रामकली महला ५ ॥ कोटि जाप ताप बिस्राम ॥ रिधि बुधि सिधि सुर गिआन ॥ अनिक रूप रंग भोग रसै ॥ गुरमुखि नामु निमख रिदै वसै ॥१॥ हरि के नाम की वडिआई ॥ कीमति कहणु न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ सूरबीर धीरज मति पूरा ॥ सहज समाधि धुनि गहिर ग्मभीरा ॥ सदा मुकतु ता के पूरे काम ॥ जा कै रिदै वसै हरि नाम ॥२॥ सगल सूख आनंद अरोग ॥ समदरसी पूरन निरजोग ॥ आइ न जाइ डोलै कत नाही ॥ जा कै नामु बसै मन माही ॥३॥ दीन दइआल गोपाल गोविंद ॥ गुरमुखि जपीऐ उतरै चिंद ॥ नानक कउ गुरि दीआ नामु ॥ संतन की टहल संत का कामु ॥४॥१५॥२६॥
अर्थ: हे भाई, परमात्मा के नाम की महत्वता बताई नहीं जा सकती, हरि के नाम का मूल्य आंका नहीं जा सकता। रहाऊ। (हे भाई )गुरु के द्वारा (जिस मनुष्य के) हृदय में, आँख के झपकने जितने समय के लिए भी हरि का नाम बसता है तो मानो वह अनेकों रूप रंग वह माया के आनंद मनाता है।उस मनुष्य की देवताओं जैसी सूझ बुझ हो जाती है। उसकी बुद्धि ऊंची हो जाती है और वह रिद्धियों सिद्धियों का (मालिक बन जाता है) करोड़ों जप जपों व तपों का फल उसके अंदर आ बसता है। जिस मनुष्य के हृदय में परमात्मा का नाम आ बस्ता है, वह (विकारों के मुकाबले में)सूरमा और बहादुर है, वह पूरी अकल और धीरज का मालिक हो जाता है, वह सदा आत्मिक अडोलता में टिका रहता है, प्रभु के साथ उसकी गहरी लगन लगी रहती है, वह सदा विकारों से आजाद रहता है, उसके सारे काम सफल हो जाते हैं। २। जिस मनुष्य के मन में हरि का नाम आ बसता है वह कहीं डोलता नहीं कहीं भटकता नहीं माया के प्रभाव से वह सदा निर्लेप रहता है सब के अंदर वह परमात्मा का रूप जोत देखता है, उस को सारे सुख आनंद प्राप्त रहते हैं, वह मानसिक रोगों से बचा रहता है। (हे भाई गुरु गुरु की शरण आकर दिन लोगों पर दया करने वाले उस परमात्मा का नाम सुमिरन करना चाहिए(जो मनुष्य परमात्मा का नाम सुमिरन करता है उसकी सारी चिंता फिक्र दूर हो जाती है। (हे भाई)(गुरु नानक जी कहते हैं) मुझे नानक को गुरु ने प्रभु का नाम दिया है संत जनों की सेवा की दात बक्शी है, हरि का नाम सिमरन ही गुरु का बताया हुआ काम है।४।१५।२६।
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