Guru Arjan Dev ji ki Sakhi । जब यमदूत भाई समुदा जी को पकड़कर ले गए ।

 

साध संगत जी आज की साखी भाई स्मूंदा जी की है भाई स्मूंदा जी मायावती जीवन व्यतीत करते थे उनका अपनी पत्नी के साथ बहुत प्रेम था अथवा अपने बच्चों को भी बहुत प्यार करते थे उनकी दिनचर्या में अधिक से अधिक धन कमाना ही उनके लिए परम धर्म होता था भाई स्मूंदा जी को परमेश्वर की कोई खबर नहीं थी कोई अनुभूति नहीं थी ।

वह एक साधारण जीवन व्यतीत करते अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खुश रहते और ज्यादा से ज्यादा धन एकत्रित करने के बारे में सोचते रहते तो साध संगत जी 1 दिन क्या हुआ कि भाई स्मूंदा जी अचानक संगत में शामिल हो गए तो साथ संगत जी जब भाई स्मूंदा जी गुरु की संगत में शामिल हो गए तो वहां कीर्तन हो रहा था वहां पर बैठ गए और संगत के साथ कीर्तन सुनने लगे तो वहां पर गुरु के प्यारे सिख ने शब्द का उच्चारण किया "अनंदिन सिमरो कहो जो अंत सहायी होए एह बिख्या दिन चार छे शाड चल्यो सब कोई " इस शब्द का अर्थ है कि उस वाहेगुरु को रात दिन सिमरो ये यो माया से उत्पन्न की गई चीजें हैं यह भी साथ नहीं जाती, स्त्री पुत्र मां बाप यह भी साथ नहीं जाते थोड़ी देर के ही सगे संबंधी हैं यहां पर सब कुछ ही मायावी है बस इसे समझने की जरूरत है ऐसा धन इकट्ठा करना चाहिए जो साथ जा सके और वह केवल परमात्मा का सिमरन है वाहेगुरु के नाम का सिमरन है क्योंकि यही केवल एक ऐसा धन है जो हमारे साथ जा सकता है तो इन शब्दों का भाई समुदा जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और वह जाग गए उनकी बुद्धि जाग गई और वह सोचने लगे कि मैं जो कर रहा हूं वह ठीक है जा फिर जो गुरु की वाणी है जो गुरसिख मुझे बता रहे हैं वह ठीक है तू सिख कहने लगे कि यह ठीक है तो यह सुन कर भाई समुदा जी उठ कर अपने घर आ गए और जब वह घर पहुंचे तो उनका किसी भी काम में कोई मन ना लगे उनका रोटी खाने का मन भी नहीं हुआ और जब वह सोने के लिए जाने लगे तब भी उनको नींद ना आई रात के 12:00 बज गए लेकिन नींद ना आई और वह इसी विषय पर सोचते रहे विचार करते रहे कि माया को इकट्ठा करना अच्छा है ठीक है या नहीं और स्त्री पुत्र और मां-बाप के संबंध कहां तक है यह कहां तक मेरे साथ चल सकते हैं और ऐसा विचार करते हुए भाई समुदा जी निद्रा में प्रवेश कर जाते हैं उसके बाद उन्हें एक बहुत ही भयानक सपना आता है और सपने में वह देखते हैं कि वह बीमार हो जाते हैं उनके सगे संबंधी पत्नी पुत्र, स्त्री मां-बाप जो है उनका पहले पहले तो बहुत ख्याल रखते हैं उनकी बीमारी को ठीक करने के लिए सभी तरह के उपाय करते हैं लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती जाती है तो सभी उनसे दूरी बनाने लगते हैं उसके बाद भाई समुदा देखते हैं कि उनका अंतिम समय आ जाता है और यमदूत वहां पर उनकी जान निकालने के लिए आ जाते हैं तो यह देख कर भाई समुदा जी बहुत डर जाते हैं यमदूतों की ऐसी भयानक शक्ल देखकर वह बहुत डर जाते हैं और रोने लगते हैं और रोते हुए अपनी पत्नी को कहते हैं कि मुझे इनसे बचा ले और भाई समुदा जी की पत्नी रोते हुए अपना सिर फिर देती है कि वह उन्हें यमदूतों से नहीं बचा सकती तो जमदूत भाई समुदा जी की रूह को मारते पीटते हुए धर्मराज के पास ले जाते हैं और जब भाई समुदा जी की पेशी धर्मराज के पास होती है तो धर्मराज उन्हें देखकर कहता है कि यह पापी रूह है इसने पूरे जीवन में कभी सिमरन नहीं किया कोई नेकी वाला काम नहीं किया कोई नेकी नहीं की इस महा पापी