आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

सलोकु मः ३ ॥   सतिगुर की सेवा चाकरी सुखी हूं सुख सारु ॥   ऐथै मिलनि वडिआईआ दरगह मोख दुआरु ॥   सची कार कमावणी सचु पैनणु सचु नामु अधारु ॥   सची संगति सचि मिलै सचै नाइ पिआरु ॥   सचै सबदि हरखु सदा दरि सचै सचिआरु ॥   नानक सतिगुर की सेवा सो करै जिस नो नदरि करै करतारु ॥१॥

गुरु की बताई सेवा चाकरी करना अच्छे से अच्छे सुख का तत्व है (गुरु की बताई सेवा करने से) जगेअत में आदर मिलता है, और प्रभु की हजूरी में सुर्खरुई का दरवाजा। (गुरु-सेवा की यही) सच्ची कार कमाने-योग्य है, (इस से) मनुख को (परदे ढकने के लिए) सच्चा नाम-रूप पोशाक मिल जाता है, सच्चा नाम-रूप  सहारा मिल जाता है, सच्ची संगत की प्राप्ति होती है, सच्चे नाम में प्यार पैदा होता है और सच्चे प्रभु से मिलाप होता है।  (गुरु के)सच्चे शब्द की बरकत  से (मनुख के मन में) सदा ख़ुशी बनी रहती है, और प्रभु की हजूरी में मनुख सुर्खरू हो जाता है।  गुरू नानक जी कहते हैं,  परन्तु, हे नानक ! सतगुरु की बताई हुई कार वोही मनुख करता है, जिस के ऊपर प्रभु संवय कृपा की नज़र करता है।१।

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