धनासरी महला १ घरु १ चउपदे ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं(ग) गुर प्रसादि ॥ जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥ दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥ साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥ अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोए ॥ सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होए ॥२॥ दइआल तेरै नामि तरा ॥
अर्थ: राग धनासरी ,घर १ मे गुरू नानक देव जी की चार-बँदां वाली बाणी।अकाल पुरख एक है, जिस का नाम सच्चा है जो सिृसटी का रचनहार है, जो सब में मौजूद है, डर से रहित है, वैर रहित है, जिस का सरूप काल से परे है, (मतलब जिस का शरीर नाश रहित है), जो जूनों मे नही आता, जिस का प्रकाश अपने अाप से हुआ है और जो सतिगुरु की कृपा से मिलता है।(जगत दुखों का समुंद्र है, इन दुखों को देख कर) मेरी जिंद कांप जाती है (परमात्मा के बिना और कोई बचाने वाला नहीं दिखता) जिस के पास जा कर मैं अरजोई-अरदास करू। (इस लिए और आसरे छोड़ कर) मैं दुखों को नाश करने वाले प्रभू को ही सिमरता हूँ, वह सदा ही मेहर करने वाला है ॥१॥ (फिर वह) मेरा मालिक सदा ही बक्शीश तो करता रहता है (परन्तु वह मेरी रोज की बेनती सुन के बक्शीश करने में कभी परेशान नहीं होता) रोज ऐसे है जैसे पहली बार अपनी मेहर करना लगा है ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरी जिन्दे! हर रोज उस मालिक को याद करना चाहिए (दुखों से) आखिर वो ही बचाता है। हे मेरी जिन्दे! ध्यान से सुन (उस मालिक का सहारा लेने से ही दुखों से समुंद्र से) पार निकला जा सकता है ॥२॥ हे दयाल प्रभू! (मेहर कर, अपना नाम दे, जो कि) तेरे नाम से मैं (दुखों के इस समुँद्र को) पार कर सकूँ।मैं आपसे सदा सदके जाता हूँ ॥१॥ रहाउ ॥ सदा के लिए रहने वाला परमात्मा ही सब जगह हाजिर है, उस के बिना ओर कोई नही। जिस जीव पर वह मेहर की निगाह करता है, वह उस का सिमरन करता है ॥३॥ हे प्यारे (प्रभू!) तेरी याद के बिना मे परेशान हो जाता हूँ। मुझे कोई वह बड़ी दात दें, जिस करके मे तुम्हारे नाम मे जुड़ा रहा। हे प्यारे! तुम्हारे बिना ओर एेसा कोई नही है, जिस पास जा कर मैं यह अरझोई कर सका ॥१॥ रहाउ ॥ (दुखों के इस सागर से तरन लिए) मैं अपने मालक प्रभू को ही याद करता हूँ, किसी ओर से मैं यह माँग नही माँगता। गुरु नानक जी स्वयं को कहते हैं, कि नानक (अपने) उस (मालक) का ही सेवक है, उस मालक से ही खिन खिन सदके जाता है ॥४॥ हे मेरे मालक! मैं तेरे नाम से खिन खिन कुर्बान जाता हूँ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥
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