आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

बिलावलु महला ४ ॥  हरि हरि नामु सीतल जलु धिआवहु हरि चंदन वासु सुगंध गंधईआ ॥  मिलि सतसंगति परम पदु पाइआ मै हिरड पलास संगि हरि बुहीआ ॥१॥  जपि जगंनाथ जगदीस गुसईआ ॥  सरणि परे सेई जन उबरे जिउ प्रहिलाद उधारि समईआ ॥१॥ रहाउ ॥  भार अठारह महि चंदनु ऊतम चंदन निकटि सभ चंदनु हुईआ ॥

अर्थ :-हे भाई ! जगत के नाथ, जगत के ईश्वर, धरती के खसम भगवान का नाम जपा कर । जो मनुख भगवान की शरण आ पड़ते हैं, वह मनुख (संसार-सागर में से) बच निकलते हैं, जैसे प्रहिलाद (आदि भक्तों) को (परमात्मा ने संसार-सागर से) पार निकाल के (अपने चरणों में) लीन कर लिया ।1 ।रहाउ ।  हे भाई ! भगवान का नाम सुमिरन करो, यह नाम ठंडक देने वाला जल है, यह नाम चंदन की सुगंधी है जो कि (सारी वनसपती को) सुगंधित कर देती है । हे भाई ! साध संगत में मिल के सब से ऊँचा आत्मिक दर्जा प्राप्त कर लेते हैं । जैसे अरिंड और पलाह (आदि निकंमे वृक्ष चंदन की संगत के साथ) सुगंधित हो जाते हैं, (उसी प्रकार) मेरे जैसे जीव (हरि नाम की बरकत के साथ ऊँचे जीवन वाले बन जाते हैं) ।1 ।  हे भाई ! सारी वनसपती में चंदन सब से श्रेष्ठ (वृक्ष) है, चंदन के करीब (उॅगा हुआ) हरेक पौधा चंदन बन जाता है । पर भगवान के साथ से टूटे हुए माया मे फँसे प्राणी (उन वृक्षो जैसे हैं जो धरती में से खुराक मिलने के बाद भी) खड़े-खड़े ही सुख जाते हैं, (उन के) मन में अहंकार बसता है, (इस लिए परमात्मा से) विछुड़ के वह कहीं दूर पड़े रहते  हैं ।2 ।  हे भाई ! परमात्मा किस प्रकार का है और कितना बड़ा है-यह बात वह आप ही जानता है । (जगत की) सारी मर्यादा उस ने आप ही बनाई हुई है (उस मर्यादा अनुसार) जिस मनुख को गुरु मिल जाता है, वह सोना बन जाता है (पवित्र जीवन की तरफ बढ़ जाता है) । हे भाई ! धुर दरगाह से (जीवों के कीये कर्मो अनुसार जीवों के माथे पर जो लेख) लिखा जाता है, वह लेख (किसी के अपने उधम के साथ) मिटाइआँ मिट नहीं सकता (गुरु के मिलन के साथ ही लोहे से कंचन बनता) है ।3 ।  हे भाई ! (गुरु के अंदर) भक्ति के समुंद्र (भरे पड़े) हैं, भक्ति के खज़ाने खुले पड़े है, गुरु की मति ऊपर चल के ही मनुख (ऊँचे आत्मिक गुण-) रतन प्राप्त कर सकता है । (देखो) गुरु की चरणी लग के (ही मेरे अंदर) एक परमात्मा के लिए प्यार पैदा हुआ है (अब) परमात्मा के गुण गाते  गाते  मेरा मन तृप्त नही होता है ।4 ।  हे भाई ! जो मनुख सदा ही परमात्मा का ध्यान करदा रहता है उसके अंदर सब से ऊँची लगन बन जाती है । भगवान के गुण गाते  गाते  जो प्यार मेरे अंदर बना है, मैं (आपको उस का हाल) बताया है । सो, हे भाई ! बार बार, हरेक खिन, हरेक पल, परमात्मा का नाम जपणा चाहिए (पर, यह याद रखो) परमात्मा परे से परे है, कोई जीव उस (की हस्ती) का पारला किनारा खोज नहीं सकता ।5 ।  हे भाई ! वेद शासत्र पुराण (आदि धर्म पुस्तक इसी बात ऊपर) जोर देते हैं (कि खट-कर्मी) धर्म कमाया करो, वह इन छे धार्मिक कर्मो बारे ही पक्का करते हैं । अपने मन के पिछे चलने वाले मनुख (इसी) पाखंड में भटकना में (फंस के) खुआर होते हैं, (उन की जिंदगी की) बेड़ी (अपने ही पाखंड के) भार के साथ लोभ की लहिर में डुब जाती है ।6 ।  हे भाई ! परमात्मा का नाम जपा करो, नाम में जुड़ के ही ऊँची आत्मिक अवस्था प्राप्त करोगे । (अपने हृदय में परमात्मा का) नाम पक्का टिकाई रखो, (गुरु के सनमुख रहने वाले मनुख के लिए यह हरि-नाम ही) सिमिृतीओ शासत्रो का उपदेस है । (हरि-नाम के द्वारा जब मनुख के अंदर से) हऊमै दूर हो जाती है, तब मनुख पवित्र जीवन वाला हो जाता है । गुरु की शरण में आकर जब मनुख (परमात्मा के नाम में) पसीजता है, तब सब से ऊँचा आत्मिक दर्जा हासिल कर लेता है ।7 ।गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक ! (बोल-हे भगवान !) यह सारा जगत तेरा ही रूप है तेरा ही रंग है । जिस तरफ तूँ (जीवों को) लगाता हैं, वही कर्म जीव करते हैं । जीव (तेरे बाजे हैं) जैसे तूँ बजाता हैं, उसी प्रकार बजते हैं । जिस मार्ग पर चलाना तुझे अच्छा लगता है, उसे मार्ग पर जीव चलते हैं ।8 ।2।

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