Guru Hargobind Ji ki Sakhi । जब जहांगीर ने गुरु जी को कैद कर लिया तो क्या चमत्कार हुआ !

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु हरगोविंद साहिब जी महाराज जी की है जब आपको जहांगीर द्वारा दिल्ली बुलाया गया और आप जी को चंदूलाल द्वारा ग्वालियर के किले में कैद करवा कर आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई तो क्या हुआ आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग श्रवण करते हैं ।

साध संगत जी जब बादशाह जहांगीर ने श्री गुरु हरगोबिंद जी महाराज जी को दिल्ली बुलाया हुआ था तो उन दिनों में सतगुरु के और बादशाह जहांगीर के मेल मिलाप को देखकर जहांगीर के दरबार का एक कर्मचारी दीवान चंदूलाल यह देख कर बहुत दुखी हो रहा था तो फिर चंदूलाल ने बादशाह जहांगीर और सद्गुरु के मेल मिलाप को खत्म करना चाहा वह अनेक युक्ति बनाता हुआ एक ज्योतिष को मिला और सारी बात उसको बताइ तो चंदूलाल ने ज्योतिष को लालच देते हुए कहा की तू बादशाह को कहना कि आपके ऊपर शनि की दिशा आने वाली है जो कि आप को बहुत नुकसान देने वाली है और इसका उपाय यह बताना कि कोई हरगोविंद नाम का व्यक्ति है जो कि खत्री जात और सोढ़ी कुल में से हो और वह महापुरुष आपके लिए ग्वालियर के स्थान पर बैठकर 40 दिन के लिए माला फेर कर खुदा का नाम जपे तो चंदूलाल ने सोचा कि अगर ऐसा हो जाए तो मैं गुरु जी को सदा के लिए कैद करवा दूंगा उसके पिता की तरह इसका भी नाश करवा दूंगा तो ज्योतिषी ने अपनी चतुराई के साथ यह सब बातें बादशाह जहांगीर को कहीं तो पास बैठे चंदू और कुछ बुजुर्गों ने इस बात को अंगारा दिया और बादशाह को कहा कि ज्योतिषी बहुत ज्ञानवान है और यह ठीक कह रहा है तो बादशाह यह सब सुनकर बहुत डर गया और कहने लगा कि जल्दी से जल्दी ऐसे महापूर्ख की खोज की जाए तो चंदूलाल ने मौका संभालते हुए बादशाह को कहा कि ऐसा महापुरुष तो आपके पास ही है जिस ने शेर को मारा था और उसकी सोडी कुल और जात खत्री है और उसका नाम भी गुरु हरगोबिंद साहिब जी है जो कि प्रसिद्ध है तो यह सुनकर बादशाह ने कहा कि वह किस तरह हमारे लिए मान जाएंगे वह तो महान गद्दी पर विराजमान है तो यह सुनकर चंदू ने उसी वक्त कहा कि बिना किसी शंका के उनको ग्वालियर के किले में भेजने का विचार करें और मन में कुछ भी विचार ना करें तो वजीरों ने भी बहुत प्रशंसा की की ज्योतिष बहुत ज्ञानी है और बहुत जानकार है इसने पूरी परख करके प्रसिद्ध पुर्ख का नाम बताया है अगर गुरु हरगोबिंद साहिब जी ग्वालियर के किले में 40 दिन आपके लिए जाप करेंगे तो आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे मिट जाएंगे इस तरह चंदू ने सबको भरमा लिया और बादशाह मौत से डरता हुआ सतगुरु हरगोविंद जी महाराज जी के पास चला गया तो गुरुजी ने बादशाह का परेशान चेहरा देखा और उससे परेशानी का कारण पूछा तो बादशाह ने उस पर आने वाली शनि की दशा के बारे में बताया और उसका उपाय सतगुरु को बताया कि आप मेरे लिए ग्वालियर के किले में 40 दिन बैठकर खुदा का नाम सिमरन करें तो ये सुनकर गुरु साहब सब समझ गए कि यह चंदू की चाल है तो सतगुरु ने सोचा कि अगर बादशाह को जवाब दे दिया तो बिगाड़ पैदा हो जाएगा और बादशाह सतगुरु अर्जन देव जी महाराज जी की शहादत के असल तथ्य को जान नहीं पाएगा तो गुरुजी ने सोच विचार कर बादशाह का कहना स्वीकार कर लिया ये सुनकर बादशाह बहुत खुश हुआ और उसने जल्द ही आज्ञा पत्र लिखवाकर ग्वालियर