आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

सलोक मः ३ ॥  गुरमुखि प्रभु सेवहि सद साचा अनदिनु सहजि पिआरि ॥  सदा अनंदि गावहि गुण साचे अरधि उरधि उरि धारि ॥  अंतरि प्रीतमु वसिआ धुरि करमु लिखिआ करतारि ॥  नानक आपि मिलाइअनु आपे किरपा धारि ॥१॥  मः ३ ॥

अर्थ :- सतिगुरु के सनमुख रहने वाले मनुख हर समय सहिज अवस्था में सुरत जोड़ के (भावार्थ, सदा एकाग्र चित् रह के) सदा सच्चे भगवान को सिमरते हैं, और निचे ऊपर (सब जगह) व्यापक हरि को हृदय में पिरो के चड़दी कला में (रह के) सदा सच्चे की सिफ़त-सालाह करते हैं। धुरों ही करतार ने (उनके लिए ) बख्शीश (का फुरमान) लिख दिया है (इस लिए) उन के हृदय में प्यारा भगवान बसता है, गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक ! उस भगवान ने आप ही कृपा कर के उनको अपने में मिला लिया है।1।  (जब तक सतिगुरु के शब्द के द्वारा हृदय ना भीगे और भगवान की बख्शश का भागी ना बने, तब तक) (चाहे हर   समय गुण गाता रहे), (इस तरह कहते और कथते हाथ नहीं मिलता), कृपा के बिना वह किसी को नहीं मिला, कई रोंते कुरलगते मर गए हैं। सतिगुरु के शब्द के साथ (ही) मन और तन भीगता है और भगवान हृदय में बसता है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक ! भगवान अपनी कृपा दृष्टी के साथ ही मिलता है, वह आप ही (जीव को) अपने साथ मिलाता है।2।  सारे वेद पुराण और शासत्र भगवान आप ही रचने वाला है, आप ही इन की कथा करता है और आप ही (सुन के) प्रसन्न होता है , हरि आप ही बैठ के (पुराण आदि मत-अनुसार) पूजा करता है और आप ही (अन्य) पसारा पसारता है,आप ही संसार में खचित हो रहा है और आप ही इस से किनारा करी बैठा है और कथन से परे अपना आपा आप ही ब्यान करता है, पुंन भी आप ही करवाता है, फिर (पाप) पुंन से अलेप भी आप ही वरतता है, आप ही भगवान सुख दुःख देता है और आप ही कृपा करता है।8।   

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