अर्थ: हे मेरे पति-प्रभू! (मेरे पर) दया कर। हे मेरे ठाकुर! मुझे ऐसी बुद्धि दे कि मैं सदा तेरा नाम सिमरता रहूँ।1। रहाउ। (हे प्रभू! मेहर कर) मैं (तेरे) संतों की सेवा में (रह के, उनके लिए) पानी (ढोता रहूँ, उनको) पंखा (झलता रहूँ, उनके वास्ते आटा) पीसता रहूँ, और, हे गोबिंद! तेरी सिफत सालाह! तेरे गुण गाता रहूँ। मेरा मन हरेक सांस के साथ (तेरा) नाम चेता करता रहे,
मैं तेरा यह नाम प्राप्त कर लूँ जो सुख शांति का खजाना है।1।हे प्रभू! तेरी कृपा से (मेरे अंदर से) माया का मोह समाप्त हो जाए, अहंकार दूर हो जाए, मेरी भटकना नाश हो जाय, मैं जहाँ-कहीं भी देखूँ, सबमें मुझे तू ही आनंद स्वरूप बसता दिखे।2।हे धरती के पति! तू दयालु है, कृपालु है, तू दया का खजाना है, तू विकारियों को पवित्र करने वाला है। जब मैं आँख झपकने जितने समय के लिए भी मुँह से तेरा नाम उचारता हूँ, मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मैंने राज-भाग के करोड़ों सुख-आनंद भोग लिए हैं।3।गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक! वही जाप-ताप वही भक्ति सिरे चढ़ी समझें, जो परमात्मा को पसंद आती है। परमात्मा का नाम जपने से सारी तृष्णा समाप्त हो जाती है, (मायावी पदार्थों की ओर से) पूरे तौर पर तृप्त हो जाते हैं।4।10।
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