के किले द्वार के पास भेज दिया तो बादशाह ने गुरु साहिब जी की हर तरह की सेवा संभाल करने का हुक्म दे दिया सतगुरु महाराज जी ने सिखों को पीछे देखभाल करने के लिए कहा और खुद सतगुरु 5 सिखों के साथ ग्वालियर के किले की तरफ चले गए साध संगत जी ग्वालियर किले का किलेदार हरिदास सतगुरु के दर्शनों के लिए बहुत उतावला था उसने गुरु जी को बड़े ही सम्मान के साथ श्रेष्ठ स्थान पर बिठाया और गुरुजी भी उसकी सेवा देखकर बहुत प्रसन्न हुए तो किले के अंदर बहुत बड़े-बड़े राजे कैद काट रहे थे तो उन्होंने गुरु जी के दर्शन करके सुख प्राप्त किया, किले के अंदर उन राजाओं का रहन-सहन बहुत खराब था और ना ही उन्हें उस कैद से रिहा होने की कोई आस थी तो सतगुरु जी के आ जाने के कारण उनकी भी लंगर में बहुत अच्छी सेवा होने लगी अच्छा पकवान उन्हें मिलने लगा तो उसके बाद सतगुरु ने भाई जेठा जी और भाई पुराना जी को कहा कि आप बाहर जाकर हथी कृत कर कर राशन लेकर आओ हम वही राशन खाएंगे तो सिख गुरु जी का हुक्म मान कर बाहर जाकर बर्तन करने वाले ठहरे के पास जाकर मेहनत करने लगे वह अपने की हुई कमाई से बाजार में से रसद लेकर लंगर तैयार करते और गुरु जी उसी कृति का लंगर परवान करते तो साध संगत जी चंदूलाल अपनी चाल के मुताबिक गुरुजी को ग्वालियर के किले में कैद करवा कर बहुत खुश हो गया और सोचने लगा कि अब गुरुजी को खत्म करना आसान हो जाएगा तो साध संगत जी उसके बाद चंदूलाल ने अपने एक सिपाही के माध्यम से किलेदार हरिदास को पत्र लिखा जिसमें लिखा हुआ था की किले के अंदर मेरा एक बड़ा दुश्मन गुरु हरगोबिंद साहिब पहुंच गया है जिसको आप जहरीली पोशाक करवा कर खत्म कर देना फिर मैं अपने दासो की तरफ से आपका मान-सम्मान करवा दूंगा और आपको अपना मित्र बना लूंगा तो जब चंदूलाल का आदमी जहरीली पोशाक लेकर हरिदास के पास गया तो हरिदास ने सब कुछ सतगुरु महाराज जी को बता दिया कि गुरु जी आपको यहां भेजने का षड्यंत्र चंदूलाल ने रचा है सिमरन करने कि यहां पर कोई बात नहीं है उसने आप को खत्म करने की योजना बनाई है और मैं उसका कहना किसी भी तरह नहीं मानूंगा तो किलेदार ने चंदू का हुक्म मानने से इनकार कर दिया तो यह देखकर चंदूलाल को बहुत गुस्सा आया और उसने बादशाह के वजीरों को दान देकर यह सिखा दिया कि वह बादशाह को गुरु हरगोबिंद साहिब जी के बारे में याद ही ना करवाएं कि उनको 40 दिन के बाद बाहर निकालना है तो वजीरों ने ऐसा ही किया और वह बादशाह को यही कहते रहे कि गुरु जी आनंद में है और आपकी भलाई गुरु साहिब जी के किले में रहने में ही है क्योंकि जितनी देर गुरु जी किले में आपके लिए सिमरन करते रहेंगे उतनी देर आपको कोई भी दुख तकलीफ नहीं होगी उधर आए हुए पांचों सिखों ने सलाह दी कि वजीरों ने बादशाह की बुद्धि फेर दी है और चंदू ने अपना कार्य पूरा कर लेना है और यह बात गुरु अर्जन देव जी के जैसे ही हो रही है तो साध संगत जी भाई जेठा जी ने और भाई पराणा जी ने साथ मिलकर विचार किया कि गुरु जी को बाहर निकालने का हमें कोई प्रयास करना चाहिए कोई उपाय करना चाहिए फिर वहां पर बाबा बुड्ढा जी पहुंच गए तो उनकी तरफ से सिखों ने अमृतसर के बारे में पूछा वहां की खबर ली तो उन्होने बताया कि उन्हें जब पता चला कि सतगुरु ग्वालियर के किले में जा विराजे हैं तो यह सुनकर माता गंगा जी बहुत परेशान है उन्होंने हमें गुरु साहिब जी को रिहा करवाने के लिए इस कार्य को पूरा करने के लिए हमें जहां भेजा है उसके