तिलंग महला १ घरु ३ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ इहु तनु माइआ पाहिआ पिआरे लीतड़ा लबि रंगाए ॥ मेरै कंत न भावै चोलड़ा पिआरे किउ धन सेजै जाए ॥१॥ हंउ कुरबानै जाउ मिहरवाना हंउ कुरबानै जाउ ॥ हंउ कुरबानै जाउ तिना कै लैनि जो तेरा नाउ ॥ लैनि जो तेरा नाउ तिना कै हंउ सद कुरबानै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥ काइआ रंङणि जे थीऐ पिआरे पाईऐ नाउ मजीठ ॥ रंङण वाला जे रंङै साहिबु ऐसा रंगु न डीठ ॥२॥
राग तिलंग, घर ३ में गुरु नानकदेव जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है।जिस जिव-स्त्री के इस संसार को माया (के मोह की लाग लगी हो, और फिर उस ने इस को पूरा जिव्हा के चस्के में रंग लिया हो, वह जिव- स्त्री खसम प्रभु के चरणों में नहीं पहुच सकती, क्योंकि (जीवन का) यह चोला (यह सरीर, यह जीवन) खसम प्रभु को पसंद नहीं आता।१। हे मेहरबान प्रभु! मैं कुर्बान जाता हूँ, मैं सदके जाता हूँ उन से जो तेरा नाम सिमरन करते है। जो व्यक्ति तेरा नाम लेता है, मैं उस से सदा कुर्बान जाता हूँ।१।रहाउ। (पर, हाँ!) अगर यह सरीर (निलारी की) मट्टी बन जाये, और हे सजन! अगर इस में मजीठ जैसे पक्के रंग वाला प्रभु का नाम रंग डाला जाये, फिर मालिक प्रभु सवयं निलारी (बन के जिव-स्त्री के मन को) रंग (का गोता) दे, तो ऐसा रंग चड़ता है जो जो पहले कभी देखा न हो॥२॥
ऐसे ही रूहानी विचार रोजाना सुनने के लिए, नीचे अपनी E- Mail डालकर, वेबसाइट को सब्सक्राइब कर लीजिए ताकि हर नई पोस्ट की नोटिफिकेशन आप तक पहुंच सके ।
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.