सोरठि महला ५ ॥ अंतर की गति तुम ही जानी तुझ ही पाहि निबेरो ॥ बखसि लैहु साहिब प्रभ अपने लाख खते करि फेरो ॥१॥ प्रभ जी तू मेरो ठाकुरु नेरो ॥ हरि चरण सरण मोहि चेरो ॥१॥ रहाउ ॥ बेसुमार बेअंत सुआमी ऊचो गुनी गहेरो ॥ काटि सिलक कीनो अपुनो दासरो तउ नानक कहा निहोरो ॥२॥७॥३५॥
अर्थ :-हे भगवान जी ! तूं मेरा पालणहारा स्वामी हैं, मेरे अंग-संग बसता हैं। हे हरि ! मुझे अपने चरणों की शरण में रख, मुझे अपना दास बनाए रख।1।रहाउ। हे मेरे अपने स्वामी भगवान ! मेरे दिल की हालत तूं ही जानता हैं, तेरी शरण आने से ही (मेरी अंदर वाली मंदी हालत का) खातमा हो सकता है। मैं लाखों पाप करता घूमता हूँ। हे मेरे स्वामी ! मुझे बख्श ले।1। हे बेशुमार भगवान ! हे बयंत ! हे मेरे स्वामी ! तूं ऊँची आत्मिक अवस्था वाला हैं, तूं सारे गुणों का स्वामी हैं, तूं गहरा हैं। गुरू नानक जी स्वयं को कहते हैं, हे नानक ! (बोल-हे भगवान ! जब तूं किसी मनुख की विकारों की) फांसी काट के उस को अपना दास बना लेता हैं, तब उस को किसी की मोहताजी नहीं रहती।2।7।35।
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