गउड़ी कबीर जी ॥ जिह मरनै सभु जगतु तरासिआ ॥ सो मरना गुर सबदि प्रगासिआ ॥१॥ अब कैसे मरउ मरनि मनु मानिआ ॥ मरि मरि जाते जिन रामु न जानिआ ॥१॥ रहाउ ॥ मरनो मरनु कहै सभु कोई ॥ सहजे मरै अमरु होइ सोई ॥२॥ कहु कबीर मनि भइआ अनंदा ॥ गइआ भरमु रहिआ परमानंदा ॥३॥२०॥ {पन्ना 327}
अर्थ: जिस मौत ने सारा संसार डराया हुआ है, गुरू के शबद की बरकति से मुझे समझ आ गई है कि वह मौत असल में क्या चीज है।1।अब मैं जनम-मरण के चक्कर में क्यूँ पड़ूंगा? (भाव, नहीं पड़ूंगा) (क्योंकि) मेरा मन स्वै भाव की मौत में पतीज गया है। (केवल) वह मनुष्य सदा पैदा होते मरते रहते हैं जिन्होंने प्रभू को नहीं पहचाना (प्रभू से सांझ नहीं डाली)।1। रहाउ।(दुनिया में) हरेक जीव ‘मौत मौत’ कह रहा है (भाव, हरेक जीव मौत से घबरा रहा है), (पर जो मनुष्य) अडोलता में (रह के) दुनियां की ख्वाहिशों से बेपरवाह हो जाता है वह अमर हो जाता है (उसे मौत डरा नहीं सकती)।2।हे कबीर! कह– (गुरू की कृपा से मेरे) मन में आनंद पैदा हो गया है, मेरा भुलेखा दूर हो चुका है, और परम सुख (मेरे हृदय में) टिक गया है।3।20।शबद का भाव: जो मनुष्य प्रभू का सिमरन करते हैं उन्हें मौत का डर नहीं रहता, बाकी सारा जहान मौत से डर रहा है।20।
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