धनासरी महला १ ॥ जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥ तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥.
हे प्रभु जी! तेरे नाम में (जुड़ के) मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है, मेरे मन में ख़ुशी पैदा होती है। हे भाई! परमात्मा का नाम सदा-थिर रहने वाला है, प्रभु गुणों (का खज़ाना ) है और धरती के जीवों के दिल की जानने वाला है। गुरु का बक्शीश ज्ञान बताता है की सिरजनहार प्रभु बयंत है, जिसने यह सृष्टि पैदा की है, वो ही इस को नास करता है। जब उस के हुकम में भेजा हुआ (मौत का) पैगाम आता है तो कोई जीव (उस पैगाम को) मोड़ नहीं सकता। परमात्मा खुद ही (जीवों को) पैदा कर के आप ही संभाल करता है, खुद ही हरेक जीव के सिर ऊपर (उस के किये कर्मो अनुसार) लेख लिख देता है, खुद ही (जिव को सही जीवन-राह की) सूझ देता है। मालिक-प्रभु अपहुँच है, जीवों की ज्ञान-इन्द्रियों की उस तक पहुँच नहीं हो सकती। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! (उस के दर प् अरदास कर, और कह-हे प्रभु! ) तेरी सदा कायम रहने वाली सिफत-सलाह कर के मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी सिफत-सलाह बक्श)।१।हे प्रभू जी! तेरे बराबर का और कोई नहीं है, (और जो भी जगत में) आया है, (वह यहाँ से आखिर) चला जाएगा (तू ही सदा कायम रहने वाला है)।
ऐसे ही रूहानी विचार रोजाना सुनने के लिए, नीचे अपनी E- Mail डालकर, वेबसाइट को सब्सक्राइब कर लीजिए ताकि हर नई पोस्ट की नोटिफिकेशन आप तक पहुंच सके ।
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.