ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी महाराज जी के समय की है जब सिद्धदो ने सतगुरु नानक से प्रश्न किया कि महाराज जी उस कर्ता की साजी हुई सृष्टि में कोई तीन लोग कहता है कोई 14 भवन कहता है अब यहां पर केवल आप ही बताएं कि यह सभी कितने हैं

उनका यह प्रश्न सुनकर सतगुरु ने उत्तर में यह फरमाया कि "पाताल पाताल लख आगासा अगास" हे सिद्ध पुरुषों पाताला पाताल भी लाखों ही है और आगास भी लाखों है " उड़क उड़क भाल थके वेद कहन इक बात" यहां पर सतगुरु जी फरमाते हैं इन्हें ढूंढ ढूंढ कर थक गए हैं भाव की अंत नहीं पा सके हिंदू और मुसलमान दोनों ही इनका अंत ढूंढते ढूंढते थक गए हैं लेकिन इनका कोई अंत नहीं पा सका क्योंकि वह बेयंत हैं और चारों वेद भी एक ही बात कहते हैं कि वह बेयंत है और उसकी रचना अथाह है जिसका किसी ने अंत नहीं पाया भाव वेद भी वेयंत बेयंत कह कर ही पुकारते हैं जगतगुरु सतगुरु नानक देव जी महाराज जब इन पंक्तियों का आचरण करते हुए जब बगदाद पहुंचे और ठीक शहर के बाहर एक सरोवर के किनारे पर सद्गुरु ने डेरा लगाया, रात को सतगुरु ने आराम किया और सुबह अमृत वेले उठकर स्नान किया और श्री जपजी साहब का उच्चारण शुरू कर दिया तो साध संगत जी दस्तगीर वीर का एक शागिर्द पानी भरने के लिए और विश्राम करने के लिए वहां पर पहुंचा साध संगत जी श्री गुरु नानक देव जी महाराज जी के मुख से जप जी साहब का पाठ सुन कर उसे बहुत शांति मिली, मंत्रमुग्ध होकर वह वहीं पर खड़ा पाठ सुनता रहा यह देखकर सतगुरु महाराज जी ने उसके आगे एक और तुक पड़ी गुरु जी के मुख से ऐसे वचन सुनकर उसके अंदर स्कून सा पैदा हो गया कि हमारे पीर जी 14 तबक बताते हैं, परंतु ये महापुरुष लाखों ही पताल और आगास बता रहे हैं और वह अपने मन में सोचने लगा कि अपने पीर जी को पूछ कर ही ये शंका दूर करूंगा तो साध संगत जी कुछ समय सुनने के बाद पीर का यह मुरीद वापिस पीर जी के पास आ गया इतने में सतगुरु जी ने जपजी साहब का पाठ खत्म करके राग में कीर्तन करना शुरू कर दिया और कुछ समय सुनने के बाद पीर का यह मुरीद, वापस पीर के पास आ गया और विनती कर कर कहने लगा कि हे पीर जी बाहर सरोवर के ऊपर तीन फकीर बैठे है और वह अपने कलाम में लाखों ही पताल और लाखों ही आगास कह रहें है दूसरा वह हमारी नगरी में आकर राग गा रहे हैं जबकि यहां पर ऐसा करने की मनाही है यह सुनकर दस्तगीर पीर क्रोध में आ गया और उसने क्रोध में आकर सतगुरु के ऊपर पत्थरों की मार करने के लिए बोल दिया, पीर ने सतगुरु के ऊपर पत्थरों की मार करने का हुक्म दे दिया पीर जी का हुकुम मान कर शहर के सभी लोग हाथों में पत्थर लेकर सतगुरु को मारने आए जिनको देखकर सतगुरु जी ने वचन किए " निरंकार सत श्री अकाला गुर एक ओंकार कृपाला सुनकर बांग सर्व नर नारी सुनमुन हुई एक बारी" भाई बाला जी की साखी में इस तरह लिखा हुआ है कि सतगुरु ने यह बांग उचारी थी "गुरबर अकाल सत श्री अकाल जित चरण नाम घर घर प्रणाम सब पर कृपा जोरस ज्वाल " साध संगत जी जिस प्रकार पुरातन गुर सिख जहां वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह बुलाते थे वहां पर सत्कार के साथ पहला गुरमुख कहता था सत श्री अकाल और दूसरा उत्तर देता था गुरुबर आकार यह शब्द दास ने कई बार अपने दाता जी की रसना से भी सुना था जब उनको कोई सत श्री अकाल कहता था तो वह जवाब में गुरुवर अकाल कहते थे दास को थोड़ी हैरानी हुई कि सत श्री अकाल के जवाब में सत श्री अकाल नहीं बोला गया बल्कि और ही उत्तर दिया गया है तो साध संगत जी सतगुरु नानक देव जी महाराज जी के समय से यह शब्द चला आ रहा है यह