धनासरी महला ५ घरु ६ असटपदी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ जो जो जूनी आइओ तिह तिह उरझाइओ माणस जनमु संजोगि पाइआ ॥ ताकी है ओट साध राखहु दे करि हाथ करि किरपा मेलहु हरि राइआ ॥१॥ अनिक जनम भ्रमि थिति नही पाई ॥ करउ सेवा गुर लागउ चरन गोविंद जी का मारगु देहु जी बताई ॥१॥ रहाउ ॥
अर्थ :-हे सतिगुरु ! अनेकों जूनों में भटक भटक के (जूनाँ से बचण का ओर कोई) टिकाउ नहीं खोजा। अब मैं तेरी चरणी आ पड़ा हूँ, मैं तेरी ही सेवा करता हूँ, मुझे परमात्मा (के मिलाप) का मार्ग बता के।1।रहाउ। हे गुरु ! जो जो जीव (जिस किसी) जून में आया है, वह उस (जून) में ही (माया के मोह में) फँस रहा है। मनुखा जन्म (किसी ने) किस्मत के साथ प्राप्त किया है। हे गुरु ! मैं तो तेरा सहारा देखा है। आपने हाथ दे के (मुझे माया के मोह से) बचा ले। कृपा कर के मुझे भगवान-पातिशांस के साथ मिला के।1। हे भाई ! मैं (नित्य) माया की खातिर (ही) अनेकों हीले करता रहता हूँ, मैं (माया को ही) उचेचे तौर पर आपने मन में टिकाई रखता हूँ, सदा ‘मेरी माया,मेरी माया’ करते हुए ही (मेरी उम्र बीतती) जा रही है। (अब मेरा जी करता है कि) मुझे कोई ऐसासंत मिल जाए, जो (मेरे अंदर माया वाली) सारी सोच दूर कर दे, और, भगवान के साथ मेरा प्यार बना दे।2। हे भाई ! सारे वेद पढ़ देखे हैं, (इन के पड़ने से भगवान के साथ से) मन की दूरी खत्म नहीं होती, (वेद आदिक के पढ़ने से) ज्ञान-इंद्रे एक छिन के लिए भी शांत नहीं होतेे। हे भाई ! कोई ऐसा भक्त (मिल जाए) जो (आप) माया से निरलेप हो, (वही भक्त) मेरे हृदय में आत्मिक जीवन देने वाला नाम-जल सिंज सकता है।3।
ऐसे ही रूहानी विचार रोजाना सुनने के लिए, नीचे अपनी E- Mail डालकर, वेबसाइट को सब्सक्राइब कर लीजिए ताकि हर नई पोस्ट की नोटिफिकेशन आप तक पहुंच सके ।
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.