आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

सोरठि महला ५ ॥   सरब सुखा का दाता सतिगुरु ता की सरनी पाईऐ ॥   दरसनु भेटत होत अनंदा दूखु गइआ हरि गाईऐ ॥१॥  हरि रसु पीवहु भाई ॥   नामु जपहु नामो आराधहु गुर पूरे की सरनाई ॥ रहाउ ॥  तिसहि परापति जिसु धुरि लिखिआ सोई पूरनु भाई ॥   नानक की बेनंती प्रभ जी नामि रहा लिव लाई ॥२॥२५॥८९॥  

हे भाई! गुरु सरे सुखों का देने वाला है, उस (गुरु) की सरन में आना चाहिए। गुरु का दर्शन करने से आत्मिक आनंद प्राप्त होता है, हरेक दुःख दूर हो जाता है, (गुरु की शरण आ के) परमात्मा की सिफत-सलाह करनी चाहिए।१। हे भाई! गुरु की सरन आ के परमात्मा का नाम सुमीरन  करो, हर समय सुमिरन करो, परमात्मा के नाम का अमिरत पीते रहा करो।रहाउ। परन्तु हे भाई! ( यह नाम की दात गुरु के दर से) उस मनुख को मिलत है जिस की किस्मत में परमत्मा की हजूरी से इस की प्राप्ति लिखी होती है। वह मनुख सारे गुणों वाला हो जाता है। गुरू नानक जी कहते हैं,  हे प्रभु जी! (तेरे सेवक) नानक की (भी तेरे दर पर यह) बेनती है-में तेरे नाम में अपनी सुरती जोड़े रखु।२।२५।८९।

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