रागु गोंड बाणी रविदास जीउ की घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मुकंद मुकंद जपहु संसार ॥ बिनु मुकंद तनु होइ अउहार ॥ सोई मुकंदु मुकति का दाता ॥ सोई मुकंदु हमरा पित माता ॥१॥ जीवत मुकंदे मरत मुकंदे ॥ ता के सेवक कउ सदा अनंदे ॥१॥ रहाउ ॥ मुकंद मुकंद हमारे प्रानं ॥ जपि मुकंद मसतकि नीसानं ॥ सेव मुकंद करै बैरागी ॥ सोई मुकंदु दुरबल धनु लाधी ॥२॥
राजगोंड घर दो में भगत रविदास जी की वाणी अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे, लोगो,, मुक्ति के दाते प्रभु को सदा सिमरा करो उसके सुमिरन के बिना यह शरीर व्यर्थ ही चला जाता है। वह प्रभु ही दुनिया के बंधनों से मेरी रक्षा कर सकता है। मेरा तो मां-बाप ही वह प्रभु है।।1।। बंदगी करने वाला जिवित अवस्था में भी प्रभु को याद करता है और मरने के बाद भी उसी को याद करता है। (सारी उम्र भी प्रभु को याद रखता है) माया के बंधन से मुक्ति देने वाले प्रभु की बंदगी करने वाले को सदा ही आनंद बना रहता है।।1।। रहाउ।। प्रभु का सिमरन मेरे जीवन (का सहारा बन गया) है, प्रभु सिमर कर मेरे मस्तक के भाग्य उदय हो गए हैं, प्रभु की भक्ति मनुष्य को वैरागवान कर देती, है मुझे गरीब को प्रभु का नाम धन प्राप्त हो गया है॥2॥ जो एक परमात्मा मेरे ऊपर कृपा करें तो (मुझे चमार चमार कहने वाले यह लोग मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। हे प्रभु, (तेरी भक्ति ने) मेरी (नीची) जात वाली (ढहती कला मेरे अंदर) से मिटा दी है, क्योंकि मैं सदा तेरे दर पर रहता हूं तू ही सदा मुझे दुनिया के बंधनों से (मोहताजी )से बाहर निकालने वाला है। प्रभु की बंदगी से मेरे अंदर आत्मिक जीवन की सूझ पैदा हो गई है, प्रकाश हो गया है। कृपा करके मुझे निमाने दास को प्रभु ने अपना बना लिया है। रविदास जी कहते हैं, हे रविदास, कह, है प्रभु अब मेरी तृष्णा समाप्त हो गई है। मैं अब प्रभु का सिमरन करता हूं, नित्य प्रभु की भक्ति करता हूं॥4॥1॥
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