रामकली महला १ ॥ हम डोलत बेड़ी पाप भरी है पवणु लगै मतु जाई ॥ सनमुख सिध भेटण कउ आए निहचउ देहि वडिआई ॥१॥ गुर तारि तारणहारिआ ॥ देहि भगति पूरन अविनासी हउ तुझ कउ बलिहारिआ ॥१॥ रहाउ ॥
( हे गुरु!) मेरी जिन्दगी की नाव पापों से भरी हुई है, माया की आंधी आ रही है, मुझे डर लग रहा है कि कहीं (मेरी नाव) डूब न जावे। (अच्छा हूँ बुरा हूँ) परमात्मा को मिलने के लिए (प्रभु के चरणों में जुड़ने के लिए ) मैं झिझक छोड़ कर तेरे दर पर आ गया हूँ। हे गुरु! मुझे जरूर प्रभु की सलाह की दात दो॥1॥ (संसार-सागर की विकारों की लहरों से) तैराने वाले हे गुरु! मुझे (इन लहरों से) पार निकाल ले। सदा कायम रहने वाले और सर्ब-व्यापक परमात्मा की भक्ति (की दाति) मुझे देह, मैं तुझसे सदके कुर्बान जाता हूँ॥1रहाउ॥
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