प्रभ करण कारण समरथा राम ॥ रखु जगतु सगल दे हथा राम ॥ समरथ सरणा जोगु सुआमी क्रिपा निधि सुखदाता ॥ हंउ कुरबाणी दास तेरे जिनी एकु पछाता ॥ वरनु चिहनु न जाइ लखिआ कथन ते अकथा ॥ बिनवंति नानक सुणहु बिनती प्रभ करण कारण समरथा ॥१॥
हे जगत के मूल प्रभु! हे सब ताकतों के मालिक! (अपना) हाथ दे कर सारे जगत की रक्षा कर। हे सब-ताकतों के मालिक! हे सरन पड़े की सहायता कर सकने वाले परभू! हे कृपा के खजाने! हे सुखदाते! मैं तेरे उन सेवकों से सदा कुर्बान जाता हूँ जिन्होंने तेरे साथ साँझ रखी है। हे प्रबु! तेरा कोई रंग तेरा कोई निशान बताया नहीं जा सकता, तेरा सवरूप बयां से बाहर है। नानक बेनती करता है की हे प्रभु! हे जगत के मूल! हे सब ताकतों के मालिक मेरी विनती सुन॥१॥
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