बाद बाबा बुड्ढा जी ग्वालियर के किले में कैद सतगुरु हरगोविंद जी महाराज जी के पास पहुंच गए तो जब बाबा बुड्ढा जी किले में पहुंचे तो गुरु जी ने बाबा बुड्ढा जी से माता जी और समूह साध संगत की खबर सार ली तो बाबा बुड्ढा जी ने बताया कि अमृतसर साहिब में सब कुछ ठीक है और संगत की तरफ से खूब सेवा की जा रही है और माताजी आपका किले में प्रवेश करने को लेकर बहुत चिंता में हैं वह आपको जल्द ही अपनी आंखों के सामने देखना चाहते हैं और उनके कहने पर ही मैं यहां पर आया हूं तो यह सुनकर सतगुरु ने कहा कि आप माता जी को हमारी तरफ से हमारी रजामंदी और संगत की सुख शांति की खबर उन्हें भेज दे और कहो कि हम जल्दी ही आ जाएंगे तो उधर चंदूलाल ने बादशाह को दिल्ली जाने के लिए प्रेरित किया चंदूलाल का मानना था कि बादशाह सतगुरु से अगर दूर रहेगा तो उन्हें जल्दी ही भूल जाएगा बादशाह ने गुरु जी को ग्वालियर के किले में भेजने के बाद भुला दिया तो साध संगत जी एक रात बादशाह को एक सपना आया जिसमें उसे शेर दिखाई दिए और बादशाह बहुत डर गया तो उसी समय बादशाह ने गुरु जी को याद किया और उसका डर दूर हो गया तो सुबह होने पर जब बादशाह ने अपने उस सपने के बारे में वजीरो को बताया तो वजीरो ने कहा कि यह केवल मात्र एक सपना था आप फिक्र ना करें आप अपनी भलाई के लिए गुरुजी को ग्वालियर के किले में ही सिमरन करने दे तो जहांगीर वजीरों की ओर चंदूलाल की चालाकी को ना समझ सका तो अगले दिन रात को बादशाह को फिर सपने में शेर दिखाई दिए तो उस समय बादशाह ने समझदार व्यक्ति बुलाएं और उन्हें बताया कि मुझे फिर सपने में शेर दिखाई दिए जोकि बहुत भयानक थे और तभी मैंने गुरु साहब को याद किया और उन्होंने मुझे बचाया तो बादशाह ने जब इस के बारे में पीर जलालुद्दीन को बताया तो पीर जलालुद्दीन ने फरमाया कि आपने किसी रब के प्यारे को दुख दिया है जिसका फल आपको मिल रहा है उस समय मियां मीर जी ने भी दिल्ली जाकर बादशाह के इस रोग का यह कारण बताया तो साध संगत जी मियां मीर जी ने बादशाह को वह सारी बात बताई कि किस तरह चंदूलाल ने सतगुरु अर्जन देव जी महाराज जी को तहसीहे देकर शहीद किया था  और उनके इस पुत्र को भी अब उसी तरह कैद किया हुआ है और अब यह सब का तेरे ऊपर पाप लगा है पीर मियां मीर जी की तरफ से जो जुल्म हुआ सुनकर बादशाह का मन डगमगा गया कुछ इतिहासकारों ने यह भी लिखा है कि भाई जेठा जी अपनी सिद्धियों के बल के कारण रात को शेर बनकर बादशाह को डराया करते थे परंतु जब इसकी खबर सतगुरु महाराज जी को हुई तो सतगुरु ने भाई जेठा जी को ऐसा करने से मना कर दिया तो साध संगत जी जब मियां मीर जी ने बादशाह को इस तरह बताया तो बादशाह ने वजीर को सतगुरु को ग्वालियर के किले से लाने के लिए कहा और उसके बाद वजीर खान ने ग्वालियर के किले में पहुंचकर सद्गुरु को नमस्कार की और कहा कि मुझे बादशाह ने आपके पास भेजा है और बादशाह को आपकी महान उपमा का एहसास हो गया है तो अब आप जी दिल्ली चलकर बादशाह को दर्शन दे तो ये सुनकर गुरुजी ने फरमाया की हमारे दिल्ली जाने में एक रुकावट पैदा हो रही है हमारे यहां आ जाने से कैदियों को सुख प्राप्त हुआ है यहां के कैदियों ने हमारी शरण प्राप्त कर कर हमें विनती की है कि हमें छोड़कर मत जाना सो बादशाह इन को रिहा कर देगा तब ही हम दिल्ली जाएंगे हमारी तरफ से रिहाई की वार्ता बादशाह को बता दें तो यह सुनकर वजीर खान ने बादशाह को बताया की ग्वालियर के किले में कैद