विणु नावै वेरोधु सरीर ॥ किउ न मिलहि काटहि मन पीर ॥ वाट वटाऊ आवै जाइ ॥ किआ ले आइआ किआ पलै पाइ ॥ विणु नावै तोटा सभ थाइ ॥ लाहा मिलै जा देइ बुझाइ ॥ वणजु वापारु वणजै वापारी ॥ विणु नावै कैसी पति सारी ॥१६॥
अर्थ: हे पांडे! तू क्यों गोपाल का नाम अपने मन की पट्टी के ऊपर लिखता? नाम सिमरन के बिना ज्ञान इंद्रियों का आत्मिक जीवन से विरोध पैदा हो जाता है। क्यों गोपाल की याद में नहीं जुड़ता? और क्यों अपने मन का रोग दूर नहीं करता? (गोपाल का)(गोपाल का नाम अपने मन की पट्टी पर लिखे बिना) जीव मुसाफिर जगत में जैसे आता है वैसे ही यहां से चला जाता है। और यहां रहकर भी कोई आत्मिक लाभ नहीं कमा पाता। नाम से दूर रहने के कारण हर जगह घाटा ही घाटा रहता है। (भाव अर्थ कि मनुष्य प्रभु को विसार कर जो भी काम करता है वह कार्य खोटा होने के कारण मनुष्य को ऊंचे जीवन की तरफ से दूर ले जाती है)। परंतु मनुष्य को प्रभु के नाम का लाभ तभी प्राप्त होता है जब गोपाल स्वयं ही यह सूझ देता है। नाम से दूर रहकर जीव वंजारा और और (दुनियावी) वनज व्यापार करता है, (परंतु) परमात्मा की हजूरी में उस की अच्छी साख नहीं बन पाती।
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