आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 



आसा महला ५ ॥  सलोक ॥  उदमु करहु वडभागीहो सिमरहु हरि हरि राइ ॥  नानक जिसु सिमरत सभ सुख होवहि दूखु दरदु भ्रमु जाइ ॥१॥  छंतु ॥  नामु जपत गोबिंद नह अलसाईऐ ॥  भेटत साधू संग जम पुरि नह जाईऐ ॥  दूख दरद न भउ बिआपै नामु सिमरत सद सुखी ॥  सासि सासि अराधि हरि हरि धिआइ सो प्रभु मनि मुखी ॥  क्रिपाल दइआल रसाल गुण निधि करि दइआ सेवा लाईऐ ॥  


अर्थ : गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक ! (बोल-) हे उच्च भाग्य वालो ! जिस परमात्मा का सुमिरन करने से सारे सुख मिल जाते हैं, और हरेक प्रकार का दु:ख दर्द भटकना दूर हो जाता है, उस भगवान-पातिशाह का सुमिरन करते रहो (उस के सुमिरन का सदा) उधम करते रहो।1। छंत। हे वडभागीहो ! गोबिंद का नाम अराधते हुए (कभी) आलस नहीं करना चाहिए, गुरु की संगत में मिलने से (और हरि-नाम जपने से) यमपुरी में नहीं जाना पड़ता। परमात्मा का नाम सुमिरते हुए कोई दु:ख कोई दर्द कोई भय अपना जोर नहीं डाल सकता, सदा सुखी रहते है। हे भाई ! हरेक साँस के साथ परमात्मा की अराधना करता रह,  उस भगवान को अपने मन में सिमर, अपने मुख के साथ (उस का नाम) उच्चार। हे कृपा के सोमे ! हे दया के घर ! हे गुणों के खज़ाने भगवान ! (मेरे ऊपर) दया कर (मुझे नानक को अपनी) सेवा-भक्ति में जोड़। गुरू नानक जी कहते हैं, नानक (तेरे दर पर) बेनती करता है, तेरे चरनों का ध्यान करता है। हे भाई ! गोबिंद का नाम अराधते हुए कभी आलस नहीं करना चाहिए।1। हे भाई ! निरलेप परमात्मा का नाम पवित्र है, विकारों में गिरे हुए जीवों को पवित्र करने वाला है। हे भाई ! गुरु की बख्शी हुई आत्मिक जीवन की सूझ (एक ऐसा) काजल  है (जो मन की) भटकना के अंधकार का नास कर देता है।गुरु के दिये ज्ञान का काजल (यह समझ पैदा कर देता है कि) परमात्मा निरलेप (होते हुए भी) पानी में धरती में आकाश में हर जगह व्यापक है, जिस के हृदय में वह भगवान आँख के फटकने जितने  समय के लिए भी बसता है उस के सारे चिंता-फिक्र मिट जाते हैं। हे भाई ! परमात्मा अथाह ज्ञान का स्वामी है, सब कुछ करने योग्य है, सब का स्वामी है, सब का भय नास करने वाला है। गुरू नानक जी कहते हैं, नानक बेनती करता है उस के चरणों का ध्यान करता है (और कहता है कि) निरलेप परमात्मा का नाम पवित्र है, विकारों में डुबे जीवों को पवित्र करने वाला है।2।  हे सृष्टि के पालनहार ! हे दया के सोमे ! हे कृपा के खज़ाने ! मैंने तेरी ओट ली है। मुझे तेरे ही चरणों का सहारा है। तेरी शरण में ही रहना मेरे जीवन की कामयाबी है। हे हरि ! हे स्वामी ! हे जगत के मूल ! तेरे चरनों का सहारा विकारों में गिरे हुए मनुष्यो को बचाने-योग्य है, संसार-सागर के जन्म-मरन के घुंमण-घेर में से पार निकालने योग्य है। तेरा नाम सिमर के अनेकों मनुख (संसार-सागर में से) पार निकल रहे हैं। हे भगवान ! जगत-रचना के आरम्भ में भी तूं ही हैं, अंत में भी तूं ही (असथिर) हैं। बयंत जीव तेरी भाल कर रहे हैं। तेरे संत जनों की संगत ही एक ऐसा तरीका है जिस के साथ संसार-सागर के विकारों से बच सकते है। गुरू नानक जी कहते हैं, नानक तेरे दर पर बेनती करता है, तेरे चरनों का ध्यान करता है। हे गोपाल ! हे दयाल ! हे कृपा के खज़ाने ! मैं तेरा पला पकड़ा है।3। हे भाई ! परमात्मा अपनी भक्ति (के कारण अपने भक्तों) के साथ प्रेम करने वाला है, अपना यह मुढ-कदीमाँ का स्वभाव उस ने आप ही बनाया हुआ है, (सो,) जहाँ जहाँ (उस के) संत (उस का) आराधन करते हैं वहाँ वहाँ वह जा दर्शन देता है। हे भाई ! परमात्मा ने आप ही (आपने भक्त अपने चरणों में) लीन किये हुए हैं, आत्मिक अढ़ोलता में और प्रेम में टिकाए हुए हैं, आपने भक्तों के सारे काम भगवान आप ही सवारता है। भक्त परमात्मा की सिफ़त-सालाह करते हैं, हरि-मिलाप की खुशी के गीत गाते हैं, आत्मिक आनंद मनाते हैं, और अपने सारे दु:ख भुला लेते हैं। हे भाई ! जिस परमात्मा के नूर की झलक जोति की रोशनी दसों दिशाओं में (सारे ही संसार में) हो रही है वही परमात्मा भक्त जनो के हृदय में प्रकट हो जाता है। गुरू नानक जी बेनती करते है, प्रभू-चरणो का ध्यान करते है, (और कहते है कि) परमात्मा अपनी भक्ति (के कारण आपने भक्तों) के साथ प्रेम करने वाला है, अपना यह मुढ-कदीमाँ का स्वभाव उस ने आप ही बनाया हुआ है।4।3।6।

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