आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

बिलावलु महला ५ ॥ गोबिदु सिमरि होआ कलिआणु ॥  मिटी उपाधि भइआ सुखु साचा अंतरजामी सिमरिआ जाणु ॥१॥ रहाउ ॥  जिस के जीअ तिनि कीए सुखाले भगत जना कउ साचा ताणु ॥  दास अपुने की आपे राखी भै भंजन ऊपरि करते माणु ॥१॥  भई मित्राई मिटी बुराई द्रुसट दूत हरि काढे छाणि ॥  सूख सहज आनंद घनेरे नानक जीवै हरि गुणह वखाणि ॥२॥२६॥११२॥  

हे भाई! गोबिंद का नाम सिमर कर ( उस मनुष्य के मन अंदर) सुख ही सुख बन गया, जिस मनुष्य ने हरेक के दिल की जानने वाले सुजान प्रभू का नाम सुमिरन किया । उस के ऊपर किसी की चोट कारगर नहीं हो सकी , उस के अंदर सदा कायम रहने वाला सुख पैदा हो गया ॥੧॥ रहाउ ॥ हे भाई ! जिस प्रभू के यह सारे जिव-जंत है (उन को) सुखी भी उस ने आप ही किया है (सुखी करने वाला भी वह आप ही है ) प्रभू की भक्ती करने वालो को यही सदा कायम रहने वाला सहारा है । हे भाई !प्रभू अपने सेवको की इज्ज़त आप रखता है। भगत उस प्रभू ऊपर विश्वास रखते है, जो सरे डरो का नास करने वाला है ॥੧॥ (हे भाई ! जो मनुष प्रभू का नाम सिमरता है, प्रभू उस का ) बुरा सोचने वालो दुश्मनों को चुन कर निकाल देता है ( उनकी सेवक के साथ) प्यार की साँझ बन जाती है (उन के अंदर उस सेवक के लिए) वेर भाव मिट जाता है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! सेवक के हृदय में सुख आत्मक अडोलता और आनंद बने रहते है । सेवक परमात्मा के गुण उचार के आत्मिक जीवन प्राप्त करता रहता है ॥੨॥੨੬॥੧੧੨॥

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