Guru Nanak Sakhi । जब पीर अबदल ने कहा मैं दिन को रात कर सकता हूं तो गुरु जी ने क्या चमत्कार किया ?

 

साध संगत जी सतगुरु नानक देव जी अपनी दूसरी उदासी के समय लोगों को सीधे रास्ते डालते हुए बठिंडा, पटनेर, आदि स्थानों से होते हुए सरसा विखे पहुंचे

तो वहां मुसलमानों फकीरों का बहुत भारी मेला लगा हुआ था उस मिले पर दूर-दूर से फकीर आए हुए थे और उन फकीरों के साथ आम लोग भी थे तो गुरुजी भी भाई मरदाना जी के साथ यहां पर आ गए साध संगत जी गुरु जी का पहरावा बहुत अनोखा था तो यह देखकर वहां के फकीर बहुत हैरान थे बाना था : पैरों में लकड़ की खड़ाव और हाथ में डंडा, बाजुओं में रस्से वलेटे हुऐ थे साध संगत जी ऐसा बाना न तो मुसलमान फकीरों का था और ना ही हिंदू साधुओं का तो सतगुरु का ऐसा बाना देखकर लोग सतगुरु के पास इकट्ठे हो गए और देखने वालों की भीड़ हो गई तस्वीर में जो लोग सतगुरु के करीब थे सतगुरु उनको बिठा लिया और सतगुरु ने भाई मरदाना को कहा कि हे भाई मरदाना रबाब छेड़, तो भाई मरदाना जी ने रबाब छेड़ा तो रब्बी नूर गुरु जी ने वाहेगुरु की उस्तत में शब्द उचारा तो शब्द के साथ ऐसा रंग बना की फकीरों के जलसे की भीड़ कम हो गई और लोग सतगुरु के सत्संग में आ विराजे, गुरु जी ने प्रचार करना शुरू किया तो साध संगत जी वहां पर सरसे के पीर अपने आप को करामाती बताते थे और तागे त्वीतों से और अपने मंत्रों के साथ लोगों को राजी करने की बात करते थे और वह कहते थे कि हम खुदा के बंदे हैं और खुदा हमारा मित्र है और वह हमारी हर बात मानता है तो वह कई लोगों पर जादू करके उनको ठीक कर देते और कईयों में से जादू को निकालते थे अखंड का बोलबाला बहुत था तो पीरों के मुखी पीर बहावल और ख्वाजा अब्दुल अपनी महफिल को छोड़कर बहुत क्रोध से उठ खड़े और सतगुरु नानक के पास आए और सतगुरु नानक जी उपदेश कर रहे थे कि खुदा को हमेशा याद करना चाहिए : मोहब्बत, नेकी, सच्चाई , जीवन का मनोरथ होना चाहिए, झूठ और पाखंड करके किसी को लूटना नहीं चाहिए, जो इस जगत में किसी को धोखा देते हैं दरगाह में उनके साथ धोखा होता है तो गुरु जी के मुख से ऐसे वचन सुनकर पीर बहावल ने गुस्से में आकर सतगुरु से पूछा कि तू हिंदू है या फिर मुसलमान तो गुरु जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया कि मैं ना तो हिंदू हूं और ना ही मुसलमान मैं तो खुदा का बंदा हूं और उसकी बंदगी करने आया हूं तो गुरु जी ने निगाह भर के उस पीर की तरफ देखा तो उसके जंतर मंतर की सारी शक्ति खींच ली और वह निरा बहावल रह गया तो उसने फिर कहा कि हम तेरे साथ बात करना चाहते हैं तूं फकीर बन कर लोगों को उपदेश देता है इस करके हम तुमसे पूछना चाहते हैं कि तूने कौन सी तपस्या और योग साधन किया है और किससे शक्ति हासिल की है तो गुरुजी ने ठंडे हृदय से कहा कि पीर जी बैठिए  धीरज और प्रेम के साथ वचन विलास कीजिए आप पीर हो और पीरो को क्रोध