धनासरी महला ५ ॥
मोहि मसकीन प्रभु नामु अधारु ॥ खाटण कउ हरि हरि रोजगारु ॥ संचण कउ हरि एको नामु ॥ हलति पलति ता कै आवै काम ॥१॥ नामि रते प्रभ रंगि अपार ॥ साध गावहि गुण एक निरंकार ॥ रहाउ ॥ साध की सोभा अति मसकीनी ॥ संत वडाई हरि जसु चीनी ॥ अनदु संतन कै भगति गोविंद ॥ सूखु संतन कै बिनसी चिंद ॥२॥ जह साध संतन होवहि इकत्र ॥ तह हरि जसु गावहि नाद कवित ॥ साध सभा महि अनद बिस्राम ॥ उन संगु सो पाए जिसु मसतकि कराम ॥३॥ दुइ कर जोड़ि करी अरदासि ॥ चरन पखारि कहां गुणतास ॥ प्रभ दइआल किरपाल हजूरि ॥ नानकु जीवै संता धूरि ॥४॥२॥२३॥
अर्थ: हे भाई! संत जन परमात्मा के नाम में मस्त हो के, बेअंत प्रभू के प्रेम में जुड़ के एक निरंकार के गुण गाते रहते हैं। रहाउ।हे भाई! मुझ आज़िज़ को परमात्मा का नाम (ही) सहारा है, मेरे लिए कमाने के लिए परमात्मा का नाम ही रोजी है। मेरे लिए एकत्र करने के लिए भी परमात्मा का नाम ही है। (जो मनुष्य हरी-नाम-धन इकट्ठा करता है) इस लोक में और परलोक में उसके काम आता है।1।हे भाई! बहुत विनम्र स्वभाव संत की शोभा (का मूल) है, परमात्मा की सिफत सालाह करनी ही संत के बड़प्पन (का कारण) है। परमात्मा की भक्ति संत जनों के हृदय में आनंद पैदा करती है। (भक्ति की बरकति से) संतजनों के दिल में सुख बना रहता है (उनके अंदर से) चिंता नाश हो जाती है।2।हे भाई! साधु-संत जहाँ (भी) इकट्ठे होते हैं वहाँ वे साज़ बजा के बाणी पढ़ के परमात्मा की सिफत सालाह के गीत (ही) गाते हैं। हे भाई! संतों की संगति में बैठने से आत्मिक आनंद प्राप्त होता है शांति हासिल होती है। पर, उनकी संगति वही मनुष्य प्राप्त करता है जिसके माथे पर बख्शिश (का लेख लिखा हो)।3।हे भाई! मैं अपने दोनों हाथ जोड़ के अरदास करता हूँ कि मैं संतजनों के चरण धो के गुणों के खजाने परमात्मा का नाम उचारता रहूँ। गुरू नानक जी कहते हैं, हे भाई! नानक उन संत जनों के चरणों की धूड़ से आत्मिक जीवन प्राप्त करता है जो दयालु कृपालु प्रभू की हजूरी में (सदा टिके रहते हैं)।4।2।23।
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