आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

गूजरी महला ३ ॥  तिसु जन सांति सदा मति निहचल जिस का अभिमानु गवाए ॥  सो जनु निरमलु जि गुरमुखि बूझै हरि चरणी चितु लाए ॥१॥ हरि चेति अचेत मना जो इछहि सो फलु होई ॥  गुर परसादी हरि रसु पावहि पीवत रहहि सदा सुखु होई ॥१॥ रहाउ ॥  सतिगुरु भेटे ता पारसु होवै पारसु होइ त पूज कराए ॥  जो उसु पूजे सो फलु पाए दीखिआ देवै साचु बुझाए ॥२॥ 

राग गूजरी  में गुरु अमरदास जी की बाणी,  परमात्मा जिस मनुष्य का अहंकार दूर कर देता है, उस मनुष्य को शांति प्राप्त हो जाती है, उस की अकल (माया-मोह से) डोलनी हट जाती है। जो मनुष्य गुरु की शरण में जा कर ( यह भेद ) समझ लेता है , और परमात्मा के चरणों में अपना मन जोड़ता है, वह मनुष्य पवित्र जीवन वाला बन जाता है ॥੧॥ हे (मेरे गाफिल मन! परमात्मा को याद करता रह, तुझे वही फल मिलेगा जो तू माँगेगा। ( गुरु की शरण पडो) गुरु की कृपा के साथ तू परमात्मा के नाम का रस हासिल कर लेगा, और , अगर तू उस रस को पिता रहेगा, तो तुझे सदा आनंद मिलता रहेगा ॥੧॥ रहाउ॥ जब किसी मनुष्य को गुरु मिल जाता है तब वह पारस बन जाता है (वह और मनुष्यों को भी ऊँचे जीवन वाला बनाने योग्य हो जाता है), जब वह पारस बनता है तब लोगों से आदर और मान हासिल करता है। जो भी मनुष्य उस का आदर करता है वह (ऊँचा आत्मिक जीवन रूप) फल प्राप्त करता है। (पारस बना हुआ मनुष्य दूसरों को भी ऊँचे जीवन की) शिक्षा देता है, और, सदा-थिर रहने वाले प्रभु की समझ देता है॥२॥

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