Guru Hargobind Ji ki Sakhi । गुरु जी ने शेर को क्यों मारा ? शेर का पिछला जन्म क्या था ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु हरगोबिंद जी महाराज जी की है जब सतगुरु जहांगीर के साथ जंगल में शिकार खेलने के लिए गए वहां पर सतगुरु ने एक शेर का शिकार क्यों किया था आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी, एक दिन बादशाह जहांगीर श्री गुरु हरगोबिंद जी महाराज जी को अपने साथ जंगल में शिकार खेलने के लिए ले गया जंगल में पहुंचकर सतगुरु महाराज जी ने ऐसी बहादुरी दिखाई कि उन्होंने कोई भी शिकार अपने हाथ से खाली नहीं जाने दिया, बादशाह जहांगीर सतगुरु महाराज जी को शस्त्र विद्या में निपुण देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और उनकी तारीफ करने लगा, साध संगत जी बादशाह जहांगीर ने यह सुन रखा था कि इस जंगल में एक खूंखार शेर रहता है इसलिए जहांगीर ने अपने सभी सिपाहियों को कहा कि उस तरफ कुच करो जहां वह शेर रहता है तो शेर का शिकार करने के लिए बादशाह जहांगीर शेर के पैरों के निशान देखकर उस तरफ आगे बढ़ने लगा तो जब सभी शेर की खोजबीन करने लगे और उस तरफ आगे बढ़ने लगे जहां पर शेर था तो घोड़ों के पैरों की आवाज सुनकर शेर भवक मार कर बाहर निकल आया तो साध संगत जी उसको देखते ही सभी भाग खड़े हुए कोई भी उसके नजदीक ना आया, घोड़े डर गए और बादशाह का हाथी भी वहां टिक नहीं रहा था तो बादशाह ने वहां पर कहा कि आगे होकर जो इस शेर को मारेगा उसको मैं बहुत सारा इनाम दूंगा तो शेर की गरज से डर कर कोई भी जोधा आगे ना हुआ परंतु धन धन श्री गुरु हरगोबिंद जी महाराज शेर को देखकर पीछे नहीं हटे बल्कि शेर का शिकार करने के लिए घोड़े से उतर कर नीचे आ गए और सतगुरु महाराज जी तलवार और ढाल पकड़ कर उसकी तरफ चल पड़े तो यह देखकर सभी इस अजीब कोतक को देखने लगे तो गुरु जी बड़े ही धीरज के साथ आगे बढ़ते जा रहे थे और सतगुरु ने आगे बढ़कर शेर को बंगारा तो शेर क्रोध में आया और उसने अपनी पूछ को फटकारा गुरुजी ने भी उसको फिर ललकारा और वह अब लपकने के लिए तैयार था और गुरुजी भी उसका वार संभालने के लिए तैयार थे तो शेर बड़का और गर्जना करता हुआ गुरुजी के ऊपर झपटा तो साध संगत जी जहांगीर और उसके दल के बहादुरों की आंखें बंद हो गई और वह सोचने लगे कि अब गुरु जी इसके आगे बच नहीं पाएंगे तो वह वहां खड़े डर रहे थे और देख रहे थे परंतु कोई भी नजदीक नहीं आ रहा था तो गुरु जी ने शेर का वार अपनी डाल से रोका और पैरों को मजबूत रखते हुए सतगुरु ने अपनी तलवार का एक भरपूर वार शेर के शरीर पर किया इससे पहले कि शहर दोबारा हमला करता सतगुरु के किए हुए वार से उसका शरीर कट कर अंदर से बाहर लटक गया और वह वहीं पर खड़ा हवा में से धरती पर आ गिरा तो उसके बाद उसके आगे के पंजे हिले और मुंह में से एक गंभीर आवाज निकली और उसका शरीर अढोल हो गया और शेर मर चुका था तो जहांगीर ने यह घटना अपनी आंखों से देखी थी उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई भी व्यक्ति इतने बड़े शेर को अपनी ढाल और तलवार के साथ इस तरह मार सकता है उसने गुरुजी को धन हो धन हो कहा और पास खड़ा होकर शेर को देखने लग गया तो वहां पर शेर की जान निकल गई और वहां पर बहुत सारा प्रकाश हो गया और पूरे आसमान में लाली फैल गई तो ये देखकर बादशाह ने अपनी आंखें ऊपर उठाई और श्री गुरु हर गोविंद महाराज जी से पूछने लगा कि यह क्यों हुआ यह कौन था और यह मरकर कहां चला गया है इस तरह का प्रकाश क्यों दिखाई दिया है और ऐसा वाक्य पहली बार देख कर मैं बहुत हैरान हुआ हूं तो उसके प्रश्न का जवाब देते हुए सतगुरु ने कहा कि इसका नाम कास वेग है आप जो उनसे पूछना चाहते हैं पूछ सकते हैं उसका जवाब इनसे ले सकते हैं तो बादशाह जहांगीर ने शेर को बुलाया तो शेर ने कहा कि मैं पिछले जन्म में मनुष्य के जन्म में था और अब इस शेर के जामे में होकर इस जंगल में रहता था और आपके पिता बादशाह अकबर थे और मैं कबीले में से उनका भाई लगता था एक बार बादशाह अकबर मन में गुरु के दर्शनों की इच्छा को लेकर सतगुरु अमरदास जी के पास गए थे तो मैं भी उनके साथ चला गया तो उन्होंने सिखों के गुरु जोकि सतगुरु अमरदास जी थे उनको और उनके सिखों को हाथ जोड़कर प्रणाम किया तो ये देखकर मैंने बहुत गुस्सा किया कि इतना बड़ा बादशाह होकर यह हाथ क्यों जोड़ रहा है इतना बड़ा बादशाह होकर यह सिखों के गुरु को क्यों मानता है यह देखकर मैंने बहुत निंदा की परंतु मेरा चारा कोई भी ना चला और रात में वहां गोइंदवाल में डेरा लगाया तो जब रात को वहां पर मेरे लिए खाना तैयार होकर आया तो उसमें से एक प्याला मास का भी था मैं उसको लालच के कारण खा गया लेकिन मास कच्चा था जिसके कारण रात को मेरे पेट में दर्द हुआ इतनी दर्द हुई कि उस ख्याल में ही मेरे प्राण छूट गए इसलिए मुझे शेर का शरीर धारण करना पडा और दूसरा ध्यान मेरा गुरु तरफ था उसका फल अब मुझे यह मिला कि गुरु जी ने अब आप आकर मुझे मार दिया है मेरा उधार कर दिया है इस तरह कहकर वह शेर स्वर्ग में चला गया और यह देखकर बादशाह बहुत हैरान हुआ वह उसका ना रूप देख सका और ना ही आकार देख सका बादशाह को ऐसे लगा जैसे कोई हवा में से बात कर रहा है और दिखाई नहीं दे रहा तो बादशाह ने सतगुरु की बढ़याई को जाना और उनकी तारीफ करते हुए कहा कि गुरु साहिब की गद्दी अलौकिक शक्ति वाली है जिसने हजारों के दिलों में खुशियां परगट की है ।

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