को नर्क की आग में फेंक दो जहां यह जन्मों जन्मों सड़ता रहेगा धर्मराज की यह बात सुनकर जमदूत उसको नरक की आग की तरफ ले चल पड़े तो उसके बाद भाई समुदा जी ने देखा कि बहुत भयानक आग चल रही थी उसका सेक दूर-दूर तक जा रहा था उसके पास जाते ही चीज सड़ जाती थी तो जब भाई समुदा जी वहां पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां पर पहले से ही बहुत पापी रो रहे थे आग में कुर्ला रहे थे और जन्मों-जन्मों से वहां सड़ रहे थे तो जब भाई समुदा जी को जमदूत उठाकर आग में फेंकने लगे तो यह देख कर भाई समुदा जी की चीख निकल गई और चीख निकलते ही उसकी नींद खुल गई और वह एकदम से उठ कर बैठ गया और उसने देखा कि वह नर्कों में नहीं बल्कि अपने घर पर ही है और वह मरा नहीं बल्कि जीवित है लेकिन उसका दिल इतनी जोर जोर से धड़क रहा था कि उसका सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था तो भाई समुदा जी उठ कर बैठ गया लेकिन अभी रात बाकी थी रात पड़ी हुई थी और आसमान में तारे चमक रहे थे घर के लोग सभी सोए हुए थे आसपास के सभी लोग सोए हुए थे और चारों तरफ शांति थी उस शांति में भाई समुदा जी घर से निकल पड़े, धीरे धीरे चलते हुए भाई समुदा वहां पर जा पहुंचे जहां पर गुर सिख संगत आई हुई थी वह गुरसिख जाग रहे थे और स्नान कर रहे थे स्नान कर कर उन्होंने रब्बी भजन करना शुरू कर दिया कीर्तन करना शुरू कर दिया तो घबराया हुआ भाई समुदा जी उनके पास जाकर बैठ गया और कीर्तन सुनने लग गया तो वहां पर बैठे-बैठे ही दिन चढ गया और उसके बाद भाई समुदा उनके चरणों में गिर पड़े और रोने लगे और विनती करने लगे कि मुझे भी अपने गुरु के पास ले चलो मैं पापी हूं मुझे नर्कों से डर है मैं कैसे बक्शआ जाऊंगा मेरा मार्गदर्शन करें मुझे स्वर्ग का राह बताएं मुझे नर्कों की बयानक अग्नि से बचाएं वे सभी गुरसिख श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज जी के गुरसिख थे वह श्री हरमंदिर साहिब जी की उसारी के लिए नगर में से सामान इकट्ठा कर रहे थे उन्होंने भाई समुदा जी को धीरज दिया और उन्हे कहा कि पुरखा सुबह हमारे साथ चलना वहां पर जगत के रखवाले गुरु जी हैं उनके दर्शन करना तेरा उद्धार हो जाएगा तो अगले दिन भाई समुदा सिखों के साथ चक रामदास पुर पहुंचा तो आगे दीवान लगा हुआ था सिखों के गुरु सतगुरु अर्जन देव जी महाराज सिखों को उपदेश कर रहे थे तो भाई समुदा जी सतगुरु के चरणों में जा गिरे और रो कर विनती की कि हे दाता मुझे बख्श ले मुझे इस भवसागर से पार करवा दे मुझे अब नर्कों की आग से भय लगता है बहुत सारी उम्र मैंने व्यर्थ गवा दी है अब मेरे ऊपर कृपा करो मुझे इस नर्कों की आग से बचा लो मुझे अच्छे जीवन का ढंग बताए हे दाता दयालु और कृपालु मेरे पर कृपा करो तो अंतर्यामी गुरु जी ने देखा कि भाई समुदा जी की आत्मा पछता रही है पछतावे में है यानी कि धर्म के रास्ते पर चलने के लिए तैयार हैं इसको गुरमत बक्षिणी जोग है तो ये देखकर सतगुरु ने फरमाया कि हे सिखा वाहेगुरु ने तुझे इस संसार में नाम सिमरन और लोक सेवा के लिए भेजा है इसलिए सुबह उठकर वाहेगुरु का सिमरन करना, धर्म की कीरत करनी, कृत्य करने और गुरबाणी का सुनना यह है जीवन युक्ति तो गुरु जी का उपदेश सुनकर भाई समुदा जी गुरु के मार्ग पर चला और गुरु के सिखों और भक्तों में गिना गया और अंत काल नर्कों की जगह स्वर्ग में जा विराजा  ।

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By Sant Vachan



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