सोरठि महला ३ घरु १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सेवक सेव करहि सभि तेरी जिन सबदै सादु आइआ ॥ गुर किरपा ते निरमलु होआ जिनि विचहु आपु गवाइआ ॥ अनदिनु गुण गावहि नित साचे गुर कै सबदि सुहाइआ ॥१॥ मेरे ठाकुर हम बारिक सरणि तुमारी ॥ एको सचा सचु तू केवलु आपि मुरारी ॥ रहाउ ॥
राग सोरठि, घर १ में गुरु अमरदास जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे प्रभु! तेरे जिन सेवकों को गुरु के शब्द का रस आ जाता है, वो ही सारे तेरी सेवा-भक्ति करते हैं। (हे भाई!) जिस मनुख ने गुरु की कृपा से अपने अंदर से आप-भाव (मैं) दूर कर लिया वह पवित्र (जीवन वाला हो जाता है। जो मनुख गुरु के शब्द में (जुड़ के) हर समय सदा-थिर प्रभु के गुण गाते रहते है, वह सुंदर जीवन वाले बन जाते हैं।१। हे मेरे मालिक-प्रभु! हम (जीव) तुम्हारे बच्चे हैं, तुम्हारी सरन में आये हैं। सिर्फ एक तुम ही सदा कायम रहने वाले हो, (जीव माया में डोल जाते हैं।रहाउ।
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