सलोक मः १ ॥ वाहु खसम तू वाहु जिनि रचि रचना हम कीए ॥ सागर लहरि समुंद सर वेलि वरस वराहु ॥ आपि खड़ोवहि आपि करि आपीणै आपाहु ॥ गुरमुखि सेवा थाइ पवै उनमनि ततु कमाहु ॥ मसकति लहहु मजूरीआ मंगि मंगि खसम दराहु ॥ नानक पुर दर वेपरवाह तउ दरि ऊणा नाहि को सचा वेपरवाहु ॥१॥
हे खसम! तुन धन्य हैं! जिसने जगत की रचना कर के हम जीवों को पैदा किया। समुद्र, सागर की लहरों, तालाबों, हरी बेलों, बरखा करने वाले बदल-(यह सारी रचना करने वाला तू ही है) तू कुढ़ ही सब को पैदा करके सब में आप ही व्यापक है और (निरलेप भी है) उत्साह के साथ तेरे नाम की कमी करके गुरमुखों की मेहनत (तेरे दर पर) कबूल पड़ती है, वह गुरमुख बंदगी की कमाई कर के, हे खसम! तेरे दर से मांग मांग के मजूरी लेते हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! (कहो) हे वेपरवाह प्रभु! तेरे द्वार (बरकतों से) भरे हुएँ हैं, कोई जीव तेर दर पे (आ के खली हाथ नहीं गया, तू सदा कायम रहने वाला और बे-मुहताज है।१।
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