ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥ रागु टोडी महला ४ घरु १ ॥ हरि बिनु रहि न सकै मनु मेरा ॥ मेरे प्रीतम प्रान हरि प्रभु गुरु मेले बहुरि न भवजलि फेरा ॥१॥ रहाउ ॥ मेरै हीअरै लोच लगी प्रभ केरी हरि नैनहु हरि प्रभ हेरा ॥ सतिगुरि दइआलि हरि नामु द्रिड़ाइआ हरि पाधरु हरि प्रभ केरा ॥१॥
अर्थ :-हे भाई ! मेरा मन परमात्मा की याद के बिना रह नहीं सकता। गुरु (जिस मनुख को) जीवन का प्यारा भगवान मिला देता है, उस को संसार-सागर में फिर नहीं आना पड़ता।1।रहाउ। हे भाई ! मेरे हृदय में भगवान (के मिलाप) की चाह लगी हुई थी (मेरा मन करता था कि) मैं (अपनी) आँखों के साथ हरि-भगवान को देख लूं। दयाल गुरु ने परमात्मा का नाम मेरे हृदय में पक्का कर दिया-यही है हरि-भगवान (को मिलने) का सही मार्ग।1। हे भाई ! अनेकों कौतकाँ के स्वामी हरि भगवान गोबिंद का नाम जिस मनुख ने प्राप्त कर लिया, उस के मन में, उस के शरीर में, परमात्मा प्यारा लगने लग जाता है, उस के माथे पर मुख पर उत्म भाग्य जाग जाता है।2। पर, हे भाई ! जिन मनुष्यों का मन लोभ आदि विकारों में मस्त रहता है, उनको परम अकाल पुरख भुला रहता है। अपने मन के पिछे चलने वाले वह मनुख मूर्ख कहे जाते हैं, आत्मिक जीवन की तरफ से बे-समझ कहे जाते हैं। उन के माथे पर मंदी किस्मत (उभरी हुई समझ लो)।3। गुरू नानक जी स्वयं को कहते हैं, हे दास नानक ! जिन मनुष्यों के माथे पर धुरों लिखा उत्म भाग्य उभर पड़ा, उन्हों ने गुरु से परमात्मा का नाम प्राप्त कर लिया, उन्हों ने गुरु से अच्छे बुरे काम की परख करने वाली समझ हासिल कर ली, उन्हों ने परमात्मा के मिलाप के लिए गुरु से आत्मिक जीवन की सूझ प्राप्त कर ली।4।1।
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