रामकली महला ५ ॥ बीज मंत्रु हरि कीरतनु गाउ ॥ आगै मिली निथावे थाउ ॥ गुर पूरे की चरणी लागु ॥ जनम जनम का सोइआ जागु ॥१॥ हरि हरि जापु जपला ॥ गुर किरपा ते हिरदै वासै भउजलु पारि परला ॥१॥ रहाउ ॥ नामु निधानु धिआइ मन अटल ॥ ता छूटहि माइआ के पटल ॥ गुर का सबदु अम्रित रसु पीउ ॥ ता तेरा होइ निरमल जीउ ॥२॥
(हे भाई!) परमात्मा की सिफत (का गीत) गाया करो ( परमात्मा को वश में करने का यह सब से उत्तम मन्त्र है। (कीर्तन की बरकत से) परलोक में बेआसरा जीव को भी आसरा मिल जाता है। (हे भाई!) पूरे गुरु की चरणों पर पड़ा रह, इस प्रकार कई जन्मो से (माया के मोह की) निंद्रा से तू जाग जायगा।१। (हे भाई! जिस मनुख ने) परमात्मा (के नाम) का जाप जपा, (जिस मनुख के) ह्रदय में गुरु की कृपा से (परमात्मा का नाम) आ बस्ता है , वह संसार-समुंदर से पार निकल गाया।१।रहाउ। हे मन! परमात्मा का नाम कभी न ख़तम होने वाला खज़ाना है, इस का सुमिरन करता रह, तभी तेरे माया (के मोह) के परदे फटेंगे। हे मन! गुरु का शब्द आत्मिक जीवन देने वाला रस है, इस को पिता रह, तभी तेरी जींद पवित्र होगी।२।
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