पुरातन रीत आजकल के समय में आलोप ही हो गई है सो साध संगत जी हमें भी सत श्री अकाल के जवाब में गुरुवर अकाल कहना चाहिए, सो साध संगत जी इस वांग को सुनकर सभी मनुष्य जो पत्थर उठाई आगे बढ़ रहे थे सभी सुन मन हो गए, तो फिर जाकर किसी ने पीर दस्तगीर को बताया तब जाकर पीर दस्तगीर खुद आप पाया और उसने जंतर मंतर पढ़कर लोगों की जड़ता दूर की, और दूसरी बार फिर लोगों को दोबारा सतगुरु पर पत्थर मारने का हुक्म दिया जब लोगों ने फिर पत्थर मारने की कोशिश की तो सतगुरु ने फिर वचन किए " निरंकार सत श्री अकाल गुरबंग एक ओंकार कृपाला"  उस समय सभी की बाजू ऊपर ही खड़ी रह गई और लोगों के हाथ में पत्थर ऐसे ही पकड़े रह गए तो साध संगत जी जिसके बाद पीर ने अपनी शक्ति लगाई लेकिन वह लोगों की जड़ता दूर नहीं कर सका और फिर निवी डालकर कहने लगा कि हे साईं जी लोगों की जड़ता दूर करो खुदा के लिए इनकी जड़ता दूर करें क्योंकि कसूर उनका नहीं मेरा है तो गुरु जी ने पीर की विनती मान कर उनकी जड़ता दूर की, पीर ने कहा कि यह गलती इसलिए हुई क्योंकि आपने जो लाखों अकाश और पाताल कहे हमें यह कुफर लगा दूसरा मुसलमानों की इस नगरी में आकर आपने राग क्यों गाया है क्योंकि उसके साथ तो मन चंचल होता है तो यह सुनकर सतगुरु ने कहा कि हे पीर जी हमने तो राग द्वारा उस प्रभु की सिफत गाई है उसकी सिफत की है कलयुग के अंदर मन को टिकाने का ये अहम साधन है । दूसरी बात जो आपने लाखों आकाश और लाखों पतालो कि की है उसका उत्तर यह है कि अब दूसर उत्तर सुन ये काने, 14 तबक कुरान विखाने, तिस को कर्ण हार है जो ता को 14 की सुध होऊ, लाखन की सुध जिन को होई तेती भने न झूठ भगोई, परंतु हे फकीर जी अगर फिर भी यकीन नहीं आता तो हमारे साथ चले तो फकीर ने कहा कि मैं तो बूढ़ा हो गया हूं आप मेरे पुत्र को दिखा दे तो गुरु जी ने फकीर के पुत्र को कहा कि आंखें बंद करो और सतगुरु उसको अकाश दिखाने लगे तो सतगुरु ने उसे पहला दूसरा तीसरा और चौथा ऐसे अनगिनत अकाश उसके पुत्र को दिखाएं इस तरह फिरते फिरते कई साल बीत गए और उसे लाखों आकाश दिखाए और फिर सतगुरु पताल की तरफ चल पड़े और फिर पीर का बेटा थक गया और वापस चलने के लिए गुरु जी से विनती करने लगा तब गुरुजी एक पताल में गए जहां पर संगत जुड़ी हुई थी गुरु जी ने सबको दर्शन और उपदेश दिया और प्रसाद बांटा गया और फकीर के बेटे को भी प्रसाद दिया गया और उसके बाद सतगुरु ने उसे कहा कि आंखें बंद करो तो जैसे ही उसने आंखें बंद कि उसे बगदाद पहुंचा दिया गया तो जैसे ही उसकी आंख खुली तो उसने अपने आप को अपने पिताजी के पास देखा तो उस पीर के पूछने पर लाखों आकाश और पाताल को देखने की सारी घटना बताई और अपने पिता की तसल्ली करवाई तो जब समय का पता किया तो ये सारा खेल आंख फिरनी जितने समय में ही हो चुका था इस तरह गुरुजी ने लाखों आकाश और लाखों पताल पीर के बेटे को दिखाकर पिता और पुत्र की तसल्ली करवाई भाई गुरदास जी इस तरह वर्ण करते हैं " फिर बाबा गया बगदाद नो बाहर जाए किया अस्थाना एक बाबा अकाल रुप दूजा रबाबी मर्दाना दिती वांग नवाज कर सुन समाज होआ जहाना सुन मुन नगरी पई देख पीर भया निराना वेखे ध्यान लगाए कर एक फ़कीर बड़ा मस्ताना, पूछा फिर कह दस्तगीर कौन फ़कीर किसका घरयाना  नानक कल विच आया रब फ़कीर एको पहचाना धर्त आकाश चोहो दिस्जाना तो साध संगत जी इस तरह  श्री गुरु नानक देव जी महाराज जी ने सिद्धों के प्रश्नों का उत्तर दिया और उनकी तसल्ली करवाई ।

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By Sant Vachan




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