ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मनि मैलै सभु किछु मैला तनि धोतै मनु हछा न होइ ॥ इह जगतु भरमि भुलाइआ विरला बूझै कोइ ॥१॥ जपि मन मेरे तू एको नामु ॥ सतगुरि दीआ मो कउ एहु निधानु ॥१॥ रहाउ ॥ सिधा के आसण जे सिखै इंद्री वसि करि कमाइ ॥ म मैलु न उतरै हउमै मैलु न जाइ ॥२॥
राग वडहंस,घर १ में गुरु अमरदास जी की बाणी। अकालपुर्ख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। जो मनुख का मन (विकारों से) मैला हो जाता है तो सब कुछ मैला हो जाता है और सनान करने से मन पवित्र नहीं हो सकता। परन्तु यह संसार भ्रम में आ कर कुराह चला जा रहा है, कोई विरला ही (इस सचाई को समझता है॥१॥ हे मेरे मन! तू सिर्फ परमात्मा का एक नाम ही जपा कर। यह (नाम) खज़ाना मुझे गुरु ने दिया है॥१॥रहाउ॥ अगर मनुख करामाती जोगियों वाले आसन करने सीख ले और काम-वासना को जीत कर (आसनों के अभियास की) कमाई करने लग जाये, तो भी मन की मैल नहीं उतरती और (मन में से) अहंकार-हौमय की मैल नहीं जाती॥२॥
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