सभी राजे सतगुरु की शरण प्राप्त कर चुके हैं अगर सभी कैदी किले में से रिहा कर दिए जाएंगे तब ही गुरु जी बाहर आ पाएंगे तो ये सुनकर बादशाह सोच में पड़ गया कि मैंने बहुत धन लगाकर इन राजाओं को कैद किया था अब इनको कैसे छोड़ा जा सकता है तो यह सुनकर वजीर खान ने कहा कि हजूर सभी सुख शरीर के साथ ही होते हैं और इसके बराबर और कोई भी सुख नहीं इसलिए आपको अपने शरीर की सुख शांति के लिए गुरुजी की बात मान लेनी चाहिए तो जहांगीर बादशाह ने सोच विचार करके वजीर खान को फिर सतगुरु के पास भेज दिया और कहा कि जितने भी कैदी गुरु साहब का पल्ला पकड़ लेते हैं वह किले से बाहर आ जाएं तो वजीर खान ने किले मे जाकर सतगुरु को सम्मान के साथ नमस्कार की और कहा कि जितने भी कैदी आप के चोले के पल्ले को पकड़ सकते हैं आप उनको बाहर ले आए तो साध संगत जी ग्वालियर के किले को छोड़ने के समय सतगुरु ने सुंदर वस्त्र पहन लिए और सतगुरु ने सभी राजा महाराजाओं को अपने पास बुलाया और सतगुरु ने फरमाया कि एक एक राजा हमारे पल्ले को पकड़ ले गुरु जी के चोले के 50 पल्ले थे तो 50 राजाओं ने 50 पल्लो को पकड़ लिया और पीछे दो राजे रह गए तो उन्होंने सतगुरु के आगे अरदास की कि गुरु जी हमें भी मुक्त करें हम उम्र भर कैद से बाहर नहीं निकल पाएंगे तो फिर गुरु जी ने उनको चोले की दोनों तनियों को पकड़ने के लिए कहा तो सभी लोग यह सुनकर श्रद्धा भावना के साथ गुरु जी को देखने के लिए किले के बाहर आ खड़े हुए उन्होंने बहुत श्रद्धा के साथ सतगुरु के आगे शीश निभाया और सतगुरु की प्रशंसा कर रहे थे तो साध संगत जी इस प्रकार के कारण सद्गुरु का नाम बंदी छोड़ प्रसिद्ध हो गया कुछ इतिहासकारों का कहना है कि सतगुरु किले में 2 साल 3 महीने तक रहे उस उपरांत वजीर खान गुरु जी को बड़े ही आदर सत्कार के साथ दिल्ली ले गया और बादशाह जहांगीर ने सतगुरु से माफी मांगी और योग्यता देकर सम्मान किया तो इस तरह 52 राजा जहांगीर का धन्यवाद करके और सतगुरु को नमस्कार कर के अपने अपने राज की तरफ चले गए उधर चंदूलाल की सच्चाई जानकर जहांगीर को बहुत क्रोध आया उसने गुरु जी को बताया कि सतगुरु जी यह आपका गुनाही है इसने सतगुरु अर्जन देव जी को तहसीहे देकर शहीद किया था इसको आप पकड़ ले और फिर आपकी जो मर्जी आप इसे जो मर्जी सजा दे तो बादशाह का हुक्म मान कर भाई जेठा जी चंदू को पकड़कर अपने डेरे ले आए और उसके बाद सतगुरु दिल्ली से चलकर अमृतसर गए और अमृतसर से लाहौर गए तो लाहौर की संगत सतगुरु के लिए बहुत सारी भेटे लेकर आई और फिर कुछ सिखों ने सतगुरु के आगे अर्जी की कि दोषी चंदू पकड़ा तो गया अब इसे सख्त सजा मिलनी चाहिए तो चंदू की हालत बहुत खराब हो गई थी चंदू को लोगों की तरफ से बहुत तसीहे दिए गए, चंदू को पूरे लाहौर शहर में फेरा गया सभी लोग उसको फटकारे देते हुए उसे घृणा करते हुए लोगों ने उसकी कूटमार की फिर कुदरत का भाना ऐसा हुआ कि वह वहां पर चला गया जहां पर गुरु अर्जन देव जी महाराज जी पर डालने के लिए रेत मंगवाई गई थी जो गर्म कर कर गुरुजी पर चंदू ने डलवाई थी दुष्ट चंदू को देखकर उस भट्ठी वाले के मन में क्रोध आ गया उसके हाथ में गर्म वर्षा था उसने चंदू की तरफ चला दिया तो साध संगत जी लोहे का वह भारी वर्षा बहुत गर्म था जिसने चंदू का पेट चीर दिया वह मुंह से हाय बोलता हुआ धरती पर गिर गया आखिर बहुत दुख भोगते हुए चंदू के प्राण निकल गए ।

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