आना अच्छा नहीं और ईरखा बुरी वस्तु है मैं वही कुछ करता हूं जो करने के लिए मेरा निरंकार मुझे प्रेरता है तो लोगों ने जगह छोड़ दी तो गुरुजी के सन्मुख 4 मुखी पीर बैठ गए तो उनमें से एक बोला है कि हमारा अब्दुल पीर दिन में ही रात पा सकता है दरखत को उखाड़ सकता है अंधे को सुजाखा और सुजाखे को अंधा कर सकता है और अब आप बताएं कि आप क्या कर सकते हैं तो ये सुनकर गुरु जी बोले कि "आप करे सच्च अलख अपार " गुरुजी ने कहा कि मैं क्या कर सकता हूं हां आपके पीर कोई करामत दिखाएं तो पीर ने कहा कि अगर हमारे पीर की करामात देखनी है तो किसी खुली जगह पर चलो तो गुरु जी उठ खड़े हुए और पीर भी तैयार हो खड़े और लोग भी साथ चलने के लिए तैयार हो गए तो जब उस जगह पर पहुंचे तो पीर अब्दुल ने कहा कि खुदा का बंदा बनने वाले ले मैं पहली करामात दिखाता हूं कि अरशों से दो घोड़े उतरेंगे और वह जमीन पर दौड़ेंगे और अर्शों में वापस जाते समय वह आलोप हो जाएंगे तो यह सुनकर सतगुरु ने कहा कि बहुत अच्छा और ऐसा बोलकर सतगुरु ने पांच बार सत करतार सत करतार कहा और साथ ही आसमान की तरफ निगाह भर कर देखा तो अहंकारी पीर अब्दुल आसमान की तरफ देखकर कलाम पढ़ने लगा वह आधा घंटा कलाम पड़ता रहा लोग बड़ी हैरानी से आसमान की तरफ देखते रहे कोई भी घोड़ा आसमान से नहीं उतरा वह पीर खुद हैरान था क्योंकि उसको अपनी कलाम पर पूरा विश्वास था कि वह जब भी कलाम पड़े तभी वह मनमर्जी का खेल रच दे लेकिन कलाम ने असर ना कि न तो करामात परगट हुई और वह शर्मिंदा हो गया तो सतगुरु नानक ने उस को उपदेश दिया हे खुदा के बंदे अहंकार करना अच्छा नहीं अगर खुदा की बक्शीश हासिल हो तो निर्माण रहना चाहिए, खुदा की बंदगी कर उसका सिमरन कर हर वस्तु में खुदा का नूर देख तो शर्मिंदा हुए पीर ने अपना हठ नहीं छोड़ा उसने मेहरों के दाता सतगुरु को परखना चाहा उसने कहा कि अगर तू वली है तो हमारे साथ कोठियों में बैठकर तप कर तो पीरो ने कहा कि आप हमारे साथ भोरे में बैठकर 40 दिन का तप करें फिर हम देखेंगे कि आपके अंदर तप करने की शक्ति है या नहीं तब गुरुजी ख्वाजा शमसुद्दीन, ख्वाजा रोशन दीन और पांच पीरों के साथ 40 दिन का चिल्ला काटने के लिए अलग-अलग पूर्व में बैठ गए तो पीरो ने जो के दाने और पानी का सेवन करके 40 दिन काटे लेकिन गुरु जी निराहार ही नाम सिमरन में बैठे रहे तो 40 दिन के बाद जब पीर और गुरु जी बाहर आए तो पीरों के शरीर निर्बल और चेहरे मुरझाए हुए थे लेकिन गुरु जी का शरीर जैसे का तैसा और चेहरा चमक रहा था इस तरह गुरुजी का तप तेज़ देखकर पीरों ने सतगुरु को नमस्कार की और आप जी के सिद्धांत को ठीक माना, साध संगत जी गुरु जी की याद में यहां पर गुरद्वारा कायम है और पास ही पांच पीरों की कोठियां है ।

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By Sant Vachan







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