रागु सूही महला १ कुचजी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मंञु कुचजी अमावणि डोसड़े हउ किउ सहु रावणि जाउ जीउ ॥ इक दू इकि चड़ंदीआ कउणु जाणै मेरा नाउ जीउ ॥ जिन्ही सखी सहु राविआ से अम्बी छावड़ीएहि जीउ ॥ से गुण मंञु न आवनी हउ कै जी दोस धरेउ जीउ ॥
राग सूही में गुरु नानक देव जी की बाणी "कुचजी" अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। (हे सखी!) मैंने सही जीवन का ढंग नहीं सिखा, मेरे अंदर इतने अवगुण हैं की अंदर समां नहीं सकते (इस हालत में) मैं प्रभु-पति को प्रसन्न करने के लिए कैसे जा सकती हूँ? (उस के दर पर तो) एक दूसरी से बढ़ कर अच्छी से अच्छी हैं, मेरा तो वहां पर कोई नाम भी नहीं जनता। जिन सखिओं ने प्रभु पति को प्रसन्न कर लिया है वह मानो, (चौमासे में) आम के पेड़ो की ठंडी छांव में बैठी हैं। मेरे अंदर तो वह गुण नहीं है (जिस से प्रभु पति आकर्षित होता है) मैं (अपनी इस अभाग्यता का) दोष और किसी को कैसे दे सकती हूँ?
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