आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

धनासरी छंत महला ४ घरु १   ੴ सतिगुर प्रसादि ॥      हरि जीउ क्रिपा करे ता नामु धिआईऐ जीउ ॥   सतिगुरु मिलै सुभाइ सहजि गुण गाईऐ जीउ ॥   गुणy गाइ विगसै सदा अनदिनु जा आपि साचे भावए ॥   अहंकारु हउमै तजै माइआ सहजि नामि समावए ॥   आपि करता करे सोई आपि देइ त पाईऐ ॥   हरि जीउ क्रिपा करे ता नामु धिआईऐ जीउ ॥१॥

अर्थ:- राग धनासरी, घर १ में गुरु रामदास जी की बाणी 'छंद'। अकाल पूरख एक है व् परमात्मा की कृपा द्वारा मिलता है।  हे भाई! अगर परमात्मा आप कृपा कर, तो उस का नाम सिमरा जा सकता है। अगर गुरु मिल जाए, तो (प्रभु के) प्रेम में (लीन हो के) आत्मिक अडोलता मे (सथिर हो के) परमातम के गुणों को गा सकता है। (परमात्मा के) गुण गा के मनुख सदा खुश रहता है, परन्तु यह तभी हो सकता है जब सदा कायम रहने वाला परमात्मा को खुद (यह मेहर करनी) पसंद आये। गुण गाने की बरकत से मनुख का अहंकार , होम्य माया के मोह को त्याग देता है, और आत्मिक अडोलता में हरी नाम में लीन हो जाता है। नाम सुमिरन की दात परमात्मा खुद ही देता है, जब वेह देता है तभी मिलती है, हे भाई! परमात्मा कृपा करे तो ही उस का नाम सिमरा जा सकता है।१।  हे भाई ! पूरे गुरु के द्वारा (मेरे) मन में (भगवान के साथ) सदा-थिर रहने वाला प्यार बन गया है। (गुरु की कृपा के साथ) मैं उस (भगवान) को दिन रात सुमिरता रहता हूँ, मुझे वह कभी भी नहीं भूलता। मैं उस को कभी भुलता नहीं, मैं हर   समय (उस भगवान को) हृदय में बसाए रखता हूँ। जब मैं उस का नाम जपता हूँ, तब मुझे आत्मिक जीवन प्राप्त होता है। जब मैं आपने कानो के साथ (हरि-नाम) सुनता हूँ तब (मेरा) यह मन (माया की तरफ से) तृप्त हो जाता है। हे भाई ! मैं गुरु की शरण में आकर आत्मिक जीवन देने वाला नाम-जल पीता रहता हूँ (जब भगवान मनुख ऊपर कृपा की) निगाह करता है, तब (उस को) गुरु मिलाता है (तब हर   समय उस मनुख के अंदर) अच्छे मंदे की परख कर सकने वाली समझ काम करती है। हे भाई ! पूरे गुरु की कृपा के साथ मेरे अंदर (भगवान के साथ) सदा कायम रहने वाला प्यार बन गया है।2।

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