आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

सलोकु मः ३ ॥ सतिगुर ते जो मुह फिरे से बधे दुख सहाहि ॥ फिरि फिरि मिलणु न पाइनी जमहि तै मरि जाहि ॥ सहसा रोगु न छोडई दुख ही महि दुख पाहि ॥ नानक नदरी बखसि लेहि सबदे मेलि मिलाहि ॥१॥ मः ३ ॥ जो सतिगुर ते मुह फिरे तिना ठउर न ठाउ ॥ जिउ छुटड़ि घरि घरि फिरै दुहचारणि बदनाउ ॥ नानक गुरमुखि बखसीअहि से सतिगुर मेलि मिलाउ ॥२॥ पउड़ी ॥

अर्थ: जो मनुष्य सतिगुरू की ओर से मनमुख हैं, वह (अंत में) बँधे दुख सहते हैं, प्रभू को मिल नहीं सकते, बार-बार पैदा होते मरते रहते हैं; उन्हें चिंता का रोग कभी नहीं छोड़ता, सदा दुखी ही रहते है। हे नानक! कृपा-दृष्टि वाला प्रभू अगर उन्हें बख्श ले तो सतिगुरू के शबद के द्वारा उस में मिल जाते हैं।1।जो मनुष्य सतिगुरू से मनमुख हैं उनका ना ठौर ना ठिकाना; वे व्यभचारिन छॅुटड़ स्त्री की भांति हैं, जो घर-घर में बदनाम होती फिरती है। हे नानक! जो गुरू के सन्मुख हो के बख्शे जाते हैं, वे सतिगुरू की संगति में मिल जाते हैं।2। जो मनुष्य सच्चे हरी को सेवते हैं, वे संसार समुंद्र को पार कर लेते हैं; जो मनुष्य हरी का नाम सिमरते हैं, उन्हें जम छोड़ जाता है; जिन्होंने हरी का नाम जपा है, उन्हें दरगाह में आदर मिलता है; (पर) हे हरी! जिन पर तेरी मेहर होती है, वही मनुष्य तेरी भक्ति करते हैं। सतिगुरू के सन्मुख हो के भ्रम और डर दूर हो जाते हैं, (मेहर कर) हे प्यारे! मैं भी सदा तेरे गुण गाऊँ।7।

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