रामकली महला ५ ॥ त्रै गुण रहत रहै निरारी साधिक सिध न जानै ॥ रतन कोठड़ी अम्रित स्मपूरन सतिगुर कै खजानै ॥१॥ अचरजु किछु कहणु न जाई ॥ बसतु अगोचर भाई ॥१॥ रहाउ ॥ मोलु नाही कछु करणै जोगा किआ को कहै सुणावै ॥ कथन कहण कउ सोझी नाही जो पेखै तिसु बणि आवै ॥२॥
हे भाई! वह कीमती पदार्थ माया के तीनो गुणों से परे अलग रहता है, वः पदार्थ योग-साधना करने वाले और साधनों में पूर्ण योगियो से भी साँझ नहीं बनाता (भावार्थ, योग-साधना के द्वारा वह नाम-वस्तु नहीं मिलती)। हे भाई! वह कीमती पदार्थ गुरु के खजाने में हैं। वह पदार्थ है -प्रभु के आत्मिक जीवन देने वाले गुण-रत्नों से लब-लब भरी हुई हृदय -कोठरी॥1॥ हे भाई! एक अनोखा तमाशा बना पड़ा है, जिस के बारे में कुछ बताया नहीं जा सकता। (अनोखा तमाशा यह है कि गुरु के खजाने में ही प्रभु का नाम एक) कीमती वास्तु है जिस तक (मनुख के) ज्ञान-इन्द्रियों की पहुँच नहीं हो सकती॥1॥रहाउ॥ हे भाई! उस नाम-वस्तु का मुल्य कोई जीव नहीं प् सकता। कोई भी जीव उस का मुल्य नहीं कह सकता, बता नहीं सकता। (उस कीमती पदार्थ की सिफत) बताना के लिए किसी की भी अकल काम नहीं कर सकती। हाँ, जो मनुख उस वास्तु को देख लेता है, उस का उस से प्यार बन जाता है॥2॥
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