रागु सूही महला १ घरु ३ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ आवहु सजणा हउ देखा दरसनु तेरा राम ॥ घरि आपनड़ै खड़ी तका मै मनि चाउ घनेरा राम ॥ मनि चाउ घनेरा सुणि प्रभ मेरा मै तेरा भरवासा ॥ दरसनु देखि भई निहकेवल जनम मरण दुखु नासा ॥ सगली जोति जाता तू सोई मिलिआ भाइ सुभाए ॥ नानक साजन कउ बलि जाईऐ साचि मिले घरि आए ॥१॥
अर्थ: राग सूही, घर ३ में गुरु नानकदेव जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे मेरे सजन-प्रभु! आ, में तेरा दर्शन कर सकूँ। ( हे सजन!) मै अपने हृदय में पूरी सावधानी से तुम्हाररा इन्तजार कर रहा हूँ, मेरे मन में बहुत ही चाव है (कि मुझे तेरा दर्शन हो)। हे मेरे प्रभु! (मेरी विनती ) सुन, मेरे मन में (तुम्हारे दर्शन का) बहुत ही चाव है, मुझे आसरा भी तेरा ही है। (हे प्रभु!) जिस जीव-स्त्री ने तेरा दर्शन कर लिया, वह पवित्र आत्मा हो गई , उस का जनम मरण का दुःख दूर हो गया। उस ने सारे जीवों में तुझे बस्ता पहचान लिया, उस के प्रेम (कि खिंच से प्रभु उस को मिल गया। गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक! सजन प्रभु से सदके होना चाहिये । जो जीव-स्त्री उस से सदा-थिर नाम में जुडती है, उस के ह्रदय में वह आ प्रकट होता है।
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